पूंजीपति के भ्रष्टाचार का बचाव सरकार क्यों कर रही है?
भारत में ऐसा अनोखा मामला पहली बार सामने आया है जब एक व्यावसायिक समूह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे मगर उसका बचाव वह खुद नहीं, बल्कि सरकार कर रही है

- संदीप सिंह
वर्षों से चल रही शेल (फर्जी) कंपनियां, उनके जरिए लाखों करोड़ का अवैध कारोबार, सरकार का अडानी को खुला समर्थन, नियामक और जांच एजेंसियों की चुप्पी, यह सरकार और पूंजीपति के भ्रष्ट सांठगांठ की ओर इशारा करता है। क्या विक्टिम कार्ड खेलने से यह तथ्य दुनिया से छुप जाएगा कि 38 शेल कंपनियां अडानी की सहयोगी हैं जो लाखों करोड़ का फर्जी कारोबार कर रही हैं?
भारत में ऐसा अनोखा मामला पहली बार सामने आया है जब एक व्यावसायिक समूह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे मगर उसका बचाव वह खुद नहीं, बल्कि सरकार कर रही है। जिस सरकार की जिम्मेदारी जांच करके यह सुनिश्चित करना था कि कोई गड़बड़ी न हो, वह सरकार बिना जांच-पड़ताल के ही जबानी क्लीनचिट देकर एक महाघोटाले को ढंकने में लगी हुई है।
अडानी घोटाले पर सरकार ने जो मनमाना और तानाशाही भरा रुख अख्तियार किया है, वह भारतीय लोकतंत्र को बंधक बना लेने जैसा है। इस रिपोर्ट में कही गई ज्यादातर बातें पहले ही देश की जनता को पता हैं। एक उद्योगपति, जिसके विमान से देश के प्रधानमंत्री शपथ लेने दिल्ली आते हैं, उसकी संपत्ति 8 साल में 40,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ कैसे हो गई, यह कोई रहस्य नहीं है। आम जनता इस रहस्य को बखूबी समझती है। इस रिपोर्ट के आने से पहले यह बात सार्वजनिक चर्चाओं के केंद्र में थी कि यह सरकार गौतम अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए कानून तक बदल रही है
2017 में द वायर वेबसाइट ने एक रिपोर्ट के जरिये दावा किया कि केंद्र सरकार ने गुपचुप तरीके से स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन से संबंधित नियमों को बदलकर अडानी समूह की एक कंपनी को 500 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया। वेबसाइट पर केस दायर करने के बावजूद वह रिपोर्ट अब तक इंटरनेट पर मौजूद है। कोर्ट ने रिपोर्ट के तथ्यों में सत्यता पाई थी।
कभी काले धन पर शोर मचाने वाली भाजपा आज काले धन के सवाल पर मौन है। क्या देश को यह नहीं जानना चाहिए कि मारीशस, साइप्रस, यूएई और काले धन का स्वर्ग कहे जाने वाले देशों में चल रही 38 फर्जी कंपनियां किसकी हैं? क्या देश को यह जानने का हक नहीं है कि वे कंपनियां अपनी 100 फीसदी तक पूंजी अदानी ग्रुप में क्यों झोंक रही हैं? क्या देश को यह जानने का हक नहीं है कि इन कंपनियों में किसका पैसा लग रहा है? क्या देश को यह जानने का हक नहीं है कि इन कंपनियों के जरिये भारतीय अर्थव्यवस्था में धकेला जा रहा लाखों-करोड़ों का काला धन किसका है? और क्या ये वित्तीय आतंकवाद हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ नहीं है?
सबसे बड़ा सवाल कि इस घोटाले के सामने आते ही भाजपा इसके बचाव में क्यों उतरी है? क्या भाजपा का इस घोटाले से कोई संबंध है? यदि नहीं तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पूंजीपति का बचाव सरकार आधिकारिक तौर पर क्यों कर रही है?
भाजपा इसे विदेशी साजिश कहकर भटकाने की कोशिश कर रही है और विक्टिम कार्ड खेल रही है? क्या गौतम अडानी विदेशी हैं? क्या उनकी सात लिस्टेड कंपनियां विदेशी हैं? क्या भारतीय बाजार का डूब चुका 10 -12 लाख करोड़ रुपया विदेशी है? क्या उनकी कंपनियों में निवेश कर रहे भारतीय निवेशक विदेशी हैं? क्या उनका समर्थन कर रही भाजपा विदेशी है? क्या गौतम अडानी को बचा रही भाजपा की सरकार विदेशी है? जब सब कुछ देश में ही हुआ है तो यह विदेशी साजिश कैसे है?
हैरानी की बात है कि इस घोटाले के सामने आने के बाद भारत के मीडिया में स्वतंत्र रूप से इसकी कोई छानबीन नहीं हुई। मीडिया ने अपने विवेक से कुछ कहने की जगह मौन रहकर बस यह बताने का काम चुना कि किसने क्या कहा? मीडिया और सोशल मीडिया पर वही बात प्रमुखता से चलाई जा रही है जो भाजपा कहना चाह रही है और झूठ जनता से मनवाना चाह रही है। क्या अब इस देश में सिर्फ एक विचार इतना प्रभावशाली होगा कि उसकी आड़ में राष्ट्र का खजाना भी लूट लिया जाएगा? क्या अब इस देश में सिर्फ भाजपा की बात मानी जाएगी, भले ही वह लाखों-करोड़ों का भ्रष्टाचार हो?
वर्षों से चल रही शेल (फर्जी) कंपनियां, उनके जरिए लाखों करोड़ का अवैध कारोबार, सरकार का अडानी को खुला समर्थन, नियामक और जांच एजेंसियों की चुप्पी, यह सरकार और पूंजीपति के भ्रष्ट सांठगांठ की ओर इशारा करता है। क्या विक्टिम कार्ड खेलने से यह तथ्य दुनिया से छुप जाएगा कि 38 शेल कंपनियां अडानी की सहयोगी हैं जो लाखों करोड़ का फर्जी कारोबार कर रही हैं?
भारत के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी और इसे अस्थिर करने की किसी भी बाहरी साजिश का मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूरा देश एकजुट होकर इसका सामना करेगा। लेकिन विदेशी साजिश के बहाने लूट की छूट नहीं दी जा सकती। भाजपा सरकार इतने बड़े घोटाले के आरोप पर जिस तरह की जबरदस्ती अपना रही है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था, देश के संसाधनों एवं संपत्तियों पर गंभीर संकट है। जनता को यह समझना बेहद जरूरी हो गया है कि किस तरह देशभक्ति की आड़ में देश के संसाधनों की लूट हो रही है।
लेखक, कांग्रेस से जुड़े हैं और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।


