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अन्नदाता के प्रति क्रूरता क्यों?

केन्द्र सरकार द्वारा एक तरफ किसानों के प्रति उच्चस्तरीय संवेदनशीलता दिखाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न प्रदान किया गया है

अन्नदाता के प्रति क्रूरता क्यों?
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- राहुल लाल

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कोस्ट्स एंड प्राइसेस अर्थात सीएसीपी ही एमएसपी तय करता है। एमएसपी का आशय है- न्यूनतम समर्थन मूल्य। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी किसानों को दी जाने वाली एक गारंटी की तरह होती है,जिसमें तय किया जाता है कि बाजार में किसानों की फसल किस दाम पर बिकेगी। दरअसल, फसल की बुआई के दौरान ही फसल की कीमत तय कर दी जाती है।

केन्द्र सरकार द्वारा एक तरफ किसानों के प्रति उच्चस्तरीय संवेदनशीलता दिखाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न प्रदान किया गया है, वहीं दूसरी ओर अन्नदाता के ऊपर स्वतन्त्र भारत में पहली बार ड्रोन से आंसू गैस के हमले किए जा रहे हैं। इन हमलों को किसानों के ऊपर एयर स्ट्राइक कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। रुस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल द्वारा गाजा पर हमलों में ड्रोन हमलों की अंतरराष्ट्रीय आलोचना हुई है। वास्तव में अन्नदाता के उपर ड्रोन से आंसू गैस के हमलों को मानवता के अपराध के रूप में देखा जाएगा। किसान जब चंडीगढ़ में शान्तिपूर्ण तरीकों से सरकार के साथ बातचीत कर रहे थे, तो दूसरी तरफ पुलिस ने जगह-जगह हाईवे जाम करने शुरू कर दिए थे। बड़े-बड़े कांक्रीट के बोल्डर रखे गए। बैरिकेड और कांटों की दीवार बनाई गई। शंभू बॉर्डर पर अन्नदाता पर ड्रोन हमलों ने कई सवाल खड़े किए हैं। अपने देश में क्या कोई पुलिस या अर्द्धसैनिक बल अन्नदाता पर हवाई हमले कर सकती है? क्या निगरानी के अलावा किसी तरह के हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध की श्रेणी में नहीं आता है? किस कानून के तहत ड्रोन का इस्तेमाल हमले के लिए किया जाता है? क्या आने वाले दिनों में हर जन आंदोलन, सरकार विरोधी प्रदर्शन को ड्रोन हमलों से गुजरना पड़ेगा?

माननीय प्रधानमंत्री कहां तो ड्रोन का प्रयोग कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए कर रहे थे ,लेकिन अंतत: ड्रोन का प्रयोग अन्नदाता को कुचलने के लिए हो रहा है।
प्रदर्शनकारी किसानों की सबसे बड़ी मांग एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गांरटी की है। किसान एमएसपी पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। किसानों की यह मांग काफी स्वाभाविक भी है, जब सरकार एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दे रही है, तो आखिर उनके एमएसपी पर सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश को क्यों नहीं मानती है?

2011 में गुजरात मुख्यमंत्री और एक कार्य समूह के अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि 'किसानों के हितों की रक्षा के लिए हमें कानूनी प्रावधानों के माध्यम से सुनिश्चित करना होगा कि किसान और व्यापारी के बीच कोई भी लेन-देन एमएसपी से नीचे नहीं होना चाहिए।' 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान कई भाषणों और चुनावी रैलियों में, मोदीजी ने वादा किया था कि सभी फसलें एमएसपी पर खरीदी जाएगी,जो स्वामीनाथन समिति के फॉर्मूले के अनुसार सभी लागतों और 50 फीसदी मार्जिन को कवर करेगी। परन्तु आज तक न तो एमएसपी की कोई गांरटी है और न ही यह सी-2+50 फीसदी के स्वामीनाथन फॉर्मूले पर आधारित है। वहीं 13 फरवरी को राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस किसानों को फसलों पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार, एमएसपी की कानूनी गांरटी देगी। उन्होंने कहा कि इंडिया एलायंस की सरकार बनेगी तो हम स्वामीनाथन की रिपोर्ट पर अमल करेंगे।

राहुल गांधी की इस घोषणा के बाद बीजेपी किसान मामलों पर और फं सती हुई दिखाई दे रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के अनुसार एमएसपी का समर्थन कर रहे थे, परन्तु जब सत्ता में आए तो सुप्रीम कोर्ट में ही हलफनामा देकर कहा कि- स्वामीनाथन कमिटी के अनुसार सी-2+50फीसदी के फॉर्मूले पर एमएसपी देना संभव नहीं है। इस सम्पूर्ण मामले को समझने के लिए सर्वप्रथम समझते हैं कि स्वामीनाथन कमीशन ने किस प्रकार के एमएसपी का समर्थन किया है?

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कोस्ट्स एंड प्राइसेस अर्थात सीएसीपी ही एमएसपी तय करता है। एमएसपी का आशय है- न्यूनतम समर्थन मूल्य। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी किसानों को दी जाने वाली एक गारंटी की तरह होती है,जिसमें तय किया जाता है कि बाजार में किसानों की फसल किस दाम पर बिकेगी। दरअसल, फसल की बुआई के दौरान ही फसल की कीमत तय कर दी जाती है। एमएसपी तय होने के बाद बाजारों में फसलों की कीमत गिरने के बाद भी सरकार किसानों से तय कीमत पर ही फसलें खरीदती हैं। सरल शब्दों में कहें तो, एमएसपी का उद्देश्य फसल की कीमत में उतार-चढ़ाव के बीच किसानों को नुकसान से बचाना है। कृषि मंत्रालय खरीफ, रबी सीजन समेत अन्य सीजन की फसलों के साथ कॉमर्शियल फसलों पर भी एमएसपी लागू करती है। केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से ही साल 1965 में कृषि लागत और मूल्य आयोग यानी सीएसीपी का गठन किया था। पहली बार 1966-67 में एमएसपी दर लागू की गई थी। सीएसीपी द्वारा दी जाने वाली सिफारिशों के आधार पर सरकार हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी का ऐलान करती है।

स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी फसल की लागत का 50 फीसदी ज्यादा देने की सिफारिश की थी। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश है- एमएसपी को सी 2+50 प्रतिशत के फार्मूले से लागू करने की। किसान आंदोलनकारी मोदी सरकार से एमएसपी पर यही फॉर्मूला लागू करने की मांग कर रहे हैं। स्वामीनाथन आयोग ने सी-2+ 50 का आंकड़ा बताने के लिए फसल लागत को तीन हिस्सों में बांटा था। फसल लागत के तीन हिस्सों के नाम हैं- ए 2, ए 2+ एफ एल और सी 2।
ए 2 के लागत में फसल की पैदावार में हुए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं। इसमें बीज, खाद,कीटनाशक, उर्वरक से लेकर मजदूरी, ईंधन और सिंचाई में लगने वाली लागत भी शामिल होती है।

ए 2 + एफ एल में फसल की पैदावार में लगने वाली कुल लागत के साथ -साथ परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है। इस तरह ए 2 + एफ एल का मतलब है-लागत + किसान परिवार की मेहनत।

जबकि, सी 2 में पैदावार में लगने वाली नकदी और गैर नकदी के साथ-साथ जमीन पर लगने वाले लीज के खर्च और ब्याज पर लिए गए रूपयों को भी शामिल किया जाता है। इस फॉर्मूले को अगर सामान्यीकृत करें, तो सी 2 का मतलब है- ए 2 + एफ एल + जमीन के लीज का खर्च और ब्याज पर लिए गए पैसों की भी लागत। स्वामीनाथन आयोग ने सी 2 की लागत में ही डेढ़ गुनी यानी 50 फीसदी और जोड़कर एमएसपी देने की सिफारिश की थी। इसे ही सी 2 +50 कहा जाता है।

उदाहरण के लिए गेहूं की फसल पर सी 2+50 के फॉर्मूले के अनुसार, एमएसपी दिया जाए, तो प्रति क्विंटल 350 रूपये से ज्यादा का अंतर आएगा। सीएसीपी की रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 के लिए प्रति क्विंटल गेहूं की फसल पर ए 2 के अनुसार, लागत 903 रूपये थी। वहीं गेहूं की ए 2+ एफएल की लागत 1,128 रूपये है और सी 2 की लागत 1,652 रूपये लगाई गई थी। जबकि 2023-24 के लिए प्रति क्विंटल गेहूं की एमएसपी 2,125 रूपये तय की गई है। स्वामीनाथन आयोग का सी 2 +50फीसदी का फॉर्मूला अपनाया जाए, तो प्रति क्विंटल गेहूं पर एमएसपी 1,652+ 826= 2,478 रूपये होती है। इस हिसाब से 2023-24 के लिए गेहूं के एमएसपी में 353 रूपये का फर्क है। अभी सीएसीपी फसलों पर जो एमएसपी तय करती है, वह ए 2 + एफ एल की लागत के हिसाब से तय करती है। इस संपूर्ण विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार एमएसपी देने में सरकार सक्षम है। क्या सरकार गेहंू के एमएसपी में 353 रूपये की वृद्धि नहीं कर सकती है?

केंद्र सरकार वर्ष 2020 के आंकड़ों को प्रस्तुत कर एमएसपी गारंटी कानून से बचने का प्रयास कर रही है। सरकार समर्थकों का कहना है कि एमएसपी गारंटी कानून को क्रियान्वित करने की लागत कम से कम 10 लाख करोड़ होगी, इसलिए यथार्थ के धरातल पर यह संभव नहीं है। केंद सरकार के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में देश की कृषि उपज का कुल मूल्य 40 लाख करोड़ रूपये था। इसके साथ ही 2020 में एमएसपी के दायरे में आने वाले फसलों का मूल्य 10 लाख करोड़ था। उस वर्ष सरकार ने एमएसपी पर 2.5 लाख करोड़ खर्च कर एमएसपी वाली फसलों की 25फीसदी खरीदारी की थी। अब सरकार तर्क दे रही है कि सभी एमएसपी वाले फसलों को खरीदना होगा, तो 10 लाख करोड़ खर्च होंगे।

लेकिन मेरा मूल प्रश्न है कि सरकार एमएसपी वाली सभी फसल क्यों लेगी? अभी सरकार जरूर एमएसपी पर फसल खरीदती है, लेकिन निजी कंपनियां एमएसपी पर नहीं खरीदती है। क्या निजी कंपनियों को एमएसपी पर खरीदने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए? जब एमएसपी गारंटी कानून बन जाएगा, तो निजी कंपनियां भी एमएसपी पर खरीदने के लिए बाध्य होंगीं। ऐसे में एमएसपी गारंटी पर 10 लाख करोड़ रूपये खर्च की बात पूर्णत: गलत है। अभी 24 फसलों पर एमएसपी दी जा रही है।

पिछले वर्ष 5 फसलों का मंडी भाव स्वाभाविक रूप से एमएसपी से ऊपर था, जबकि दो फसलों का दर एमएसपी के बराबर था। इस प्रकार पिछले वर्ष 7 फसलों को एमएसपी दर पर लाने में सरकार को एक रूपया खर्च नहीं करना पड़ा। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार केवल निजी क्षेत्र के कंपनियों के दबाव में एमएसपी गारंटी कानून से बच रही है। वर्तमान केंद्र सरकार पर पहले से ही पूंजीपतियों का समर्थन करने.और गरीब,मजदूर व किसानों को हाशिए पर रखने का आरोप लगता रहा है। ऐसे में एमएसपी गारंटी कानून पर 10 लाख करोड़ रूपये का खर्च का बहाना मूलत: निजी कंपनियों को बचाने का प्रयास है। वास्तव में सरकार की अब तक मूल मंशा यह दिख रही है कि निजी क्षेत्र को अन्नदाता का शोषण का मौका मिलता रहे। अगर सरकार इन आरोपों से बचना चाहती है, तो त्वरित तौर पर एमएसपी गारंटी कानून को क्रियान्वित करें।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व आर्थिक मामलों के जानकार हैं)


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