सरकार की अंतरात्मा कहां है?
कुछ दिनों पहले की घटना है। उत्तरप्रदेश में एक स्कूल में शिक्षिका ने एक मुस्लिम बच्चे को कथित तौर पर उसके ही सहपाठियों से थप्पड़ लगवाए थे

- सर्वमित्रा सुरजन
अदालत ने राज्य की अंतरात्मा और संवेदनशीलता का जिक्र तो किया है, लेकिन सवाल यही है कि क्या इस वक्त भाजपा सरकार में अंतरात्मा की आवाज सुनी जाती है या किन्हीं और ही आवाजों के निर्देश पर काम हो रहा है। अंतरात्मा जैसी कोई चीज सरकार में है नहीं या फिर राहुल गांधी की बात ही सही है कि ये सरकार रिमोट कंट्रोल से चल रही है।
कुछ दिनों पहले की घटना है। उत्तरप्रदेश में एक स्कूल में शिक्षिका ने एक मुस्लिम बच्चे को कथित तौर पर उसके ही सहपाठियों से थप्पड़ लगवाए थे। बच्चे एक-एक करके आ रहे थे और उस रोते हुए बच्चे को थप्पड़ मार कर जा रहे थे। इस घटना का वीडियो भी बनाया गया था, जो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। एक धक्का और तर्ज की पर उस शिक्षिका को वीडियो में ये कहते हुए सुना गया कि थोड़ा और जोर से मारो। इस मामले ने बड़ा विवाद खड़ा किया। शिक्षिका ने अपनी सफाई दी, वहीं ये भी पता चला कि बच्चे के पिता ने अपने बच्चे को उस स्कूल से निकाल लेने का फैसला किया, कुछ किसान नेताओं ने पिटने वाले और पीटने वाले बच्चों को आपस में गले मिलवाकर मामले को खत्म करवाने की कोशिश भी की। इस बीच वो मासूम किस मानसिक पीड़ा से गुजर रहा होगा, इसकी परवाह व्यापक समाज करे, इतनी फुर्सत शायद नहीं है।
क्योंकि समाज तो सरकार के रचे नित नए मायाजाल में ही फंसता जा रहा है। नए संसद भवन में प्रवेश, सत्ता का राजदंड सोने का भारी-भरकम सेंगोल, आसमान छूती मूर्तियों का अनावरण, आडंबर से भरे पूजा-पाठ, ट्रेनों, बसों को हरी झंडी दिखाना, चुनाव को ध्यान में रखते हुए नए-नए विधेयक पारित करवाना, जी-20 की तड़क-भड़क, ऐसे कई किस्म के जगर-मगर करते इवेंट भाजपा सरकार में किए जा रहे हैं और इनकी चकाचौंध के बीच समाज में कालिमा बढ़ाने वाली घटनाएं हो रही हैं। उप्र में स्कूल में बच्चे को उसके ही सहपाठियों से पिटवाना ऐसी ही एक घटना थी। इस मामले को रफा-दफा करने की तमाम कोशिशों के बीच इसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया गया, जहां न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने सुनवाई के दौरान जांच के तरीकों और दर्ज एफआईआर में पिता के लगाए आरोप हटाने को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई है। पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में संवेदनशील शिक्षा भी शामिल है। जिस तरह की यह घटना हुई है उससे राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देना चाहिए।
अदालत ने राज्य की अंतरात्मा और संवेदनशीलता का जिक्र तो किया है, लेकिन सवाल यही है कि क्या इस वक्त भाजपा सरकार में अंतरात्मा की आवाज सुनी जाती है या किन्हीं और ही आवाजों के निर्देश पर काम हो रहा है। अंतरात्मा जैसी कोई चीज सरकार में है नहीं या फिर राहुल गांधी की बात ही सही है कि ये सरकार रिमोट कंट्रोल से चल रही है। राजा की जान तोते में बसी होने की कहानी समाज ने सुनी है, वैसे ही सरकार के प्राण आखिर किस रिमोट कंट्रोल में है और वो रिमोट कंट्रोल किसके पिंजरे में है, ये भी तो जनता को पता होना चाहिए। सरकार के पास अंतरात्मा होती तो अब तक न जाने कितनी बार हिल चुकी होती। अभी तो जैसा हाल देश का है, उसमें यही समझ आ रहा है कि अंतरात्मा को या तो पूरी तरह कुचल दिया गया है, या उसे किसी तहखाने में दबा दिया गया है। भाजपा सरकार अगर अंतरात्मा की आवाज सुनने लगे तो उन आवाजों का शोर इतना अधिक होगा कि सरकार का चैन उड़ जाएगा। अंतरात्मा की आवाज सुनने का मतलब सच और इंसाफ की राह पर निकल पड़ना है, जाहिर है सरकार इस वक्त इसके लिए तैयार नहीं है।
जिस उत्तरप्रदेश के मामले में अदालत ने यह सख्त टिप्पणी की, उसी राज्य में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने लव जिहाद, धर्मांतरण और इसके साथ लैंड जिहाद का मुद्दा छेड़ दिया है। लव जिहाद और धर्मांतरण की बात तो देश बहुत समय से सुनता आया है, अब इसमें लैंड जिहाद भी जोड़ा गया है, इसमें मुस्लिमों पर आरोप लगाया जाता है कि मजार, मस्जिदें बनाने के नाम पर मुस्लिम जमीनों पर कब्जे करते जा रहे हैं। देश में किसी भी पीपल, नीम, इमली, बरगद या आंवले के पेड़ के नीचे या बीच चौराहे पर किसी पत्थर पर केसरिया रंग पोतकर उसे सिद्धि वाले मंदिर कितने बनाए गए हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है। नवरात्रि और गणेश चतुर्थी जैसे मौकों पर सड़कें घेर कर धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, लोगों की आवाजाही, कामकाज, पढ़ाई, कारोबार सब बाधित होते हैं, तब कोई तकलीफ नहीं होती, तब किसी को लैंड या सैंड या ट्री जिहाद दिखाई नहीं दिया। मगर अब मुस्लिमों को निशाने पर लेने के लिए ये नए किस्म का जिहाद गढ़ दिया गया है। संघ प्रमुख ने अपने लोगों से कहा कि इसको रोकने के लिए तेजी से और आक्रामक ढंग से अभियान चलाने की ज़रूरत है।
भाजपा ने अपने शासन की मजबूती दिखाने के लिए कानून व्यवस्था से अधिक बुलडोजर के इस्तेमाल पर भरोसा किया, इससे पहले डबल इंजन सरकार का मुहावरा चलाया गया और अब संघ प्रमुख आक्रामक अभियानों की बात कह रहे हैं। क्या भाजपा इस बात का जवाब दे पाएगी कि यहां किस किस्म की आक्रामकता की वकालत की जा रही है। अखलाक और नासिर-जुनैद जैसे लोगों को मारने जैसी आक्रामकता, मुस्लिम बच्चे को पिटवाने और नूंह में दंगे करवाने जैसी आक्रामकता, ट्रेन में कपड़ों से पहचान कर मारने जैसी या फिर संसद में गालियां देकर शाब्दिक हिंसा
करने जैसी आक्रामकता। संघ की निगाह में ये सारे प्रकरण पिछले साढ़े 9 सालों के मोदीराज की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों में शुमार हो सकते हैं। इन्हीं से हिंदुओं को ये समझ आया है कि अब उनका हिंदुत्व सुरक्षित है। क्योंकि जिस हिंदुत्व की पैरवी संघ करता आया है, और जो भाजपा की सत्ता का मूल मंत्र है, उसमें ऐसी ही आक्रामकता ऑक्सीजन का काम करती रही है। जब तक ऐसी आक्रामकता नहीं थी और देश में सब कुछ संविधान के हिसाब से चल रहा था। मंदिर-मस्जिद के झगड़ों के बीच भी समाज में जिहाद जैसे शब्दों के लिए ज्यादा जगह नहीं बनी थी। लोग ईद, दीवाली जैसे त्योहार बिना आक्रामक हुए मनाते थे। त्योहारों में खुशियां आती थीं, तनाव नहीं होते थे। धार्मिक काम सद्भाव की छांव में हो जाते थे, पुलिस के पहरों में नहीं। और खास बात ये है कि तब समाज में हिंदुओं के एक बड़े तबके के सामने यह सवाल खड़ा ही नहीं हुआ था कि उसका धर्म सुरक्षित है या नहीं। लेकिन भाजपा ने धर्म की असुरक्षा का एक भाव बड़ी चालाकी से लोगों के मन में भर दिया। इससे धर्म सुरक्षित हुआ या अधर्म बढ़ा, इसका विश्लेषण लोग अपने विवेक से कर लें, लेकिन इतना तय है कि धर्म को असुरक्षित बताकर भाजपा ने अपनी सत्ता की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर ली। और भाजपा की सत्ता को संरक्षित करने का काम कुछेक उद्योगपतियों ने कर लिया। राहुल गांधी इन्हीं के हाथों में सत्ता का रिमोट कंट्रोल होने की बात कहते हैं।
इसलिए माननीय अदालत की टिप्पणी का पूरा सम्मान करते हुए यह तथ्य रेखांकित किया जाना चाहिए कि भाजपा में आत्मा, परमात्मा, अंतरात्मा जैसी कोई अवधारणाएं काम नहीं कर रही हैं। अगर ज़मीर जिंदा होता तो फिर नकली आंसू निकालने के लिए नकली बहाने गढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती। तब मणिपुर में महीनों से चल रही हिंसा को सरकार देख कर भी चुप नहीं बैठती। मित्रो के हवाईजहाज में इतना ईंधन तो आ ही जाता, जो सरकार बहादुर को मणिपुर तक ले जाता। या कि संसद में गालियां देने वाले रमेश बिधूड़ी के खिलाफ लोकतंत्र की मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया जाता और उतनी ही तेजी से उन्हें संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता, जिस तेजी से राहुल गांधी को संसद से निकाला गया था। ज़मीर जिंदा होता तो सरकार के कामों के बूते भाजपा चुनावी मैदान में उतरती, और विपक्ष का सम्मान करते हुए चुनाव लड़ती।
लेकिन अभी श्री मोदी इंडिया गठबंधन को घमंडिया के अलावा और कौन से नए नाम देकर उसे कमतर साबित करें, कैसे गांधी-नेहरू परिवार की आलोचना करें, कैसे खुद ग्यारहवें अवतार के तौर पर साबित करें, इन्हीं प्रयासों में जुटे नजर आ रहे हैं। इन कोशिशों के बीच अंतरात्मा के सवाल पर सोचने का अवकाश उनके या भाजपा के नेताओं के पास कहां हैं। अंतरात्मा को जिंदा रखा जाता तो देश के हाल देखकर उसमें हलचल होती, अन्याय और उत्पीड़न देकर वह हिल जाती, लेकिन अभी अंतरात्मा और आक्रामकता के बीच भाजपा दूसरे पक्ष को चुनती दिखाई दे रही है।


