मीर जाफर का मतलब क्या है
भूकंप और राहुल गांधी का एक किस्सा याद तो आ रहा है। छह साल पहले की बात है, जब राहुल गांधी ने नोटबंदी पर मची तकरार पर कहा था कि सरकार बहस से भाग रही है

- सर्वमित्रा सुरजन
भूकंप और राहुल गांधी का एक किस्सा याद तो आ रहा है। छह साल पहले की बात है, जब राहुल गांधी ने नोटबंदी पर मची तकरार पर कहा था कि सरकार बहस से भाग रही है, अगर मुझे बोलने देंगे तो आप देखेंगे भूकंप आ जाएगा। लेकिन भूकंप तो न संसद में आया, न भाजपा की सत्ता को हिला पाया। सही बात है कि, भाजपा 2019 में दोबारा जीत कर भी आ गई। लेकिन संसद में बोलने देने का सवाल तो अब भी वहीं अटका हुआ है।
दिल्ली में बारिश के बाद भूकंप भी आ गया, मीर जाफर कहीं का।
भूकंप को गद्दार क्यों कह रहे हैं। उसने किसके साथ गद्दारी की। अब धरती हमेशा सावधान की मुद्रा में तो रहेगी नहीं, कि शहंशाह पधार रहे हैं, सो हिलना-डुलना मना है, केवल हाथ जोड़े खड़े रहना है। भूकंप तो प्राकृतिक घटना है, इसमें गद्दारी की तो कोई बात ही नहीं है।
मैंने कब कहा कि भूकंप ने गद्दारी की। मैंने तो भूकंप को मीर जाफर कहा। क्योंकि उसके आने से दिल्ली की धरती हिल गई।
हां, तो मीर जाफर यानी गद्दार ही तो होता है। इतिहास नहीं पढ़ा। 1757 में मीर जाफर ने सिराजुद्दौला से गद्दारी करके राबर्ट क्लाइव का साथ प्लासी के युद्ध में दिया था और अंग्रेजों की हुकूमत देश में शुरु हो गई थी। अंग्रेजों का साथ देने के कारण मीर जाफर को बंगाल,बिहार की नवाबी हासिल हो गई थी। उसे वफादारी का इनाम मिला था, लेकिन देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया, इसलिए मीर जाफर और गद्दार पर्यायवाची हो गए हैं।
ये इतिहास तो मैंने भी पढ़ा है। लेकिन अब तो नया इतिहास लिखा जा रहा है। इसलिए किरदारों के अर्थ भी तो बदल जाएंगे। जैसे अकबर की महानता पृथ्वीराज चौहान की महानता के आड़े आ रही थी। तो अब अकबर को महान नहीं कहा जा रहा। उसी तरह हो सकता है मीर जाफर को भी गद्दार न माना जाए। बल्कि अब मीर जाफर को सत्ता को हिलाने वाला कहा जाए। इसलिए मैंने भूकंप को मीर जाफर कहा। ये प्रेरणा मुझे मौजूदा राजनीति के एक महान पात्रा जी से मिली। उन्होंने अभी राहुल गांधी को मीर जाफर कहा। राहुल गांधी भी तो भाजपा की सत्ता को बार-बार भूकंप की तरह हिलाने में लगे हुए हैं।
हां, भूकंप और राहुल गांधी का एक किस्सा याद तो आ रहा है। छह साल पहले की बात है, जब राहुल गांधी ने नोटबंदी पर मची तकरार पर कहा था कि सरकार बहस से भाग रही है, अगर मुझे बोलने देंगे तो आप देखेंगे भूकंप आ जाएगा। लेकिन भूकंप तो न संसद में आया, न भाजपा की सत्ता को हिला पाया।
सही बात है कि, भाजपा 2019 में दोबारा जीत कर भी आ गई। लेकिन संसद में बोलने देने का सवाल तो अब भी वहीं अटका हुआ है। अब भी राहुल गांधी के बोलने से भाजपा परेशान हो जाती है। इसलिए अच्छा यही है कि वो न बोलें और बोलें तो उन्हें ऐसा घेरा जाए कि असल मुद्दे गायब ही हो जाएं। ये जो पात्राजी ने राहुल गांधी को मीर जाफर कहा है, उसके पीछे भी सोच शायद यही है। उन्हें भी पता है कि राहुल गांधी जब-जब कोई बड़ा आरोप लगा रहे हैं सत्ता की जड़ें हिलने लगी हैं। वो तो बजट सत्र के पहले दौर में उन्होंने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते-बोलते कब अडानी और मोदी मित्रता की बात छेड़ दी, इसे कोई समझ ही नहीं पाया। जब तक बात समझ में आई, राहुल गांधी के तीर तो चल ही चुके थे। संसद की कार्रवाई में ये सुविधा है कि बोले हुए को मिटा दो, हटा दो। लेकिन भला मुंह से निकली बात कभी वापस आती है।
इसे तो मोदीजी भी मुमकिन नहीं कर सकते। इसलिए राहुल गांधी की कही बातें अब संसद के गलियारे से निकल कर देश भर में तैर रही हैं। और ब्रिटेन में उन्होंने जो कुछ कहा, उसे तो पूरी दुनिया ने सुना। मां गंगा के बेटे,मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रखवाले पर राहुल गांधी के बयान से सवाल उठ गया कि लोकतंत्र की हालत खस्ता क्यों हो रही है। पहले मित्रता पर सवाल, अब लोकतंत्र पर सवाल। लगता है राहुल गांधी का प्रश्नकाल खत्म ही नहीं हो रहा। इन सवालों के जवाब भाजपा दे तो मुश्किल, न दे तो मुश्किल। इसलिए अच्छा यही है कि राहुल गांधी को बोलने ही न दिया जाए और संसद से वो बाहर रहें, तो सबसे अच्छा। इसलिए भाजपा राहुल गांधी से माफी की मांग कर रही है और पात्रा जी उन्हें मीर जाफर बता रहे हैं।
लेकिन, हमें तो लगा कि राहुल गांधी को गद्दार कहा जा रहा है। क्योंकि संबित पात्रा ने ये भी तो कहा कि शहजादे, नवाब बनने के लिए लंदन में बयान देते हैं। हमने उनकी बात का, इतिहास की घटना से संबंध जोड़कर यही मतलब समझा कि जैसे मीर जाफर नवाब बन गए, वैसे ही राहुल गांधी को भी नवाब बनना होगा, तो वे अंग्रेजों की ड्योढ़ी पर चले गए।
हां, संबित पात्रा ने कहा तो यही, मगर उनकी बातों में कई पेंच दिख रहे हैं। जैसे शहजादे, शाह बनते हैं और नवाबजादे, नवाब। और राहुल गांधी न शाह के बेटे हैं, न नवाब के। यहां तो खैर भाषाई गड़बड़ी है। दूसरी गड़बड़ी ये दिखी कि मीर जाफर जब अंग्रेजों से वफादारी करके, अपने नवाब से गद्दारी करके खुद बंगाल की गद्दी पर बैठे, तब भारत संघीय गणराज्य नहीं था। यहां अलग-अलग रियासतें थीं और कई सारे शासक थे। लेकिन अब भारत स्वतंत्र, संप्रभु,लोकतांत्रिक देश है।
आजादी के 75 बरस हो चुके हैं और मोदी सरकार आजादी का अमृतकाल मना रही है। इसलिए अब यहां से कोई ब्रिटेन जाए या अमेरिका जाए, उसे कोई देश का नवाब नहीं बना सकता। कोई भक्ति में प्रधानमंत्री को महान राजा बताए, वो अलग बात है। लेकिन लोकतंत्र का तकाजा तो यही है कि जनता मतदान से अपने प्रतिनिधि को चुनती है और जीती हुई पार्टी अपने किसी सांसद को प्रधानमंत्री बनाती है। अभी मोदीजी इसी तरह प्रधानमंत्री बने हैं। अगर संबित पात्रा का ये मानना है कि राहुल गांधी ब्रिटेन जाकर मोदी सरकार के खिलाफ इसलिए बयान दे रहे हैं, ताकि सत्ता उन्हें मिले, तो वे अपनी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं और इस देश के लोकतंत्र पर भी। उनकी बात में तीसरी गड़बड़ी ये है कि उन्होंने मीर जाफर शब्द को ठीक से परिभाषित नहीं किया। प्रेस कांफ्रेंस में कोई बूझो तो जानो, जैसी पहेली का खेल तो चल नहीं रहा था।
अगर उन्हें राहुल गांधी को गद्दार कहना है, तो फिर इसके सबूत देने चाहिए और इसके साथ ही राहुल गांधी पर देशद्रोह, गद्दारी के आरोप में मामले दर्ज करना चाहिए। और अगर उनका आशय गद्दारी से नहीं है, तो फिर साफ-साफ बताएं कि यहां मीर जाफर से राहुल गांधी की तुलना करने का मतलब क्या है। अगर पात्राजी खुद नहीं बताएंगे, तो फिर इसी तरह मीर जाफर का मतलब कभी भूकंप, कभी तूफान, कभी आंधी समझा जाएगा।


