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तब क्या होगा, हम देखेंगे...

हम देखेंगे.. लाज़िम है कि हम भी देखेंगे... मशहूर शायर फैज़ अहमद फै़•ा ने ये नज़्म साढ़े चार दशक पहले तब लिखी थी

तब क्या होगा, हम देखेंगे...
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हम देखेंगे.. लाज़िम है कि हम भी देखेंगे... मशहूर शायर फैज़ अहमद फै़ज ने ये नज़्म साढ़े चार दशक पहले तब लिखी थी जब पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक़ ने हुकूमत की बागडोर संभाली थी। लेकिन इस नज़्म को लोकप्रियता हासिल हुई 1986 में इकबाल बानो के ज़रिए। दरअसल, ज़िया-उल-हक़ की सरकार ने साड़ी को गैर इस्लामिक बताकर उस पर रोक लगा दी थी, जिसके विरोध में इक़बाल बानो ने सफ़ेद साड़ी पहनकर एक बड़े जनसमूह के सामने यह नज़्म गायी थी। इसकी एक पंक्ति 'सब ताज उछाले जायेंगे, सब तख़्त गिराए जायेंगे' गाते ही भीड़ ने 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' नारे लगाने शुरू कर दिये। उसी वक़्त से यह नज़्म सरकार और उसके तंत्र के प्रति असंतोष व्यक्त करने, प्रतिकार करने का माध्यम बन गई। भारत में भी जनवादी-प्रगतिशील संगठनों और जन आंदोलनों ने इसे हाथों-हाथ ले लिया और इस नज़्म ने जनगीत की शक्ल अख्तियार कर ली।

बरसों-बरस यह नज़्म जलसों-जुलूसों, धरने-प्रदर्शनों, बैठकों-सभाओं में गायी जाती रही। सरकारें आती-जाती रहीं, इस रचना में किसी को कोई बुराई नज़र नहीं आई। लेकिन फिर 2019 आया जब बाकी देश की तरह आईआईटी कानपुर के छात्र नागरिकता संशोधन कानून (सीएए-एनआरसी) के विरोध में इकठ्ठा हुए और यह नज़्म गायी। दूसरे पक्ष के कुछ छात्रों ने इस नज़्म को हिन्दू विरोधी बताते हुए बवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने संस्थान के निदेशक को शिकायत की कि यह नज़्म से उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। इस पर संस्थान ने एक जांच समिति का गठन कर दिया। समिति ने अपनी जांच में पाया कि फै़ज़ की यह नज़्म हिंदू विरोधी नहीं, बल्कि सत्ता के विरोध का प्रतीक है। हालांकि यह तथ्य, साहित्य की सामान्य समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति बता सकता था।

लेकिन जब किसी विचारधारा के प्रति विद्वेष सामान्य बुद्धि पर हावी हो जाये तो कानपुर की घटना का दोहराव होना ही होता है। हाल ही में यह हुआ भी। 2015 की अत्यधिक चर्चित और पुरस्कृत मराठी फ़िल्म 'कोर्ट' के अभिनेता वीरा साथीदार की स्मृति में नागपुर में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। वीरा एक लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। 2021 में महज 61 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। फ़िल्म 'कोर्ट' में उन्होंने नारायण कांबले का किरदार निभाया था। इस फ़िल्म ने दुनियाभर में लगभग 60 करोड़ की कमाई की थी। वीरा के स्मृति आयोजन में 'हम देखेंगे...' नज़्म गायी गयी। किसी दक्षिणपंथी संगठन के सदस्य ने इसकी शिकायत पुलिस को कर दी। पुलिस ने भी आनन-फानन में मामला दर्ज कर लिया। उसने स्व. साथीदार की पत्नी पुष्पा समेत अन्य के खिलाफ देश की एकता-अखंडता को नुकसान पहुंचाने, धार्मिक भावना भड़काने और अशांति फैलाने के आरोप में एफ़आईआर दर्ज की है।

शिकायत में कहा गया है कि फैज़ की कविता में 'सिंहासन हिलाने' और 'तानाशाही के दौर' जैसी बातें कही गई हैं। वह भी ऐसे समय में जब पहलगाम हादसे के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चल रहा है। अब यह कोई लाल बुझक्कड़ ही बता सकता है कि सालों से गायी जा रही एक नज़्म या कविता का दो देशों के बीच उपजे तनाव से क्या वास्ता हो सकता है- खासतौर से तब, जब वह नज़्म किसी देश, समाज या धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि तानाशाही और अन्याय के विरुद्ध लिखी गई हो। यहां ये बताना लाज़िमी है कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कद्दावर नेता भी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के प्रशंसक थे और जिस नज़्म पर इस वक़्त सवाल खड़े किये जा रहे हैं, वह भी अटल जी को बेहद पसंद थी। लेकिन न जाने क्यों दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और मजबूती का दावा करने वाली उसकी सरकार को अपने इस पुरखे के आचरण-व्यवहार से सबक लेना चाहिये।

फै़ज़ की बात चली है तो यह बताना ज़रूरी है कि 2022 में सीबीएसई ने 10वीं कक्षा सामाजिक विज्ञान की किताब से उनकी कुछ कविताएं और लोकतंत्र से संबंधित अध्याय हटा दिये थे। इधर हाल ही में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रो. अली ख़ान महमूदाबाद को सोशल मीडिया पर उनकी एक पोस्ट के बहाने गिरफ्तार किया गया, अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई है। प्रो. ख़ान के खिलाफ शिकायत करने वाली हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया,एक खबरिया चैनल की एंकर के छ: बार पूछने पर भी बता नहीं पाईं कि आखिर उस पोस्ट में कौन सा शब्द, कौन सा वाक्य आपत्तिजनक था। इन्हीं मोहतरमा का एक पुराना वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे राम रहीम को बलात्कारी कहने से बचती नज़र आ रही हैं। रेनू भाटिया की तरह भाजपा का कोई नेता या कार्यकर्ता नहीं बता पा रहा है कि जब कर्नल सोफिया कुरैशी और भारतीय सेना के बारे में अनर्गल बयान देने वाले मंत्रियों को बचाने की सारी कोशिशें की जा रही है, तब प्रो. महमूदाबाद और पुष्पा साथीदार पर कार्रवाई क्यों की गई। क्या सिर्फ इसलिए कि दोनों में से एक मुसलमान है और दूसरा अंबेडकरवादी!

यह याद रखा जाना चाहिये कि हिन्दुस्तान हमेशा से उदार प्रवृत्तियों वाला देश रहा है और यहां असहमतियों-आलोचनाओं का सम्मान होते आया है। सरकार से अलग राय रखने और सवाल पूछने वालों पर बेजा कार्रवाई कर जनता को डराने की कोशिश ही न की जाये तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा। वरना एक न एक दिन यह डर ख़त्म हो जायेगा। और तब क्या होगा - हम देखेंगे...


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