Top
Begin typing your search above and press return to search.

नूरजहाँ! यादें!

नू नूरजहाँ ने फिल्म में यह कव्वाली गाई थी, तब वह भी जवान थी और हम भी जवान थे

नूरजहाँ! यादें!
X

- हरिशंकर परसाई

गज़ल उसने छेड़ी मुझे साज देना,
ज़रा उम्रे - रफ़्ता को आवाज़ देना ।
आहें न भरीं शिकवे न किए
कुछ भी न जुबाँ से काम लिया
तिस पर भी मुहब्बत छिप न सकी
जब तेरा किसी ने नाम लिया
हम दिल को पकड़कर बैठ गए।
हाथों से कलेजा थाम लिया


नू नूरजहाँ ने फिल्म में यह कव्वाली गाई थी, तब वह भी जवान थी और हम भी जवान थे । फिर नौका विहार करते हुए नूरजहाँ ने गाया था - 'हवा में उड़ता जाए, मेरा लाल दुपट्टा मलमल का।' तब वह भी जवान थी और हम भी जवान थे।

35 साल बाद नूरजहाँ भारत आई। पाकिस्तान की सनकी तानाशाही ने नूरजहाँ के भारत में गाने पर रोक लगा दी। मेंहदी हसन ने गाया, मगर नूरजहाँ को पाकिस्तान सरकार ने क्यों नहीं गाने दिया?

एक तरह से अच्छा ही हुआ। हमारी पीढ़ी के जिन लोगों ने नूरजहाँ को जवानी में गाते देखा-सुना था, उन्हें बड़ा सदमा लगता, लगभग बुढ़ा गई नूरजहाँ को देखकर। अभी हमने काननबाला का चित्र देखा-चश्मा लगाए, श्वेतकेशी बुढ़िया नाती-पोतों को खिला रही है। बड़ा बुरा लगा। प्रथमेश बरुआ के साथ अभिनय करती कानन को हमने देखा-सुना था - 'दूर देश का रहनेवाला आया देश पराए ।' और याद आया, कानन ने सहगल के साथ कलेजा उलीच दिया था।

नूरजहाँ 35 साल बाद आई तो पुरानी किशोरावस्था और जवानी की यादें ताजा हो गईं। पहली अवाक् (साइलेंट) फिल्म हमने देखी थी - भक्त बोधन। प्रवासी सिनेमा भी होते थे । टिकट के पीछे लिखा रहता था - 'यह टिकिट सिर्फ एक आदमी के लिए है। नशा करके ऊधम करनेवाले को बाहर निकाल दिया जाएगा। मशीन फेल होने पर पैसा वापस नहीं किया जाएगा।' एक आदमी पर्दे के सामने कोने में एक छड़ी लिये खड़ा रहता था। वह छड़ी से पात्र बताकर - यह बतलाता था कि वह पात्र क्या बोल रहा है। वह डॉयलॉग बोलता था । अगर उसे देर हो जाती या वह भूल जाता तो दर्शक चिल्लाते थे - अबे, बता न तेरा बाप क्या बोल रहा है। स्वर को बाँधना तब विज्ञान को आ चुका था । तवे का बाजा - ग्रामोफोन चल चुका था और पहला गाना जो हमने सुना था वह था - 'छोटी-बड़ी सुइयाँ री, जाली का मेरा काढ़ना।'

फिर देखा पहला सवाक चित्र - अछूत कन्या । अशोककुमार देविकारानी। हमारे कस्बे से तीसरा स्टेशन था - हरदा। यहाँ टाकीज था। 'अछूत कन्या' चल रहा था। जो देख आते वे चर्चा करते और हमारा जी ललचाता। हम अब मैट्रिक में पढ़ते थे। हम तीन दोस्त रोज शाम को स्टेशन घूमने जाया करते थे। एक शाम हरदा जानेवाली रेलगाड़ी खड़ी थी। हम तीनों उसमें बिना टिकिट बैठ गए। अपने घर में हमने नहीं बतलाया था। हरदा पहुँचे । चटाई का टिकिट लेकर 'अछूत कन्या' देखा ।
'मैं वन का पंछी बनके वन-वन डोलूँ रे
मैं वन की चिड़िया बनके वन-बन डोलूँ रे ।
तू डाल-डाल मैं पात-पात बिन पकड़े
कभी न छोडूं रे ।'

हमारे मन में अशोककुमार और देविकारानी बस गए। शादी करेंगे तो किसी अछूत की लड़की से, अगर वह देविकारानी जैसी हुई। सुबह की गाड़ी से जब बिना टिकिट घर लौटे तो तीनों की खूब पिटाई हुई। बहुत तकलीफ सही है हमने अशोककुमार और देविकारानी के लिए। अभी हमने देविकारानी का चित्र उनके पति चित्रकार निकोलस रोरिक के साथ देखा । बूढ़ी हो गई है और मोटी हो गई है। आदमी चाहे बूढ़ा हो जाए, पर जिस स्त्री को उसने जवानी में पसंद किया है, उसे बूढ़ी देखकर उसे दु:ख होता है।

अशोककुमार की दूसरी फिल्म 'बंधन' तब देखी, जब मैं खंडवा में नया-नया अध्यापक हुआ था। 20-21 साल की उम्र होगी। अशोककुमार खंडवा के रहनेवाले हैं। उनके पिता वहाँ वकील थे। किशोरकुमार मेरा छात्र था। जब 'बंधन' फिल्म लगी, तो खंडवा में हल्ला-अपना अशोककुमार हीरो । हमने फिल्म देखी। अशोककुमार युवा अध्यापक हैं। हम भी युवा अध्यापक थे। लीला चिटनीस कस्बे के प्रतिष्ठित परिवार की लड़की है। अशोककुमार लड़कों से गाना गवाते हैं-

चल चल रे नौजवान
कहना मेरा मान मान-
चल रे नौजवान !

हमारे अध्यापक मन को, यह अध्यापक के प्रेम की फिल्म बहुत भा गई थी। रूमानी हीरो में मुझे अशोककुमार सबसे पसंद है। सुंदर, सौम्य, शरीफ, कोमल । 'हीमेन' की परंपरा फिल्मों में बाद में आई। लात, घूँसे, तेरी ऐसी-तैसीवाला हीरो बाद में आया। सुंदरी उचक्के पर मोहित होने लगी। अशोककुमार के जमाने की बात दूसरी थी । तब देवदास होता था, जो एक आत्मघाती मोह का शिकार हो जाता था। जो किशोर दिलीपकुमार और सहगल को देवदास के रूप में देखते थे, वे मन में यह रूमान पालते थे कि किसी दिन वे क्षय रोग की आखिरी स्टेज में पारो के घर के सामने पहुँचेंगे और मर जाएँगे।

धंधे की मज़बूरी में अशोककुमार को एक फिल्म में हमने हाथ में तलवार लिये लड़ते देखा । बहुत भद्दा लगता था। दिलीपकुमार तभी से पसंद है - दूसरे के लिए हर बार बलिदान करनेवाला। अच्छा भाई, तुझे यह पसंद है, तो तू ही इससे शादी कर ले। हम कहीं जाकर रोएँगे और हमेशा तुम दोनों का भला करते रहेंगे। तभी सोहराब मोदी के पारसी थियेटर के डॉयलॉग भी फिल्म में सुने थे- सुन लो और आँख खोलकर देख लो । मोतीलाल को तभी देखा था और अपना ये सबसे अच्छा अभिनेता था । अद्भुत था ।
उन दिनों फिल्मों में समाज-सुधार की हल्की-सी कोशिश होती थी। इसके बाद के युग में 'इंटरटेनमेंट' और ग्लेमर प्रमुख हो गए। दस गाने, चार नाच, यह चटक, वह मटक, जमीन-आसमान के कुलाबे एक किए, रंगीन और खूबसूरत बेवकूफियों को जोड़ा और बॉक्स ऑफिस कर दिया। पिछले दशक से सामाजिक समस्याएँ फिल्मों में आने लगी हैं, जबसे शिक्षित, चेतन और वामपंथी विचारधारा के डायरेक्टर होने लगे हैं। मगर 'आवारा' से मशहूर हुए राजकपूर अभी भी निरर्थक 'सत्यं शिवं सुंदरं' बना लेते हैं। रहते किस दुनिया में हैं और फिल्म किस दुनिया की बनाते हैं।

हाँ, याद आया, अपने भी एक चार्ली थे- चार्ली चैपलिन की तरह मूँछें रखते थे । बाद में चार्ली चैपलिन की तरह मूँछें राजकपूर ने भी रखीं। अपने चार्ली में मूँछों के सिवा चार्ली चैपलिन का कुछ नहीं था। यों देवानंद ग्रेगरी पेक बन रहे थे और एक रिचर्ड बर्टन भी थे। सुरैया ग्रेटा गार्बो होते-होते बच गई। अपने चार्ली हँसी पैदा करने की कोशिश करते थे। कैसी हँसी रात को सो रहे हैं। खटमल काटते हैं, तो 'ओ मेरी माँ' चिल्लाते हैं।

जिन दिनों नूरजहाँ गाती थी, तब सब अपना-अपना गाते थे, खुर्शीद कानन, अशोककुमार और दिलीपकुमार भी। तब 'बैक ग्राउंड म्यूजिक' नहीं था। बाद में तो सबके कंठ से लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी गाने लगे ।

पहले की यह खबर गलत थी कि नूरजहाँ के भारत में गाने पर रोक लगी है। नूरजहाँ समारोह में गाया 'अनमोल घड़ी' का गाना 'आवाज दे कहाँ है' बहुत पसंद किया गया। 60 साल की उम्र में जवानी का स्वर था-

$गज़ल उसने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्रे रफ़्ता को आवाज़ देना ।
$गज़ल उसने छेड़ी मुझे साज देना,
ज़रा उम्रे - रफ़्ता को आवाज़ देना ।
आहें न भरीं शिकवे न किए
कुछ भी न जुबाँ से काम लिया
तिस पर भी मुहब्बत छिप न सकी
जब तेरा किसी ने नाम लिया
हम दिल को पकड़कर बैठ गए।
हाथों से कलेजा थाम लिया


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it