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भगवती प्रसाद वर्मा के मामले में अदालत ने अभियोजन शिकायत का लिया संज्ञान

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रयागराज सब-जोनल ऑफिस ने भगवती प्रसाद वर्मा एवं अन्य के मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत 24 अप्रैल को विशेष न्यायालय (पीएमएलए) लखनऊ के समक्ष अभियोजन शिकायत (पीसी) दायर की थी

भगवती प्रसाद वर्मा के मामले में अदालत ने अभियोजन शिकायत का लिया संज्ञान
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प्रयागराज। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रयागराज सब-जोनल ऑफिस ने भगवती प्रसाद वर्मा एवं अन्य के मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत 24 अप्रैल को विशेष न्यायालय (पीएमएलए) लखनऊ के समक्ष अभियोजन शिकायत (पीसी) दायर की थी। अब अदालत ने पीसी का संज्ञान लिया।

इस मामले में एसीबी और सीबीआई लखनऊ ने आईपीसी, 1860 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की थी। इस एफआईआर के आधार पर ईडी ने जांच शुरू की। यह मामला 2007-2010 के दौरान उत्तर प्रदेश के सात जिलों (बलरामपुर, गोंडा, महोबा, सोनभद्र, संत कबीर नगर, मिर्जापुर और कुशीनगर) में आधिकारिक पद के दुरुपयोग, आपराधिक साजिश और मनरेगा निधि के दुरुपयोग से संबंधित है।

ईडी की जांच से पता चला कि तत्कालीन परियोजना निदेशक (डीआरडीए) एवं अतिरिक्त जिला कार्यक्रम समन्वयक मनरेगा, भगवती प्रसाद वर्मा और अतहर परवेज ने अन्य सरकारी अधिकारियों और निजी आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलीभगत करके संयुक्त समिति पंचायत उद्योग, चिनहट, लखनऊ और पंचायत उद्योग, झंझरी, गोंडा जैसी फर्मों से अत्यधिक दरों पर जॉब कार्ड, शिकायत पेटी, रजिस्टर, जनरेटर, टेंट, प्राथमिक चिकित्सा किट, पानी की टंकियां, साइनबोर्ड और मुद्रण सामग्री की खरीद की, जिससे सरकारी खजाने को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।

जांच ​​से अपराध की आय के सृजन और स्तरीकरण का पता चला, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के लखीमपुर और कानपुर में स्थित 97.18 लाख रुपए मूल्य की 9 अचल संपत्तियों (आवासीय भवन, कृषि भूमि, वाणिज्यिक और आवासीय भूखंड) को 29 नवंबर 2023 के अनंतिम कुर्की आदेश के तहत कुर्क किया गया।


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