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इस चेतावनी को सुनना होगा

मंगलवार को संसद भवन के बाहर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पत्रकारों से चर्चा में दो-तीन मार्के की बातें कही हैं

इस चेतावनी को सुनना होगा
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मंगलवार को संसद भवन के बाहर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पत्रकारों से चर्चा में दो-तीन मार्के की बातें कही हैं, जिन पर गौर फरमाया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने पत्रकारों के जरिए एक बार फिर आम जनता के लिए संदेश दिया है कि कांग्रेस आने वाले वक्त में भी जाति जनगणना के मुद्दे को उठाती रहेगी। श्री गांधी ने कहा कि मूल मुद्दा जाति आधारित जनगणना है और लोगों का पैसा किसे मिल रहा है? वे (भाजपा) इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करना चाहते हैं, वे इससे दूर भागते हैं। हम इस मुद्दे को आगे बढ़ाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि गरीबों को वह मिलता है जिसके वे हकदार हैं।

गौरतलब है कि हाल में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लगभग हर रैली में राहुल गांधी ने जाति जनगणना की बात की थी और साथ ही दावा किया था कि कांग्रेस की सरकार आने पर वह इसे अमल में लाएगी। तेलंगाना के अलावा कांग्रेस को किसी राज्य में जीत नहीं मिली, बल्कि उम्मीद के विपरीत मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भाजपा के पास चले गए। भाजपा जातिगत जनगणना के मुद्दे से बचती रही है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो यहां तक कह दिया था कि इस देश में केवल गरीबी ही जाति है और कोई जाति नहीं है। लेकिन जिस तरह छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में क्रमश: विष्णु देव साय और मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद दिया गया है, उससे दिखाई दे रहा है कि भाजपा को अंतत: राहुल गांधी की लीक पर ही चलना पड़ा है। भाजपा इस बात को मानती है या नहीं, ये अलग बात है।

संसद के बाहर राहुल गांधी ने दूसरी महत्वपूर्ण बात पं.नेहरू को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम पर की। गृहमंत्री अमित शाह ने पहले लोकसभा में और फिर सोमवार को राज्यसभा में भी जम्मू-कश्मीर को लेकर पं. नेहरू को निशाने पर लिया और उन पर गलतियों का ठीकरा फोड़ा। इसके बाद देश में इसी बात पर चर्चा होने लगी कि आजादी के बाद जब जम्मू-कश्मीर का विलय देश में हुआ और पाकिस्तानी कबाइलियों को भारतीय सेना ने हरा कर भगा दिया, उस वक्त और क्या-क्या हुआ था, तब किस तरह के हालात थे। उस बारे में माउंटबेटन से लेकर सरदार पटेल और नेहरू से लेकर शेख अब्दुल्ला और राजा हरिसिंह की क्या भूमिकाएं थीं।

किसकी गलती थी, किसकी नहीं, इस पर नयी बहस शुरु हो गई। ऐसी बहसें अगर स्वस्थ मानसिकता और निष्पक्षता से की जाएं, तब तो इनका लाभ है। मगर इस समय बहस नहीं होती, केवल दोषारोपण होता है और उसमें भी नेहरूजी पर ही लक्ष्य साधा जाता है। इन हालात में राहुल गांधी ने साफ कहा कि वे हमें इस मुद्दे (जाति जनगणना) से भटकाने के लिए जवाहरलाल नेहरू और अन्य के बारे में बात करते हैं।

राहुल गांधी ने एक बार फिर भाजपा की नब्ज बिल्कुल सही जगह पर पकड़ी है। देश में इस वक्त जाति जनगणना वाकई एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इसके जरिए ही सामाजिक न्याय के मकसद को पूरा किया जा सकता है। जब सामाजिक न्याय के लिए माहौल बनेगा, तब आर्थिक न्याय की प्रक्रिया भी अपने आप शुरु हो सकेगी। दरअसल ये सारी बातें एक-दूसरे पर ही आश्रित हैं और इसलिए राजनैतिक विमर्श में इनका केंद्र में रहना जरूरी है।

संसद सत्रों के तमाम दिनों में इन पर अधिक से अधिक विचार-विमर्श होना चाहिए। लेकिन अभी आलम ये है कि संसद में की जा रही विवादास्पद बातें ही सुर्खियां बनती हैं। 140 करोड़ लोगों के लिए नियम-कानून बनाते वक्त सरकार कितनी देर और कितनी गंभीरता से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करती है, इसकी कोई खबर ही आम जनता को नहीं हो पाती। जब कोई कानून बन जाता है या रद्द हो जाता है, तभी लोगों को पता चलता है। ये बात लोकतंत्र के लिए बिल्कुल अच्छी नहीं है। इसलिए राहुल गांधी ने ध्यान भटकाने वाली जो बात कही है, वो सटीक है।

राहुल गांधी ने तीसरी टिप्पणी इतिहास में नेहरूजी की भूमिका को लेकर की। दरअसल पं.नेहरू पर राज्यसभा में अमित शाह ने कहा कि अगर असमय सीजफायर नहीं होता, तो आज पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर नहीं होता। हमारी सेना जीत रही थी वो भाग रहे थे। नेहरू दो दिन रुक जाते तो पूरा पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर तिरंगे के तले आ जाता। इतिहास के एक बेहद जटिल मुद्दे का यह अतिसरलीकरण है कि अगर दो दिन का इंतजार किया जाता तो आज पीओके ही नहीं होता। जिन नेहरू की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता का लोहा दुनिया के बड़े नेता मानते रहे हैं, उन्हें भाजपा आला दर्जे के मूर्ख नेता की तरह प्रस्तुत कर रही है, और लोगों को यह बता रही है कि देश की समस्याओं के नेहरू जिम्मेदार हैं। राहुल गांधी ने अमित शाह की इस टिप्पणी पर कहा कि 'पंडित नेहरू ने भारत के लिए अपनी जान दे दी, वह वर्षों तक जेल में रहे। अमित शाह इतिहास से अनजान हैं। मैं उनसे इतिहास जानने की उम्मीद नहीं कर सकता, उन्हें इसे दोबारा लिखने की आदत है...।'

राहुल ने यहां बहुत गहरी बात कही है। क्योंकि तथ्यों को नजरंदाज करते हुए इतिहास को दोबारा लिखने की कोशिश वही करते हैं, जो बिना योगदान के अपने लिए श्रेय की तलाश में रहते हैं। भाजपा के पूर्वजों का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कोई योगदान नहीं था, ये सब जानते हैं और लोग अब ये भी देख रहे हैं कि भाजपा के दस सालों के दीर्घ शासन में देश कैसी समस्याओं से घिर चुका है। इनमें सबसे बड़ी समस्या लोकतंत्र को बचाने की है। अनुच्छेद 370 के हटाने पर सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले के बाद अमित शाह ने संसद में विपक्ष को चेतावनी दी कि लौट आइए, नहीं तो जितने हो, उतने भी नहीं बचोगे। यह अपने आप में एक अलोकतांत्रिक टिप्पणी है। क्योंकि विरोध करना विपक्ष का धर्म है। इसी तरह शिवसेना सांसद संजय राउत पर प्रधानमंत्री के खिलाफ लेख लिखने पर एफआईआर दर्ज होना, या जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों को धरना देने पर 20 हजार और राष्ट्र विरोधी नारे लगाने पर 10 हजार रुपये के जुर्माने का फरमान जारी करना, सभी लोकतंत्र के खत्म होते जाने की चेतावनी है।
राहुल गांधी इस चेतावनी को बार-बार दोहरा रहे हैं, देखना है कि जनता इसे सुनती है या नहीं।


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