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ये है मंटो मेरी जान मंटो की रचनाओं का कोलाज़

शारदा सुनो तो। हां बोलो

ये है मंटो मेरी जान मंटो की रचनाओं का कोलाज़
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- अनुवाद एवं संयोजन : अखतर अली

शारदा सुनो तो।
हां बोलो ?
आज कल तुम किसके साथ हो ?
कल महेश के साथ थी और आज रमेश के साथ हूं।
और कल ?
कल तो इतवार है कल मैं अपने खुद के साथ रहूंगी।
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अरे दीनानाथ आज कल कहां रहते हो ?
आज कल मैं कहीं नहीं रहता। दिन भर सड़क पर चलता हूं , नल का पानी पीता हूं और रात को किसी बंद दुकान की सीढियों पर सो जाता हूं।
लेकिन तुम्हारे पास तो तुम्हारे रहने लायक एक अच्छा सा घर था।
उसे मकान मालिक ने खाली करा लिया है।
क्यों ?
वहां पर वह अपनी भैंस रखेगा।
वह तो भैंस के रहने लायक जगह है ही नहीं वहां तो उसकी भैंस बीमार हो जायेगी।
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मंटो कल मेरी किताब का विमोचन है आप भी आइयेगा।
विमोचन किस के हाथो होगा ?
सेठ दौलत चंद के हाथो।
यानि आप अपनी किताब की नथ उतरवाई की रस्म सेठ जी से करवा रहे है।
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मंटो तुम ज़रा भी मज़हबी नहीं हो।
कैसी बात कर रहे है मैं तो जब भी जुमा को शराब पीता हूं तो पानी बकायदा मस्जिद के हौज़ का ही लेता हूं।
लेकिन कल तुम मौलाना साहब से मस्जिद के संबंध में क्या कह रहे थे ?
वह मस्जिद के संबंध में नहीं गर्मी के संबंध में कह रहा था।
क्या कह रहे थे ?
यही कि गर्मी में वहां का फ़र्श इतना गरम हो जाता है कि मस्जिद में कदम रखते ही लगता है जहन्नम में आ गये।
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जानते हो भारत पाक बटवारे में एक लाख हिंदू और एक लाख मुसलमान मारे गये।
यार तुम्हारे में बात करने की ज़रा भी तमीज़ नहीं है। मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुसलमान मारे गये। कहो कि दो लाख इंसान मारे गये , कब समझोगे कि बंदूक से मज़हब का शिकार नहीं किया जा सकता।
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तुमने कभी किसी औरत को अपने बच्चे को अपना दूध पिलाते हुए देखा है ?
कैसी बात कर रहे हो यह गंदी बात है।
फिर भी कभी देखना उस वक्त उसके सीने को गोलाइंया मस्जिद के मेहराब के जैसे लगती है वैसी ही पाकीज़गी से भरपूर।
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मैं इस कदर आशिक मिज़ाज हूं कि एक बार तो मैंने एक लड़की से उसे देखे बिना ही मोहब्बत कर ली थी। यह मोहब्बत टेलीफोन पर राँग नंबर पर बात करने के वक्त हुई थी। जब मैंने उससे मोहब्बत का इज़हार किया तो वह बोली – आपने तो मेरे को देखा नहीं है अगर मैं बदसूरत हुई तो ?
मैंने कहा – मैं तब भी तुम से मोहब्बत करुगा क्योकि मैं ख़ुदा नहीं हूं जो सिफ़र् अच्छे लोगो को ही पसंद करता है।
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तवायफ़ का कोठा और पीर की मज़ार इन दो जगहों पर मैं नहीं जाता। यहाँ पहली जगह इंसान अपनी औलाद से और दूसरी जगह अपने ख़ुदा से धंधा करवाता है।
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मंटो तुमने मेरे से पांच रुपये उधार लिये थे अब वापस देदे वरना मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा।
ठीक है आप मेरा सिर फोड़ देना लेकिन पहले यह बताइये क्या आप को सिर फोड़ना आता है ? देखिये हर काम करने का तरीका होता है मैं उस आदमी के हाथों अपना सिर नहीं फुडवा सकता जिसके पास सिर फोड़ने का सलीका भी न हो।
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हर दिल में मोहब्बत की पैदावार नहीं होती। बहुत से दिलो की ये भूमि बंजर भी होती है। कुछ लोग चाह कर भी मोहब्बत पैदा नहीं कर सकते क्योकि उनकी ख्वाहिशे बाँझ होती है।
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मै ऐसी श्रद्दांजलि को निरस्त करता हूँ जिसमे मरने वाले के चरित्र को लांड्री में भेज कर धुलवाया जाये और बकायदा इस्त्री कर के पेश किया जाये।
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मै उस घर को घर नहीं मानता जिसमें चिमटा चूल्हा और तवा न हो।
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मुंबई की साहित्य बरदारी में यह बात मज़े लेकर कही जाती थी कि उर्दू साहित्य में दो बाते बहुत अच्छी हुई कि ग़ालिब कहानीकार नहीं हुए और मंटो शायर नहीं हुए , ये वही हुए जो इन्हें होना था ।


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