वहशी होता समाज वहशी होता समाज, अब मानवीय संवेदनाएं नहीं रही
क्या आदमी नफरत और गुस्से की आग में इतना वहशी भी हो सकता है कि पीट-पीटकर किसी की हत्या कर दे

क्या आदमी नफरत और गुस्से की आग में इतना वहशी भी हो सकता है कि पीट-पीटकर किसी की हत्या कर दे? क्या हमारे समाज में जंगल का कानून लागू है? जो इंसान को न तो अब पुलिस की जरूरत है और न ही किसी कानून की। समाज में कोई भी अपराध घटता है, तो अपराधी को पकडऩे के लिए पुलिस है और उसे सजा दिलाने के लिए कानून। कैसा भी अपराध हो, लोग अपने हाथ में कानून नहीं ले सकते।
यदि लोग खुद ही इंसाफ करने लगेंगे, तो पुलिस और कानून का क्या रोल होगा? जमशेदपुर की इन घटनाओं से एक बार फिर हमारे सभ्य समाज होने के दावे पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। क्या हम सभ्य समाज से वहशी समाज में तब्दील होते जा रहे हैं ? आदमी से एक हिंसक जानवर, जिसमें मानवीय संवेदनाएं नहीं हैं। वह इंसानियत भूल रहा है और दिन-पे-दिन जानवर बनता जा रहा है।
झारखंड के जमशेदपुर और उसके आस-पास के इलाकों में एक पखवाड़े के अंदर बच्चा चोरी की अफवाह और उसके संदेह में उन्मादी भीड़ ने बर्बरतापूर्ण तरीके से तकरीबन दस लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी है। कोल्हान प्रमंडल में बच्चा चोरी की अफवाहों के बीच दो जगहों पर उग्र भीड़ ने छह लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी। ग्रामीणों को शक था कि मारे गए लोग बच्चा चोर गिरोह के मेंबर हैं।
इसके कुछ दिन पहले भी जादूगोड़ा में इसी तरह की अफवाह के बाद भीड़ ने दो अन्य लोगों को पीट-पीटकर मार डाला था। मरने वालों में ज्यादातर एक ही समुदाय से जुड़े हुए हैं। इन घटनाओं के बाद से ही जमशेदपुर शहर समेत आस-पास के इलाकों में भारी तनाव है।
इन इलाकों में हालात इतने खराब हो गए हैं कि स्थिति को सामान्य रखने के लिए झारखंड सरकार ने अलग से छह कंपनी अतिरिक्त बल जमशेदपुर को मुहैया कराया है। जाहिर है कि यह चौंका देने वाली खबरें हैं। जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर तक हिला दें। क्या आदमी नफरत और गुस्से की आग में इतना वहशी भी हो सकता है कि पीट-पीटकर किसी की हत्या कर दे ? क्या हमारे समाज में जंगल का कानून लागू है ?
जो इंसान को न तो अब पुलिस की जरूरत है और न ही किसी कानून की। समाज में कोई भी अपराध घटता है, तो अपराधी को पकडऩे के लिए पुलिस है और उसे सजा दिलाने के लिए कानून। कैसा भी अपराध हो, लोग अपने हाथ में कानून नहीं ले सकते। यदि लोग खुद ही इंसाफ करने लगेंगे, तो पुलिस और कानून का क्या रोल होगा ? जमशेदपुर की इन घटनाओं से एक बार फिर हमारे सभ्य समाज होने के दावे पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। क्या हम सभ्य समाज से वहशी समाज में तब्दील होते जा रहे हैं ?
आदमी से एक हिंसक जानवर, जिसमें मानवीय संवेदनाएं नहीं हैं। वह इंसानियत भूल रहा है और दिन-पे-दिन जानवर बनता जा रहा है।
जिन अफवाहों के आधार पर इन लोगों की जान चली गई, यदि इसकी तह में जाएं तो इनमें जरा सी भी सच्चाई नहीं है। खुद स्थानीय पुलिस का कहना है कि किसी भी गांव से बच्चा चोरी या गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस को नहीं मिली है। यह सरासर अफवाहें हैं। कुछ लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाह फैला रहे हैं। इन अफवाहों के बाद से ही लोगों में असुरक्षा की भावना है और वे किसी भी अंजान शख्स को देखते ही उसे बच्चा चोर समझ कर हमला कर देते हैं।
राज्य में इतना सब कुछ हो गया, लेकिन सरकार और पुलिस प्रशासन अपनी ओर किसी भी तरह की चूक से इंकार कर रहा है। दस लोगों की जान जाने और इतनी तबाही हो जाने के बाद, पुलिस और प्रशासन अब कह रहा है कि ''वे अफवाह फैलाने वालों पर शिकंजा कसेंगे। अफवाह फैलाने वालों को चिह्नित कर उन्हें सजा दी जाएगी। अफवाह-अशांति फैलानेवालों पर अविलंब कार्रवाई होगी। बच्चा चोर की अफवाह से निपटने के लिए इन इलाकों में जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाएंगे।
लाउडस्पीकर के माध्यम से यह एलान किया जाएगा कि बच्चा चोरी होने की अफवाहों पर कोई ध्यान न दें। यदि ऐसी कोई अफवाह सामने आती है, तो वे पहले पुलिस को सूचित करे।ÓÓ यानी जो काम पुलिस को पहले करना चाहिए था, वह अब कर रही है। यदि पुलिस प्रशासन पहले ही सतर्क होता, तो यह वाकिए पेश ही नहीं आते और बेकसूर लोगों को अपनी जान नहीं गंवाना पड़ती।
सच बात तो यह है कि इस मामले में पुलिस, प्रशासन स्थिति नियंत्रित करने में पूरी तरह से नाकामयाब रहा है। जब शुरूआत में ही इस तरह की पहली घटना सामने आई थी, पुलिस को उसी समय चैकस हो जाना चाहिए था। इसके बाद एक और इलाके में ऐसी घटना घटी, पुलिस ने उस वक्त भी कोई उचित कार्रवाई नहीं की। जब मामला ज्यादा बढ़ गया, तब जाकर पुलिस की नींद खुली। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। जमशेदपुर एक संवेदनशील शहर है।
एक छोटी सी घटना की वजह से यह शहर अशांत हो जाता है। जब इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आईं, तो जाहिर है कि शहर में बवाल होना ही था। कुछ सियासी लोगों ने इन घटनाओं को साम्प्रदायिक रंग दे दिया। ऐसे में प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वह पहले ही दिन से अपनी पूरी ताकत से हुड़दंगियों को नियंत्रण में ले लेती।.
हंगामा, तोडफ़ोड़ या हत्या-मारपीट में शामिल लोग चाहे किसी भी संप्रदाय के क्यों न हों, किसी भी राजनीतिक दल के क्यों न हों, कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उन्हें नहीं छोड़ा जाना चाहिए। प्रशासन को निष्पक्ष, निडर होकर कार्रवाई करना चाहिए। ताकि भविष्य में कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत न करे।
जिला प्रशासन और पुलिस को अफवाह फैलाने वालों, सामाजिक समरसता बिगाडऩे वालों और समाज में अशांति फैलाकर कानून हाथ में लेने वालों को चिह्नित कर, उन पर कड़ी कार्रवाई करना चाहिए थी। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। जब मामला ज्यादा बिगड़ गया, तब जाकर जिला प्रशासन और पुलिस जागी।
जहां तक इस मामले में झारखंड सरकार की भूमिका का सवाल है, तो मुख्यमंत्री रघुवर दास दस लोगों की हत्या के बाद होश में आए। जब यह मामला मीडिया के माध्यम से पूरे देश में पहुंचा और राज्य सरकार की छीछालेदर हुई, तब उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हुआ। उन्होंने लोगों से अपील की, कि ''वे अफवाहों पर ध्यान नहीं दें। समाज में अशांति फैलाने और विधि व्यवस्था भंग करने की संभावना होने पर अविलंब प्रशासन को सूचित करें।
जमशेदपुर में अमन कायम करने के लिए रघुवर सरकार और पुलिस प्रशासन जो कदम अब उठा रही है, यदि ये कदम पहले ही उठाए जाते, तो मामला इतना न बिगड़ता और न ही इतने लोगों की जान जाती। इन मामलों में आखिर में जैसा कि होता आया है, सरकार ने मारे गये व्यक्तियों के आश्रितों को दो-दो लाख रुपये का मुआवजा देने का एलान कर, अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है। मानो यह मुआवजा मरने वाले की जान की भरपाई कर देगा।
उसके परिवार की खुशियां वापिस कर देगा। देश में इस तरह के मामले कहीं भी पेश आएं, बेहद संवेदनशील हैं। इस तरह के मामलों पर पुलिस और सरकार को तुरंत कार्यवाही करना चाहिए। लेकिन अफसोस, सरकारें कहीं भी तत्परता से काम नहीं करतीं। यही वजह है कि कभी राजस्थान के अलवर, तो कभी उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से हिंसक घटनाओं के होने की खबरें आती हैं।
जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में किसने बच्चे चोरी होने की अफवाह फैलायी और किसने बेगुनाहों के खून से होली खेली, यह जांच का विषय है। झारखंड सरकार इस पूरे मामले की निष्पक्ष ढंग से जांच कराए और जांच में जो दोषी पाया जाए, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। अफवाह फैलाने वाले देश और समाज के दुश्मन हैं। यदि समय रहते उन पर कार्यवाही नहीं की गई, तो वे फिर किसी और को अपनी साजिश का शिकार बनाएंगे।
-जाहिद खान


