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राहुल गांधी से भाजपा की चिढ़ का कारण

राहुल गांधी से भाजपा की नफरत क्यों करती है, क्यों उनके हर काम से, हर कदम से भाजपा को आपत्ति होती है

राहुल गांधी से भाजपा की चिढ़ का कारण
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राहुल गांधी से भाजपा की नफरत क्यों करती है, क्यों उनके हर काम से, हर कदम से भाजपा को आपत्ति होती है, इसका एक बड़ा कारण शनिवार को सामने आया, जब राहुल जम्मू-कश्मीर के पुंछ पहुंच गए। जिस समय राहुल पुंछ में पाक की गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिजनों से मिल रहे थे, उजड़े हुए घरों को देख रहे थे, बेरौनक आंखों में भरे हुए दर्द को समझने और बांटने की कोशिश कर रहे थे, लोगों को हिम्मत बंधा रहे थे कि उनका दुख अनसुना नहीं रहेगा, वो राष्ट्रीय स्तर तक उनकी आवाज़ उठाएंगे, प्रधानमंत्री के सामने उनकी पीड़ा को बयां करेंगे, उस समय श्री मोदी राजधानी दिल्लूी में नीति आयोग की बैठक ले रहे थे, जिसमें 2047 के विकसित भारत का रोडमैप बनाने की बातें हो रही थीं।

फर्क जाहिर है राहुल गांधी आज 2025 के भारत में जो कुछ हो रहा है इसकी फिक्र कर रहे हैं, लेकिन श्री मोदी आज से 25 साल बाद के भारत की बात कर रहे हैं। मान लिया कि अच्छे राजनेता को दूरदृष्टा होना चाहिए, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि पास की चीजें नजर ही न आएं। 2047 में भारत कैसा रहेगा, इसकी तैयारी अभी के हाल पर निर्भर करती है। और अभी का हाल ऐसा है कि नरेन्द्र मोदी जैसे कभी मणिपुर नहीं गए, वैसे ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर जाने की जहमत नहीं उठाई। हालांकि इस बीच प्रधानमंत्री बिहार, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तमाम राज्यों में हो आए हैं। जबकि राहुल गांधी पहलगाम हमले के फौरन बाद अपनी विदेश यात्रा अधूरी छोड़कर वापस आए, श्रीनगर गए, इसके बाद कानपुर और करनाल जाकर भी पीड़ित परिवारों से मिले।

राहुल गांधी ने शुरु से पहलगाम हमले को लेकर काफी संयम, समझदारी और संवेदनशीलता दिखाई है। जब आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ एकजुटता दिखाने की जरूरत थी, तो बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने कहा कि सरकार जो चाहे फैसला ले, हम साथ हैं। सरकार की तरफ से दो बार बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी राहुल शामिल हुए, जबकि प्रधानमंत्री होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी ने इन बैठकों से दूरी बनाए रखी। राहुल गांधी ने इस पर भी सवाल नहीं किए, बस उन्होंने संसद का विशेष सत्र बुलाने की सलाह दी, ताकि दुनिया को मजबूती का संदेश दिया जा सके। राहुल गांधी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भी सेना के शौर्य की सराहना की। मगर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक इसी कोशिश में लगे रहे कि कैसे भी करके इसका सियासी फायदा लिया जाए। धर्म पूछा जाति नहीं जैसी पोस्ट भाजपा ने सोशल मीडिया पर डाली, ऑपरेशन सिंदूर के बाद सैन्यवर्दी में नरेन्द्र मोदी का आदमकद पोस्टर लगाया गया, मानो वही लड़ाकू विमान लेकर पाकिस्तान तक गए थे। इतना सब काफी नहीं था, जो अब नरेन्द्र मोदी ऑपरेशन सिंदूर को भी अपनी निजी उपलब्धि की तरह पेश कर रहे हैं। राजस्थान में उनका दिया भाषण इसका सबूत है, जिसमें उन्होंने मेरी रगों में लहू नहीं गर्म सिंदूर दौड़ता है जैसा घटिया फिल्मी संवाद कहा।

देश ने पहला ऐसा प्रधानमंत्री देखा है, जो अपनी शारीरिक संरचना को लेकर भी बार-बार बयान बदल सकता है। एक साल पहले तक श्री मोदी कह रहे थे मैं नॉनबायलॉजिकल हूं, अब अपनी रगों में गर्म सिंदूर बहने का दावा उन्होंने किया है, लेकिन 2014 में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मेरे खून में लोकतंत्र है, इसी साल उन्होंने ये भी कहा था कि मेरे खून में व्यापार है, एक बार वे अपने खून में धर्मनिरपेक्षता को भी बता चुके हैं और अब 2025 में उनकी रगों में बहने वाली चीज फिर बदल गई है।

इन दावों को सुनकर तो यही लगता है कि सबसे पहले प्रधानमंत्री अपने सामान्य इंसान होने का सबूत ही दे दें। क्योंकि देश को सामान्य भावनाएं रखने वाला नेतृत्व ही चाहिए, जो साधारण लोगों की तकलीफों को समझ सके। नरेन्द्र मोदी ने जितना खुद को विशिष्ट और दैवीय बताने की कोशिश की, उतना वे जनता से कट चुके हैं, ये अब नजर आ रहा है। इसलिए उनसे न गृह नीति, अर्थनीति संभाली जा रही है, न विदेश नीति। ऐसे में राहुल गांधी अगर पूछते हैं कि क्या जेजे बताएंगे कि भारत को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ दिया गया है? पाकिस्तान की निंदा करने में एक भी देश ने हमारा साथ क्यों नहीं दिया? डोनाल्ड ट्रंप से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने के लिए किसने कहा? तो भाजपा उसका बुरा मानकर राहुल गांधी को देशविरोधी बताती है।

ज्ञात हो कि राहुल गांधी ने इस बार विदेश मंत्री जयशंकर से सवाल पूछे हैं, उन्होंने जेजे किस संदर्भ में कहा इस पर भी सियासी घमासान मचा है। ऐसे ही सवाल वे नरेन्द्र मोदी से भी पूछ चुके हैं, मगर जवाब देने की जगह सवालों को ही गलत ठहराया जा रहा है। हालांकि मोदी सरकार का तो पूरा कार्यकाल ही जवाबदेही से बचने का रहा है। 15 लाख हर खाते में क्यों नहीं आए, नोटबंदी से भ्रष्टाचार और आतंकवाद खत्म क्यों नहीं हुआ, जीएसटी के कारण छोटे व्यापारियों को परेशानी क्यों हो रही है, लॉकडाउन का फैसला लेने से पहले प्रवासी मजदूरों के बारे में सरकार ने क्यों नहीं सोचा, जब कोरोना से हाहाकार मचा था, तब नमस्ते ट्रंप का भव्य आयोजन क्यों हुआ, महाकुंभ में मची भगदड़ में कितने लोग मारे गए, रेलवे की हालत बदतर क्यों हो रही है, किसानों को एमएसपी का वादा कब पूरा होगा, अडानी-अंबानी के पास ही देश के सारे संसाधन क्यों जा रहे हैं, पुलवामा के दोषी कहां हैं, मणिपुर में हालात कब सामान्य होंगे, पहलगाम के आतंकी अब तक पकड़े क्यों नहीं गए, ऐसे सवालों की लंबी सूची है, लेकिन जवाब नदारद है।

मुख्यधारा का मीडिया भी सरकार से सवाल नहीं पूछता, न ही राहुल गांधी की खबरों को ज्यादा हिस्सा देता है। बल्कि कई बार झूठी खबरें पेश करता है। लेकिन राहुल गांधी अविचलित देश की सुरक्षा से लेकर लोगों के कष्ट, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, विदेश नीति में बरती जा रही लापरवाही सब पर सरकार से सवाल कर रहे हैं और साथ में गरीबों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, महिलाओं के हक की बात भी कर रहे हैं। राहुल वो सब कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री को करना चाहिए, भाजपा इसी लिए राहुल से परेशान है।


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