Top
Begin typing your search above and press return to search.

सरकार पर भारी पड़ेगा विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव!

अविश्वास प्रस्ताव के लंबित रहते कैसे पेश और पास हो रहे विधेयक

सरकार पर भारी पड़ेगा विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव!
X

- जयशंकर गुप्त

नई दिल्ली। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के लंबित रहते (अध्यक्ष के द्वारा चर्चा और मतदान के लिए स्वीकृत), कोई सरकार सदन में क्या कोई विधेयक पेश और पास करा सकती है! मोदी सरकार 26 जुलाई को लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला के द्वारा विपक्ष (इंडिया) के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर करने के बाद से अब तक दर्जन भर विधेयकों को पेश और पारित करवा चुकी है।

संविधान और संसदीय कार्य प्रणाली के मर्मज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार ऐसा करने में सक्षम है, जबकि सदन का उसे विश्वास हासिल है कि नहीं, इसका फैसला अगस्त के दूसरे सप्ताह में ही हो सकेगा। संसदीय परंपराएं इस मामले में खास मददगार नहीं। शायद इसलिए भी कि अतीत में अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद उस पर सदन में चर्चा कराए जाने में संभवत: इतनी देरी पहले कभी नहीं हुई। कांग्रेस के गौरव गोगोई के द्वारा मोदी सरकार के विरुद्ध 26 जुलाई को पेश अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभाध्यक्ष श्री बिड़ला ने उसी दिन मंजूर कर लिया था लेकिन इस पर चर्चा के लिए दिन और समय तय करने में उन्हें पांच दिन का समय लग गया।

हालांकि तकनीकी रूप से इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव से संबंधित नियमों में इस बात का उल्लेख है कि प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद उस पर दस दिन के भीतर चर्चा और मतदान अनिवार्य है। लेकिन अतीत में जितने भी अविश्वास प्रस्तावों का सदन साक्षी बना, पीठासीन अधिकारी (लोकसभाध्यक्ष) की स्वीकृति के बाद ही उन पर चर्चा शुरू हो गई।

शायद इसलिए भी यह सवाल नहीं उठे कि अविश्वास प्रस्ताव पर कोई फैसला होने तक सरकार कोई विधेयक पेश और पारित कर सकती है कि नहीं। बहरहाल, गौरव गोगोई के अविश्वास प्रस्ताव पर 8 अगस्त से तीन दिन की चर्चा कराने का फैसला लोकसभाध्यक्ष श्री बिड़ला ने एक अगस्त को सदन की विपक्ष रहित कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में लिया।

विपक्ष के सदस्य बैठक से बहिर्गमन कर गए थे। अब 8 अगस्त से 10 अगस्त तक अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी। 10 अगस्त को ही प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सरकार का पक्ष रखेंगे। लेकिन नियमानुसार समापन भाषण अविश्वास प्रस्ताव पेश करनेवाले गौरव गोगोई का ही होगा। इसके बाद ही प्रस्ताव पर मतदान होगा।

विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का हश्र क्या होगा, यह सबको पता है। 545 सदस्यों की लोकसभा में सत्तापक्ष के प्रचंड बहुमत को देखते हुए मोदी सरकार का बाल भी बांका होने की गुंजाइश नहीं है। एक दो अपवादों को छोड़ दें तो अतीत के अनुभव भी यही बताते हैं। अब तक 27 बार लोकसभा में तत्कालीन सरकारों के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव पेश हुए लेकिन कामयाबी केवल तीन-चार बार ही मिल सकी।

आजाद भारत में पहला अविश्वास प्रस्ताव भारत-चीन युद्ध के बाद जवाहर लाल नेहरू की सरकार के विरुद्ध प्रजा समाजवादी दल के आचार्य जीवतराम भगतराम कृपलानी ने पेश किया था जो मतदान के समय 62 मतों के मुकाबले 347 सदस्यों के बहुमत से गिर गया था।

लेकिन विपक्ष उस प्रस्ताव के जरिए नेहरू सरकार की कमियों को सामने रखकर उसकी बखिया उधेड़ने में कारगर रहा था। तब से ही अविश्वास प्रस्ताव सदन में विपक्ष के कारगर संसदीय हथियार के रूप में इस्तेमाल होने लगा। इस बार भी विपक्ष को अपने अविश्वास प्रस्ताव के हश्र का पता है, लेकिन उसकी रणनीति इस प्रस्ताव पर लंबी चर्चा के दौरान सरकार की कमियों और कमजोरियों, मणिपुर में नस्ली हिंसा के जारी रहने, भीड़ के सामने तीन महिलाओं के नग्न परेड, उनके नंगे शरीर के साथ हैवानियत की हद तक जाकर छेड़-छाड़, हरियाणा के मेवात इलाके में सांप्रदायिक हिंसा, जयपुर-मुंबई सेंट्रल ट्रेन में आरपीएफ जवान की सांप्रदायिक हैवानियत (चार लोगों की गोली मारकर ह्त्या), महंगाई, बेरोजगारी, दलित, ओबीसी, आदिवासियों, महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न से लेकर अडानी प्रकरण पर भी सरकार की छीछालेदर तो कर ही सकता है।

प्रधानमंत्री को अनिच्छापूर्वक भी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते समय मणिपुर पर भी बोलना ही पड़ेगा। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकसभा में वापसी का मार्ग प्रशस्त हो जाने के बाद विपक्ष में नई ऊर्जा का संचार स्वाभाविक है।

अविश्वास प्रस्ताव के मद्देनजर यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि चर्चा के दौरान विपक्ष के तमाम शूरमा तो सरकार को उसकी कमियों और गलतियों पर घेरेंगे ही, सत्ता पक्ष के नेताओं-मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री भी विपक्ष के आरोपों पर आक्रामक पलटवार के साथ अपनी सरकार की उपलब्धियों की बखान भी कर सकते हैं।

लेकिन मतदान से पहले अंतिम जवाब विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पेश करनेवाले को ही देना होता है। उन्हें सत्तापक्ष के जवाब के मद्देनजर एक बार फिर सरकार पर हमलावर होने का अवसर मिलता है। इसके बाद ही प्रस्ताव पर मतदान होता है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it