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विस्थापन से शिक्षक नाराज, दिल्ली विश्वविद्यालय में हड़ताल का आगाज

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक बड़े शिक्षक समूह ने 3 अक्टूबर को विश्वविद्यालय में हड़ताल का निर्णय लिया है

विस्थापन से शिक्षक नाराज, दिल्ली विश्वविद्यालय में हड़ताल का आगाज
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नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक बड़े शिक्षक समूह ने 3 अक्टूबर को विश्वविद्यालय में हड़ताल का निर्णय लिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) का कहना है कि विश्वविद्यालय की नई शिक्षक नियुक्ति पॉलिसी के कारण हजारों शिक्षकों के विस्थापित होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। हड़ताल पर जा रहे शिक्षकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ यानी डूटा से भी समर्थन मांगा है।

इन शिक्षकों का कहना है कि डूटा को तदर्थ शिक्षकों की नौकरियों की रक्षा करनी चाहिए और विश्वविद्यालय प्रशासन को सही रोस्टर के अनुसार शून्य विस्थापन की दिशा में काम करना चाहिए। तदर्थ शिक्षकों की नौकरियों की रक्षा के उद्देश्य से डीटीएफ ने 3 अक्टूबर की हड़ताल का फैसला किया है। डीटीएफ की सचिव प्रोफेसर आभा देव हबीब का कहना है कि यह बहुत चिंता का विषय है कि स्थायी भर्ती के लिए प्रत्येक साक्षात्कार के साथ तदर्थ शिक्षकों के विस्थापन की संख्या बढ़ रही है। विस्थापितों में वे शिक्षक भी शामिल हैं जिन्होंने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में सेवाएं दी हैं।

प्रोफेसर आभा देव का कहना है कि एचआरसी और एलबीसी में बड़े पैमाने पर विस्थापन की आशंका है। यह स्पष्ट है कि वृद्धिशील विस्थापन का प्रयास किया जा रहा है जो प्रतिरोध को विभाजित और निरस्त्र करने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे शिक्षकों का कहना है कि तदर्थ शिक्षकों को मात्र 2-5 मिनट के साक्षात्कार के आधार पर बर्खास्त नहीं किया जा सकता है।

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की अध्यक्ष प्रोफेसर नदिता नारायण के मुताबिक शिक्षकों की नियुक्ति के समय शून्य विस्थापन सुनिश्चित करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि रोस्टरों को पदों के उपयोग के हिसाब से संरक्षित करना चाहिए। साथ ही, पारदर्शिता के लिए कॉलेजों को अपनी वेबसाइट पर रोस्टर प्रदर्शित करना चाहिए। सभी स्वीकृत पदों का विज्ञापन किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय को 5 दिसंबर 2019 चर्चा के रिकॉर्ड का सम्मान करना चाहिए और सभी सेवारत शिक्षकों को चयन समिति के समक्ष उपस्थित होने की अनुमति देनी चाहिए। सभी इकाइयों को ईडब्ल्यूएस विस्तार के लिए पदों की तत्काल रिहाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।

इसके साथ ही शिक्षकों का यह भी कहना है कि न्यायालय के फैसले तक ईडब्ल्यूएस पद पर कार्यरत किसी भी शिक्षक को विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए। डीयू और उसके कॉलेजों में 4500 से अधिक ऐसे तदर्थ शिक्षकों ने सेवा दी है। न्याय के लिए उनकी उम्मीदें जायज हैं, लेकिन स्थायी नियुक्तियों को रोकने की सरकार की नीति से अतीत में यह बार-बार विफल रही है। 2014, 2017 और 2019 में केवल कुछ चुनिंदा विभागों और कॉलेजों में नियुक्ति होने के कारण उन्हें स्थायी भर्ती से वंचित कर दिया गया था।

शिक्षकों का कहना है कि 2017 में केवल दो कॉलेज शिक्षक स्थायी हो गए जिसके बाद विज्ञापन के 2019-20 के आधार पर कॉलेजों में कोई भर्ती नहीं की गई थी। प्रोफेसर आभा देव का कहना है कि डीटीएफ सभी शिक्षकों और कर्मचारी संघों से शून्य विस्थापन की दिशा में काम करके न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आने का आह्वान करता है। बहुप्रतीक्षित राहत और हमारी सामूहिक इकाइयों के अस्तित्व के लिए यह महत्वपूर्ण है। प्रत्येक शिक्षक समझता है कि शून्य विस्थापन के लिए चल रहे संघर्ष में सार्वजनिक उच्च शिक्षा प्रणाली का अस्तित्व भी शामिल है।


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