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राहुल गांधी की सजा पर रोक : लोकतंत्र के सूखते पौधे पर सुप्रीम कोर्ट की राहत की बौछार

'मोदी' सरनेम पर की गई टिप्पणी को लेकर अवमानना का मुकदमा झेल रहे राहुल गांधी की निचली अदालत से मिली सजा को रोककर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जो राहत दी है उसे देश के लोकतंत्र के पक्ष में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है

राहुल गांधी की सजा पर रोक : लोकतंत्र के सूखते पौधे पर सुप्रीम कोर्ट की राहत की बौछार
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- डॉ. दीपक पाचपोर

'मोदी' सरनेम पर की गई टिप्पणी को लेकर अवमानना का मुकदमा झेल रहे राहुल गांधी की निचली अदालत से मिली सजा को रोककर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जो राहत दी है उसे देश के लोकतंत्र के पक्ष में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। तीन सदस्यीय न्यायाधीशों द्वारा दिए गए इस फैसले से न केवल भारत की राजनैतिक तस्वीर बदल सकती है वरन इससे मुरझाते हुए भारतीय लोकतंत्र के फिर से जीवित होने की उम्मीद भी लगाई जा सकती है।

2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक सभा में की गई टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ गुजरात में मोदी समुदाय की अवमानना का मामला दर्ज कर दिया गया था। उस राज्य के एक भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता पूर्णेश मोदी ने यह कहकर मामला दर्ज किया था कि इससे मोदी सरनेम वाले लोग आहत हुए हैं क्योंकि उनका अपमान हुआ है। यह मामला कुछ समय तो निचली अदालत में दबा पड़ा था परन्तु जब राहुल ने मोदी के साथ उनके कारोबारी मित्र गौतम अदानी से संबंधों और उन्हें दी जा रही मदद को लेकर लोकसभा में सवाल उठाए तो पूर्णेश मोदी ने उस मामले की फिर से सुनवाई करने का आवेदन डाल दिया जिसे उन्होंने खुद ही हाईकोर्ट से कहकर टाल रखा था। गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने आनन-फानन में राहुल के खिलाफ सुनवाई कर उन्हें अधिकतम दो साल की सजा सुना दी।

तत्पश्चात उच्च न्यायालय ने भी बड़ी तेजी से इस निर्णय पर मुहर लगा दी। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने भी उतनी ही फुर्ती से कांग्रेस नेता की सांसदी और लगे हाथ बंगला छीन लिया था। यह दीगर बात है कि राहुल का मोदी सरकार के खिलाफ आक्रमण न ठहरा और न ही कमजोर पड़ा। फिर भी देश के उन लोगों में गहन निराशा थी जो यह देख रहे हैं कि किस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्षी दलों के खिलाफ राजनैतिक लड़ाई न लड़कर केन्द्रीय जांच एजेंसियों के जरिये प्रतिपक्ष को तंग कर रहे हैं।

पिछले साल कन्याकुमारी से कश्मीर तक 'भारत जोड़ो यात्रा' निकालकर राहुल ने जबर्दस्त जन समर्थन बटोरा जिसने उनकी छवि को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। इसने कांग्रेस को नवजीवन प्रदान किया। मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने आसन्न खतरे को भांप लिया था। इसी के चलते उन पर तथा तमाम विपक्षी नेताओं के खिलाफ मोदी-भाजपा के हमले तेज तो हुए परन्तु वे संसदीय गरिमा को तार-तार करते चले गए । इससे भी बेखौफ राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस न केवल मजबूत होती चली गई वरन उसने अपने साथ देश की 25 अन्य महत्वपूर्ण राजनैतिक पार्टियों को जोड़कर मोदी के खिलाफ बड़ी चुनौती पेश कर दी। इस बीच हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में बड़ी जीतें दर्ज कर मोदी की मुश्किलें इस मायने में बढ़ गईं कि उनकी अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र को भी मानना पड़ा कि अब मोदी के चेहरे और हिन्दुत्व के मुद्दे पर अगला (लोकसभा-2024) चुनाव नहीं लड़ा जा सकता।

मोदी की गिरती छवि को राहुल के पक्ष में आया यह फैसला और भी गिराएगा और कोई बड़ी बात नहीं कि अब उनकी अपनी पार्टी में यह बात उठे कि अब कोई नया चेहरा ढूंढ़ने का वक्त आ गया है। हालांकि यह भी डर है कि सामाजिक ध्रुवीकरण के लिए वे कोई भी कदम उठा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके खिलाफ बना विपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूज़िव एलाएंस) और भी संगठित होगा। राहुल को मिली कानूनी जीत कांग्रेस को अतिरिक्त मजबूती देगी जिसकी छतरी तले सारे विपक्षी दल और भी संगठित होकर काम करेंगे। विपक्ष की सामूहिक लड़ाई को इस फैसले से बल ही मिलेगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब मणिपुर की हिंसा को रोकने में केन्द्र की नाकामी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इस पर संक्षिप्त चर्चा हो या विस्तृत- इसे लेकर संसद के दोनों सदन ठप हैं।

अब तक अदालती फैसले के कारण संसद से बाहर कर दिए गए राहुल की सदन में वापसी सत्ता पक्ष के लिये एक और सिरदर्दी साबित होगी। पिछली बार मोदी की अदानी के विमान में उनके साथ की तस्वीर ने वैसे भी पहले से मोदी व भाजपा को अड़चन में डाले रखा था, अब राहुल उस सवाल के साथ ही मणिपुर व हरियाणा के मेवात (नूंह) की हिंसा पर अतिरिक्त प्रश्न लेकर लौटेंगेे। यह फैसला केवल राहुल के लिए व्यक्तिगत राहत लेकर नहीं आया है वरन उन तमाम लोगों के मन में भी यह आशा की किरण जगाने वाला निर्णय है जो देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के ध्वस्त होने से मायूस हैं। पिछले करीब 9 वर्षों से मोदी के नेतृत्व में जिस प्रकार से तमाम जनतांत्रिक मूल्यों को दरकिनार कर सतत निरंकुशता की ओर यह सरकार बढ़ती चली जा रही है, वह दुर्भाग्यजनक है। एक न्यायपूर्ण, समतामूलक और समावेशी समाज को रौंदकर भाजपा व उसकी विचारधारा ने जिस कट्टर, अतिवादी, अराजक और अवैज्ञानिक समाज की संरचना की है, राहुल उसके खिलाफ एक प्रतिनिधि आवाज़ बनकर उभरे हैं।

ऐसे वक्त में जब मोदी अनियंत्रित राजकाज चलाने के लिए विपक्ष मुक्त भारत बनाने पर आमादा हैं, राहुल बेखौफ इस प्रवृत्ति व ताकत के खिलाफ न केवल लड़ रहे हैं बल्कि लोगों से भी कह रहे हैं- 'डरो मत!' इसलिए भारत राहुल की जीत में लोकतंत्र के पुनर्जीवित होने की उम्मीद देख रहा है। तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर देने वाले इस दौर में शीर्ष कोर्ट का सत्ता के खिलाफ न्यायदान करना इसलिये भी आशा का नया उजाला फैलाएगा कि कोई तो है जो उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नागरिकों के साथ है। इस फैसले की गूंज दूर तक सुनाई देगी।


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