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साहित्य अकादेमी ने 'भारतीय साहित्य में योग’ पर राष्ट्रीय परिसंवाद का किया आयोजन

साहित्य अकादेमी में आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 'भारतीय साहित्य में योग’ विषयक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया

साहित्य अकादेमी ने भारतीय साहित्य में योग’ पर राष्ट्रीय परिसंवाद का किया आयोजन
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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी में आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 'भारतीय साहित्य में योग’ विषयक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। परिसंवाद में भारतीय सभ्यता और साहित्य में योग दर्शन की 3000 ईसा पूर्व से उपस्थित परंपरा को रेखांकित किया गया।

उद्घाटन व्याख्यान प्रख्यात लेखक एवं विद्वान कपिल कपूर ने दिया। उन्होंने योग की भारतीय परंपरा में योग के अर्थ में आए विभिन्न बदलावों को रेखांकित करते हुए कहा कि योग हमारे अंहकार और विवेक बुद्धि को परिमार्जित करता है और सभी तरह के बंधनों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, उन्होंने योग की आधुनिक परिभाषा को भी व्याख्यायित किया।

उन्होंने इस गहन विषय पर परिसंवाद आयोजित करने के लिए साहित्य अकादेमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि योग की महत्ता ने ही उसे अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान किया है।

अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि उपयुक्त योग शिक्षा के लिए एक विशेष गुरु का होना जरूरी है। उन्होंने संत साहित्य में योग की प्रतिष्ठा बढ़ाने और उसका उपहास उड़ाए जाने के कई उदाहरण प्रस्तुत किए, जो कि मुख्यता रत्नाकर, कबीर और दादू आदि के दोहों में नजर आते है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि संत साहित्य में योग की जगह भक्ति योग की महत्ता को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है।

उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि भारत में योग की एक लंबी परंपरा है और उसका व्यापक असर हमारे सामान्य जनजीवन पर देखा जा सकता है।


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