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अमेरिका में राहुल ने बड़ी लकीर खींच दी

राहुल गांधी अब राजनीति समझ गए हैं। जनता राजनीति में भी मुक्केबाजी कीरिंग की तरह विरोधी पर ताबड़तोड़ हमले चाहती है

अमेरिका में राहुल ने बड़ी लकीर खींच दी
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- शकील अख्तर

नेहरू पर यह इसलिए खीझे रहते हैं कि वह बहुत पढ़े-लिखे थे। और ऐसा ही भारत उन्होंने बनाया। आईआईटी, एम्स, आईआईएम दूसरे उच्च शिक्षा संस्थान बनाकर वहां शिक्षा का ऊंचा स्तर रखा। उसी का नतीजा है कि वहां से निकले विद्यार्थियों को दुनिया भर में हाथों हाथ लिया गया। और इन युवाओं ने देश का नाम विदेशों में रोशन किया।

राहुल गांधी अब राजनीति समझ गए हैं। जनता राजनीति में भी मुक्केबाजी कीरिंग की तरह विरोधी पर ताबड़तोड़ हमले चाहती है। 2014 से पहले और उसके बाद नरेन्द्र मोदी ने यही किया। और अब राहुल कर रहे हैं

अमेरिका में उन्होंने जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी को सीधे निशाने पर लिया वैसा वे आम तौर पर नहीं करते हैं। वहां उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के जाने से पहले एक बड़ी लकीर खींच दी। अब जैसा कि भाजपा की आदत है वह इससे बड़ी लकीर खींचने की कोशिश नहीं करेगी बल्कि हमेशा की तरह कांग्रेस की लकीर छोटी करने में लग जाएगी। मगर यह नकारात्मक ट्रिक हमेशा सफल नहीं होती है। नकारात्मकता की एक उम्र होती है और वह शायद हो गई। 9 साल बहुत होते हैं। कुछ पाजिटिव करने के बदले सिर्फ कांग्रेस की, नेहरू की, राहुल की गलतियां निकालते रहने का जवाब जनता ने कर्नाटक में दे दिया। वहां भाजपा ने हर चाल चली। हलाल, हिजाब, टीपू सुल्तान, कांग्रेस आई तो दंगे हो जाएंगे, यहां तक की कांग्रेस कर्नाटक को देश से अलग करना चाहती है तक भाजपा ने प्रचार किया। और आखिरी में तो खुद प्रधानमंत्री बजरंग बली तक को चुनाव प्रचार में ले आए। मगर कोई उपाय काम में नहीं आया। राहुल की पांच गारंटी, चालीस परसेन्ट की सरकार और बेरोजगारी, महंगाई जैसे वास्तविक मुद्दे ही चले।

राहुल इस जीत के कान्फिडेंस के साथ अमेरिका गए हैं और वहां उनका जिस तरह जबर्दस्त स्वागत हुआ उससे पाए और आत्मविश्वास से उन्होंने वहां प्रधानमंत्री मोदी पर हमलों की बौछार कर दी। खास बात यह है कि इसमें विट (बौद्धिक चुटीलापन ) था। भाजपा की तरह नफरत और अपमान नहीं था। बहुत शरारती मुस्कान के साथ उन्होंने कहा कि अगर हमारे प्रधानमंत्री को भगवान के साथ भी बिठा दिया जाए तो वे उसे भी बताने लगेंगे कि यह ब्रह्मांड किस तरह काम करता है। राहुल ने कहा कि वे वैज्ञानिकों को विज्ञान, इतिहासकारों को इतिहास, सेना को सैन्य विज्ञान और वायुसेना को उड़ना सीखा सकते हैं। यह जबर्दस्त चोट थी। और सही जगह। हमारे प्रधानमंत्री जिस तरह सर्वज्ञानी बनते हैं और बच्चों तक को बताने लगते हैं कि जलवायु परिवर्तन नहीं हुआ है। हमें उम्र के हिसाब से ऐसा लगने लगा है।
सब जानते हैं कि अगर आप किसी विषय में नहीं जानते हैं तो बच्चों को नहीं बताना चाहिए। गलत जानकारी सबसे खराब चीज है। और तब और भी ज्यादा जब वह प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पद से आई हो।

नेहरू पर यह इसलिए खीझे रहते हैं कि वह बहुत पढ़े-लिखे थे। और ऐसा ही भारत उन्होंने बनाया। आईआईटी, एम्स, आईआईएम दूसरे उच्च शिक्षा संस्थान बनाकर वहां शिक्षा का ऊंचा स्तर रखा। उसी का नतीजा है कि वहां से निकले विद्यार्थियों को दुनिया भर में हाथों हाथ लिया गया। और इन युवाओं ने देश का नाम विदेशों में रोशन किया।

कल्पना कीजिए आज अगर यह सीखकर कोई विदेश में कहे कि नाले की गैस से चाय बनाना चाहिए, जब बादल हों तो जहाज निकाल लेना चाहिए जिससे रडार नहीं पकड़ सके, रोजगार का सबसे अच्छा साधन पकौड़े बनाना है, हवा में से पानी निकाला जा सकता है तो उसे नौकरी तो क्या मिलेगी देश की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। खाली कहने से कोई विश्व गुरु नहीं होता है। हमारे यहां मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गांव ऐसे ज्ञानी घूमते रहते हैं जिन्हें हर विषय में पता होता है और वे खुद को मोहल्ला गुरु और गांव का गुरु समझते हैं।

राहुल ने इसी पर करारी चोट कर दी। कहा कि हर कोई सब कुछ नहीं जान सकता। दुनिया बहुत जटिल और विस्तृत है। मगर हमारे प्रधानमंत्री उन लोगों में से हैं जो सोचते हैं कि वे सब जानते हैं। अपने इसी सर्वज्ञानी होने के दंभ में उन्होंने दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में कहा था कि 2014 से पहले भारत भी कोई देश था? वह भारत जिसका सम्मान दुनिया हमेशा से करती है। महात्मा बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, गांधी जिनका नाम पूरी दुनिया में है। वे कुछ नहीं थे। 2015 में मोदी ने कहा था- पता नहीं पिछले जनम में क्या पाप किए थे कि भारत में पैदा हो गए। प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण की उस समय भी बड़ी प्रतिक्रिया हुई थी।

कांग्रेस ने कहा था कि अगर मोदी इसी तरह विदेशों में भारत का अपमान करते रहे तो कांग्रेस भी अपना एक दल उनके पीछे पहुंचाएगा जो मोदी के देश की छवि खराब करने के बयानों का वहीं खंडन करके भारत की उज्जवल छवि लोगों को बताएगा। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बाकयदा यह चेतावनी कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में दी थी।

कांग्रेस मोदी जी के पीछे पीछे तो नहीं गई मगर अब आगे आगे जाने लगी। प्रधानमंत्री मोदी दो हफ्ते बाद अमेरिका जा रहे हैं। उससे पहले वहां पहुंचे राहुल ने अजेंडा सेट कर दिया। राहुल ने विश्व भर में चर्चित हो रहे भगवान को भी समझा देंगे बयान के बाद वाशिंगटन के ऐतिहासिक नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस कान्फ्रेंस करते हुए यह और कह दिया कि क्या यहां मोदी जी भी प्रेस कान्फ्रेंस करेंगे? मैं उनकी प्रेस कान्फ्रेंस देखना चाहता हूं। यह बड़ा करारा व्यंग्य हो गया। राहुल की हर बात का जवाब देने वाली भाजपा और मीडिया भी इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे।

दरअसल पूरे 9 साल में प्रधानमंत्री ने एक भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की है। वाशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब में तो बड़ी बात है वहां बहुत पढ़ा-लिखा अन्तरराष्ट्रीय मीडिया होता है मगर भारत में भी अपने आठ-दस एंकर पत्रकार बुलाकर यहां भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की। वाशिंगटन के प्रेस क्लब में दुनिया के शीर्ष राजनेताओं, वैज्ञानिकों, लेखकों, कलाकारों को ही यह मौका मिलता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंह राव ने यहां प्रेस कान्फ्रेंस की हैं। आज राहुल जो किसी पद पर नहीं हैं। न सांसद न पार्टी की कोई पोस्ट, उन्हें बुलाना और मौका देना बड़ी बात है। राहुल तो देश में विदेश में हर जगह मीडिया के लिए उपलब्ध होते हैं। बात करते हैं। कोरोना के सबसे खराब टाइम में भी उन्होंने वीडियो कान्फ्रेंसिंग से प्रेस कान्फ्रेंस कीं। पिछले 9 सालों में राहुल ने सौ से कम तो प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की होंगी। और करीब इतने ही पत्रकारों को इंटरव्यू दिए होंगे। जिनमें 2014 के अरनब गोस्वामी के इंटरव्यू से लेकर और भी जाने कितने गोदी मीडिया के पत्रकारों को दिए, दिलाए इंटरव्यू शामिल हैं।

नेशनल प्रेस क्लब पर याद आया कि भारत में प्रधानमंत्री की एक नेशनल प्रेस कान्फ्रेंस की परंपरा भी हुआ करती थी। पीआईबी ( केन्द्र सरकार का सूचना प्रकाशन विभाग) विज्ञान भवन में इसका आयोजन करता था। देश भर से पत्रकार बुलाए जाते थे। हर राज्य और कई जिलों से भी ताकि वे भी अपने प्रधानमंत्री से अपने इलाकों के बारे में पूछ सकें। विदेशी पत्रकार भी होते थे। नेशनल मीडिया भी। पूरे देश और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया का प्रतिनिधित्व होता था। जिला, राज्य, राष्ट्रीय, विदेशी सब पत्रकारों के सवाल होते थे। इसीलिए इसे नेशनल प्रेस कान्फ्रें स का आफिशियल नाम दिया गया था।

मनमोहन सिंह जिन्हें मौन मनमोहन कहकर यह सत्ता में आए हैं, ने दो नेशनल प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने एक। मगर मोदी ने 9 साल में इस राष्ट्रीय परंपरा को भी नहीं निभाया। और उधर राहुल वाशिंगटन में उन्हें अन्तरराष्ट्रीय पत्रकारों के सामने प्रेस कान्फ्रेंस करने का चैलेंज दे रहे हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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