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आठ साल तक चुनावी राजनीति से बाहर हो सकते हैं राहुल गांधी

मानहानि के दोषी पाए जाने के बाद राहुल गांधी की लोक सभा की सदस्यता रद्द हो सकती है और वो आठ सालों तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे. ऐसे में कांग्रेस पार्टी उन्हें बचाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है.

आठ साल तक चुनावी राजनीति से बाहर हो सकते हैं राहुल गांधी
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भारत के जन प्रतिनिधित्व कानून और सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2013 में की गई विवेचना के मुताबीक लोक सभा या किसी भी विधान सभा के सदस्य की सदस्यता रद्द होने के लिए उसका दोषी पाया जाना और कम से कम दो साल की जेल की सजा पाना काफी है.

कानून के मुताबिक ऐसे में उसकी सदस्यता अपने आप रद्द हो जाती है. हां लोक सभा या विधान सभा को सदस्य की दोषसिद्धि की जानकारी मिलने और फिर सदन द्वारा चुनाव आयोग को उस सदस्य की सीट रिक्त हो जाने की सूचना देने की औपचारिक कार्रवाई पूरा होने में समय लग सकता है.

राहुल और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

इस बीच अगर किसी ऊपरी अदालत से अपनी दोषसिद्धि पर रोक हासिल कर लें तो उनकी सदस्यता बच सकती है. दिलचस्प है कि दोषसिद्धि के बाद तुरंत सदस्यता रद्द होने से बचाने के लिए एक अध्यादेश यूपीए सरकार 2013 में ले कर आई थी, लेकिन उस समय खुद राहुल गांधी ने एक प्रेस वार्ता में उस अध्यादेश की एक प्रति को फाड़ दिया था.

उसके बाद वो अध्यादेश वापस ले लिया गया. यानी मौजूदा प्रावधानों के तहत अगर गांधी जल्द ही अपनी दोषसिद्धि पर रोक हासिल न कर लें तो ना सिर्फ उनकी लोक सभा की सदस्यता जाएगी बल्कि वो आठ सालों के लिए चुनावी राजनीति से बाहर हो जाएंगे.

ऐसा इसलिए क्योंकि जन प्रतिनिधि कानून के तहत दोषी पाए गए सांसद या विधायक को सजा पूरी करने के बाद छह सालों तक चुनाव लड़ने की भी अनुमति नहीं मिलती है. यह गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है.

कांग्रेस पार्टी इस चुनौती का सामना करने के लिए कई रणनीतियों पर काम कर रही है. सबसे पहले तो वो पूरे विपक्ष को इस मुद्दे पर एकजुट करने की कोशिश कर रही है. पार्टी ने शुक्रवार 24 मार्च को सभी विपक्षी दलों की राष्ट्रपति भवन तक पदयात्रा का आयोजन किया है, जिसके बाद सभी नेता इस मामले को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सामने ले जाने की कोशिश करेंगे.

कई विपक्षी दलों ने राहुल गांधी का समर्थन किया है. इनमें आरजेडी, एसपी, 'आप', डीएमके, एनसीपी और शिव सेना (उद्धव ठाकरे) जैसी पार्टियां शामिल हैं. दूसरी चुनौती है सूरत की अदालत के फैसले के खिलाफ अपील.

कानूनी दाव-पेंच

कांग्रेस ने कहा है कि फैसले में कई समस्यांए हैं जिनके आधार पर वो फैसले के खिलाफ अपील करेगी. अदालत का फैसला गुजराती में है और 170 पन्ने लंबा है. अभिषेक मनु सिंघी जैसे कांग्रेस के बड़े वकीलों को उसका रूपांतरण करवा कर उसकी बारीकियां समझने में थोड़ा समय लग सकता है.

इसके अलावा सिंघवी ने खुद पत्रकारों को बताया कि मानहानि के कानून के तहत दोषसिद्धि के लिए "किसी स्पष्ट व्यक्ति या किसी स्पष्ट चीज के विषय में मानहानि" साबित होनी चाहिए. पार्टी मानती है कि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है.

कांग्रेस की दूसरी दलील यह है कि जिसकी मानहानि हुई है, उसे ही शिकायत दर्ज करनी होती है और बताना होता है कि किस प्रकार उसकी मानहानि हुई है, और इस मामले में शिकायत उनमें से किसी व्यक्ति ने नहीं की है.

तीसरा, संबंधित बयान के पीछे दुर्भावना है यह भी साबित करना होता है, जबकि कांग्रेस के मुताबिक राहुल गांधी का बयान सार्वजनिक हित के विषयों से संबंधित था जिसमें कोई दुर्भावना निहित नहीं थी.

कांग्रेस ने अधिकारक्षेत्र का भी सवाल उठाया है और कहा है कि बयान कर्नाटक के कोलार में दिया गया था तो उसके खिलाफ शिकायत गुजरात के सूरत में नहीं की जा सकती. पार्टी के मुताबिक यह अधिकारक्षेत्र के सिद्धांत का उल्लंघन है. इसके अलावा कांग्रेस ने इस पूरे मामले में पूरी न्यायिक प्रक्रिया के ठीक से पालन नहीं किए जाने का भी आरोप लगाया है.


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