राहुल से सवाल और सरकार के सामने मुंह बंद
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने इस बात की ओर अपनी लगभग हर प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि लोगों के हित से जुड़े मुद्दों को मीडिया नहीं दिखाता है

- सर्वमित्रा सुरजन
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने इस बात की ओर अपनी लगभग हर प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि लोगों के हित से जुड़े मुद्दों को मीडिया नहीं दिखाता है, बल्कि वो ऐसे मुद्दों को उठाता है जिनसे लोगों का ध्यान भटके। मीडिया सिनेमा, क्रिकेट की बातें करता है या फिर हिंदू-मुस्लिम के बीच झगड़ों की कहानियां दिखाकर नफरत फैलाता है।
इजरायल में रोजगार के लिए गए तीन भारतीय बीते दिनों मिसाइल हमले का शिकार हुए, जिनमें दो घायल हैं, जबकि तीसरे व्यक्ति पैटनीबिन मैक्सवेल की मौत हो गई है। मैक्सवेल के पिता ने बताया है कि दो हफ्ते पहले भी इसी तरह का हमला हुआ था तो उन्होंने अपने बेटे को किसी सुरक्षित स्थान में जाने की सलाह दी थी, लेकिन उसके नियोक्ताओं ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। परसाई जी आज होते तो व्यंग्य में बताते कि ऐसे हालात पर लोग कहते देखो, मौत कहां खींच कर ले गई। लोग यह नहीं देखते कि मैक्सवेल के लिए मौत का बुलावा इजरायल से नहीं आया, बल्कि निकम्मी सरकार ने उसे मौत के मुंह में धकेला। अभी पिछले महीने ही खबर आई थी कि नौकरी का झांसा देकर कुछ भारतीयों को रूस ले जाया गया, फिर उन्हें रूसी सेना में जबरदस्ती भर्ती करके यूक्रेन के साथ लड़ाई में झोंक दिया गया।
सरकार ने अगर देश में ही रोजगार और उद्यमों की संभावनाएं सभी के लिए उपलब्ध करवाई होतीं तो मजाल है कि मामूली नौकरियों के लिए लोगों की जान के सौदे किए जाते। लेकिन सरकार न नौकरी पर बात करना चाहती है, न हर साल दो करोड़ रोजगार के वादे का कोई जिक्र भूले से करती है, न उसे परीक्षाओं में होने वाली धांधलियों की कोई फिक्र है, जिसमें लाखों नौजवानों का भविष्य तबाह हो रहा है। राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपने एक ट्वीट में नौकरी की गारंटी को मोदी सरकार का झांसा बताया है और कहा है कि अगर संसद में पेश किए गए केंद्र सरकार के आंकड़ों को ही मानें तो 78 विभागों में 9 लाख 64 हज़ार पद खाली हैं। महत्वपूर्ण विभागों में ही देखें तो रेलवे में 2.93 लाख, गृह मंत्रालय में 1.43 लाख और रक्षा मंत्रालय में 2.64 लाख पद खाली हैं। इसके बाद राहुल गांधी नौजवानों से वादा करते हैं कि हमने नौकरियों के लिए ठोस प्लान तैयार किया है और इंडिया गठबंधन की सरकार आते ही हम युवाओं के लिए नौकरी के बंद द्वार खोल देंगे।
राहुल गांधी का इस तरह का वादा भाजपा को बहुत चुभता होगा, क्योंकि भाजपा ने तो तीसरी बार सत्ता में आने का मन बना लिया है। श्री मोदी को तीसरी बार भी लालकिले से झंडा फहराने का दावा मन की बात करने जैसा ही आसान लगता होगा। हालांकि तीसरी बार सत्ता में आकर भाजपा ऐसा क्या कर पाएगी, जो उसने 10 साल सत्ता में रहकर नहीं किया, इसका कोई ठोस प्लान भाजपा और नरेन्द्र मोदी के पास नहीं होगा। उन्हें किसी प्लान-व्लान की जरूरत भी क्या है, जब उनका काम भावनाओं के ज्वार पर सवार होने से सध जाता है।
लेकिन राहुल गांधी लोगों को भावनाओं में बहने से रोकने की कोशिश लगातार करते चले जा रहे हैं। इसलिए अब वे भाजपा ही नहीं, उसका साथ देने वाले मीडिया की नजरों में भी खटकने लगे हैं। राहुल गांधी बिना झिझके बोलते हैं कि युवाओं को सात-आठ घंटे मोबाइल देखने का नशा इस सरकार ने कराया है, लोगों से जय श्रीराम के नारे सरकार लगवा रही है, फिर चाहे वे भूख से क्यों न पीड़ित रहें।
राहुल गांधी हमेशा से ऐसे ही रहे हैं, लेकिन उन्हें एक नौसिखिए, नासमझ, अहंकारी, वंशवादी राजनीति का प्रतीक बताने में मीडिया और भाजपा ने बखूबी जुगलबंदी की। पिछले 10 सालों में इसका असर ज्यादा दिखा, हालांकि यह काम राहुल गांधी के राजनीति में आने के बाद से ही शुरु हो गया था। पहले उन्हें सोनिया गांधी का पुत्र होने के नाते कई बार निशाने पर लिया गया और जब राहुल गांधी ने गरीबों, आदिवासियों, वंचितों, किसानों के मुद्दों को मुख्यधारा के विमर्श में लाने की कोशिश की तो उद्योगपतियों की पूंजी से संचालित मीडिया ने उन पर कई तरह के हमले किए। एक राहुल गांधी के होने से देश की राजनीति का कितना बंटाधार हो रहा है, इस तरह की कहानियां लोगों के बीच खूब फैलाई गईं। यूपीए को दो बार सत्ता से बाहर कर लोगों ने भी बता दिया कि उन्हें मीडिया और भाजपा के गढ़े कथानक पर यकीन था।
हालांकि अब शायद हालात बदल रहे हैं। नौकरी, परीक्षा, सेना में भर्ती, पेंशन, किसानों के मुद्दे, राज्यों के दर्जे, महिलाओं की स्थिति ऐसे अनेक सवालों पर देश के अलग-अलग राज्यों में भाजपा के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन की खबरें आने लगी हैं। मुख्यधारा के मीडिया में इन्हें न दिखाने की पूरी कोशिश की जाती है, लेकिन विश्वसनीयता का थोड़ा बहुत ख्याल रखना होता है, तो इन प्रदर्शनों और आंदोलनों को दिखाया जाता है। इसलिए शायद अब श्री मोदी को दुखी होकर यह कहना पड़ा है कि मीडिया में उनकी खबरें दबाई जाने लगी हैं। हालांकि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है, लेकिन सोचिए जिस देश के प्रधानमंत्री यह कहे कि मीडिया उनकी खबर नहीं दिखाता है, वहां मीडिया की साख पर कितना बड़ा प्रश्नचिह्न लगा है।
राहुल गांधी मोदी सरकार की अनेक नाकामियों के अलावा अब खुलकर मीडिया में आए पतन पर भी बोलने लगे हैं। खासकर भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने इस बात की ओर अपनी लगभग हर प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि लोगों के हित से जुड़े मुद्दों को मीडिया नहीं दिखाता है, बल्कि वो ऐसे मुद्दों को उठाता है जिनसे लोगों का ध्यान भटके। मीडिया सिनेमा, क्रिकेट की बातें करता है या फिर हिंदू-मुस्लिम के बीच झगड़ों की कहानियां दिखाकर नफरत फैलाता है। अभी अंबानी परिवार में शादी के पहले किए गए समारोहों में करोड़ों रुपयों को पानी की तरह बहाया गया, देश की सुरक्षा की परवाह न करते हुए सरकार ने जामनगर के हवाई अड्डे को 10 दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बना दिया, अंबानी परिवार ने हजारों एकड़ जमीन में वनतारा नाम की परियोजना शुरु की और उसमें कानूनों का उल्लंघन करते हुए जंगली जानवरों को रखा, तो इन सब पर मीडिया ने कोई सवाल नहीं किया, बल्कि खुद को नामी पत्रकार समझने वाले एक शख्स ने अंबानी के निजी चिड़ियाघर में हाथी के लिए बनी खिचड़ी और जूस का सेवन करने का आनंद लिया और पूरी बेशर्मी से उसे दिखाया भी।
राहुल गांधी ने इस पर भी कहा कि मीडिया अंबानी की शादी को दिखाएगा, लेकिन भूख से पीड़ित लोगों को नहीं। बिना लाग-लपेट के ठेठ कबीराना अंदाज में राहुल गांधी ने मीडिया को आईना दिखाने का काम किया है। अगर मीडिया के लोगों को अपने पेशे की जिम्मेदारी और प्रतिबद्धता की परवाह होती तो ऐसे आरोपों को गलत साबित करने की ईमानदार कोशिशें होतीं और आत्मनिरीक्षण किया जाता कि कहीं वाकई हम सत्ता और पूंजी के गुलाम तो नहीं बन गए हैं, क्या जनसरोकारों पर बात करने की जगह हमने अपनी कलम को चंद रुपयों के लिए गिरवी रख दिया है।
लेकिन मीडिया ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि पूरी निर्लज्जता से राहुल गांधी को ही गलत साबित करने की कोशिश जारी रही। भूख, नौकरी और गरीबी की पीड़ा की जगह ग्लैमर की बात मीडिया करता है, इसका उदाहरण देने के लिए राहुल गांधी ने ऐश्वर्या राय का नाम बार-बार लिया, तो उन पर हमले शुरु हो गए, जबकि ऐश्वर्या राय केवल प्रतीक मात्र के तौर पर उनके बयानों में रहीं। इसी तरह पिछले दिनों मध्यप्रदेश में उन्होंने फिर यही कहा कि मीडिया अग्निवीर पर सवाल नहीं करेगा, इस पर बीबीसी के एक पत्रकार ने कहा कि हमने सवाल किया तो राहुल गांधी ने उन्हें कहा कि आप विदेशी कंपनी के लिए काम करते हैं, लेकिन देश का मीडिया इस पर कुछ नहीं कहता है। श्री गांधी ने बीबीसी के पत्रकार को पहचाना नहीं या उन्हें छोटा पत्रकार कहा, इस बात को फिर एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश हुई। उन्हें नसीहतें दी जाने लगीं कि सभी पत्रकारों को एक तरह से न परखें, गोदी मीडिया की भड़ास उन्हीं पर निकालें।
राहुल गांधी के हर बयान पर बाल की खाल निकालने वाले व्यवहार से हो सकता है उन्हें कुछ और वक्त के लिए बदनाम किया जा सकेगा। लेकिन इससे हकीकत नहीं बदल जाएगी। जब सरकार से यह सवाल होना चाहिए कि 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज की खैरात जारी रखने की जगह उनके लिए सम्मानजनक जीवन यापन की व्यवस्था क्यों नहीं की जाती, तब मीडिया या तो अंबानी परिवार की धन की फूहड़ नुमाइश को दिखा रहा है, या प्रधानमंत्री के एकालाप को सुना रहा है, जिसमें उन्होंने बताया कि युवावस्था में घर छोड़ने के बाद वे पूरे देश में घूमे लेकिन कहीं भी भूखे नहीं रहे, क्योंकि लोगों ने उन्हें खाना खिला दिया। क्या मीडिया को यह सवाल नहीं करना चाहिए कि किसी से मांगकर खाने से बेहतर क्या यह नहीं होता कि कोई स्थायी रोजगार होता। मीडिया ये सवाल सरकार से नहीं कर रहा है, वो राहुल गांधी से पूछ रहा है कि ऐश्वर्या राय का नाम क्यों लिया, बीबीसी के पत्रकार को छोटा क्यों कहा। जबकि राहुल गांधी जैसे लोगों के लिए ही शायद मीर तकी मीर लिख गए हैं-
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों।
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं।।
यानी कमाल के लोग रोज़- रोज़ पैदा नहीं होते बल्कि जब आसमान बरसों मारा-मारा फिरता है, तब उन जैसे लोग पैदा होते हैं।


