लोक लुभावन विकासोन्मुखी बजट की संभावना
मेरा मानना है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली अपनी सरकार के विकास के आर्थिक एजेंडे को पूरा करने के साथ-साथ हर हालत में एक लोक लुभावन बजट प्रस्तुत करेंगे

डॉ. हनुमंत यादव
मेरा मानना है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली अपनी सरकार के विकास के आर्थिक एजेंडे को पूरा करने के साथ-साथ हर हालत में एक लोक लुभावन बजट प्रस्तुत करेंगे। लोक लुभावन बजट के लिए हजार करोड रुपए की जरूरत नहीं पड़ती, वित्तीय कौशल से कुछ करोड़ रुपए की ढेर सारी दर्जनों योजनाओं से भी जन मन को लुभाने वाला बजट तैयार किया जा सकता है। भाजपा के लिए केवल 2019 का लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण तो है किन्तु उससे पहले मई 2018 में होनेवाले कर्नाटका तथा दिसंबर 2018 में होने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। इन राज्यों को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री इन राज्यों के लिए अनेक लोकलुभावन विकासोन्मुखी योजनाओं का ऐलान कर सकते हैं।
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में 18 जनवरी को सम्पन्न जीएसटी कौंसिल की 25वीं बैठक में छोटे काराबारियों और उपभोक्ताओं को राहत देते हुए हैंडीक्राफ्ट्स समेत 29 वस्तुओं तथा 53 सेवाओं की दरों में कमी करने का निर्णय लिया गया। दरों में कमी के ये निर्णय 25 जनवरी से लागू किए जाएंगे। कौंसिल के फैसले के अनुसार अब कारोबारियों को जीएसटी रिटर्न फाइल में विलम्ब होने पर लगने वाला फाइन 50 रुपए प्रतिदिन से घटाकर 20 रुपए प्रतिदिन कर दिया गया है। एक अन्य निर्णय के अनुसार ट्रांसपोर्टरों को राज्यों के बीच 50,000 रुपए से अधिक मूल्य के सामान के परिवहन के लिए अपने साथ इलेक्ट्रॉनिक-वे बिल या ई-वे-बिल रखना होगा। यह व्यवस्था 1 फरवरी से लागू की जाएगी। गैस, पेट्रोल, डीजल, रीयल एस्टेट सरीखी जो वस्तुएं जीएसटी के दायरे से बाहर हैं उनको जीएसटी के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर कौंसिल की अगली 26वीं बैठक में विचार किया जाएगा। जो लोग जीएसटी कौंसिल की मीटिंग से पेट्रोल व डीजल मिलने के लिए इनको जीएसटी के दायरे में लिए जाने के निर्णय की आस लगाए बैठे थे, उनको निराशा हुई होगी ।
वस्तु एवं सेवाकर जीएसटी लागू किए जाने से अब केन्द्रीय बजट एवं राज्य सरकारों के बजट के प्रति आम जनता की उत्सुकता धीरे-धीरे कम होने वाली है, क्योंकि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के राजस्व का एक बड़ा स्रोत अप्रत्यक्ष कर अब जीएसटी में सम्मिलित किया जा चुका है। अभी तक सीमित आमदनी वाले परिवार केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के बजट से एक राहतकारी बजट की अपेक्षा करते रहते थे। मध्यमवर्गीय एवं निम्न आमदनी वाले परिवारों को इससे कोई मतलब नहीं रहता था कि बजट विकासोन्मुखी है कि नहीं, उनकी नजर में सरकार के संतुलित बजट से आशय ऐसा बजट जो उनके पारिवारिक या घरेलू बजट को संतुलित रखे। आम जनता तो यही चाहती रही है कि दिन प्रतिदिन की उपयोग में आनेवाली वस्तुओं के केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की दरों में यदि केन्द्रीय वित्तमंत्री बजट में कमी नहीं कर सकते हैं तो कम से कम वृद्धि न करें। यही अपेक्षा राज्यों के वित्तमंत्रियों से वे राज्य बिक्रीकर के संबंध में किया करते थे।
वस्तु एवं सेवाकर लागू हो जाने के बाद केन्द्र सरकार के कर राजस्व का प्रमुख स्रोत अब प्रत्यक्ष कर ही बचा है जिनमें व्यक्तिगत आयकर एवं कारपोरेट टैक्स प्रमुख हैं। इस प्रकार जीएसटी के माध्यम से हुए अप्रत्यक्ष कर क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी बदलाव के कारण अब भविष्य में व्यक्तिगत करदाताओं तथा कारपोरेट करदाताओं की ही केन्द्रीय बजट के प्रति उत्सुकता रहेगी। सरकार के द्वारा राजस्व प्राप्ति के लिए अपनाए जाने वाले उपाय ही नहीं, बल्कि विकास एवं लोक कल्याण विभिन्न मदों पर एवं विभिन्न क्षेत्रों में किए गए व्यय भी आम जनता को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त लोककल्याण योजनाओं के लिए सब्सिडी, अनुदान एवं अन्य रूपों में दी जाने वाली वित्तीय सहायता का भी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ उनका जीवन स्तर सुधारने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहता है। कहने का आशय यह है कि सभी अप्रत्यक्ष कर जीएसटी के दायरे के अन्दर आने के बावजूद केन्द्रीय बजट का महत्व बना रहने वाला है।
जीएसटी लागू किए जाने के पहले यह अनुमान लगाया था कि उसके लागू होने के बाद केन्द्र सरकार के कर राजस्व में वृद्धि होगी तथा वह विकास एवं लोक कल्याण की मदों पर अधिक व्यय करने में समर्थ होगी। 1 जुलाई 2017 के बाद जीएसटी कौंसिल में सदस्यों की मांग पर जब-जब बड़ी संख्या में वस्तुओं एवं सेवाओं की जीएसटी दरों में कटौती के निर्णय लिए गए, पाया गया कि उनसे केन्द्र सरकार को करोड़ों की राजस्व क्षति होने वाली है। 18 जनवरी को 29 वस्तुओं एवं 53 सेवाओं की जीएसटी दरों में कटौती से 10,000 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान होने का अनुमान है। इस प्रकार आगामी साल में 8 प्रतिशत से उच्च विकास दर, करोड़ों युवाओं को लाभप्रद रोजगार दिलाने तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन आबंटन करने के लिए जरूरी राजस्व जुटा कर राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.0 प्रतिशत तक सीमित रखने के दुष्कर लक्ष्य के साथ एक संतुलित बजट बनाना वित्त मंत्री के लिए बहुत बड़ी चुनौती का काम रहने वाला है।
फिक्की, एसोचैम एवं कुछ अन्य उद्योग संगठनों ने वित्तमंत्री से चर्चा के समय अनेक सुझाव दिए जिनमें कारपोरेट टैक्स की दर 30 प्रतिशत से घटा कर 28 प्रतिशत करना सुझाव प्रमुख रहा है। मध्यमवर्गीय व्यक्तिगत आयकरदाता एवं कर्मचारी संगठन आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 3.0 लाख रुपए तथा 3.0 लाख रुपए से 10 लाख रुपए आमदनी पर 10 प्रतिशत आयकर के नए स्लैब की अपेक्षा कर रहा हैं। 1 फरवरी को प्रस्तुत होने वाला बजट के बारे में दो प्रकार की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। एक वर्ग का कहना है कि चूंकि 2019 में लोकसभा के चुनाव हैं तथा मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत अंतिम बजट होगा, इसलिए इस बजट के लोकलुभावन होने की संभावना है। जबकि दूसरे वर्ग का कहना है कि सरकार के वर्तमान राजस्व क्षमता एवं विकास के आर्थिक एजेंडे को देखते हुए लोक लुभावन बजट की संभावनाएं बहुत कम है। प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रातिन रॉय का कहना है कि बजट के लोक लुभावन की बजाय प्रधानमंत्री के आर्थिक सुधार के एजेंडे को बढ़ावा देने वाले एक विकासोन्मुखी जिम्मेदार बजट की संभावना है।
मेरा मानना है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली अपनी सरकार के विकास के आर्थिक एजेंडे को पूरा करने के साथ-साथ हर हालत में एक लोक लुभावन बजट प्रस्तुत करेंगे। लोक लुभावन बजट के लिए हजार करोड रुपए की जरूरत नहीं पड़ती, वित्तीय कौशल से कुछ करोड़ रुपए की ढेर सारी दर्जनों योजनाओं से भी जन मन को लुभाने वाला बजट तैयार किया जा सकता है। भाजपा के लिए केवल 2019 का लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण तो है किन्तु उससे पहले मई 2018 में होनेवाले कर्नाटका तथा दिसंबर 2018 में होने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। इन राज्यों को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री इन राज्यों के लिए अनेक लोकलुभावन विकासोन्मुखी योजनाओं का ऐलान कर सकते हैं। अनुदानों और सब्सिडी की संख्या बढ़ाई जा सकती है। कारपोरेट टैक्स दरों में कटौती कठिन दिखाई देती है किन्तु मध्यमवर्गीय करदाताओं को लुभाने के लिए व्यक्तिगत आय कर में छूट की सीमा बढ़ना तय दिखता है। इन परिस्थितियों में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.5 प्रतिशत से भी अधिक हो सकता है।


