Top
Begin typing your search above and press return to search.

न्याय यात्रा और वाइब्रेंट गुजरात

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरु होने में महज तीन दिन रह गए हैं

न्याय यात्रा और वाइब्रेंट गुजरात
X

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरु होने में महज तीन दिन रह गए हैं। 14 जनवरी को मणिपुर से राहुल गांधी फिर देश को जोड़ने वाली यात्रा पर निकलने वाले हैं। मणिपुर के जिस मैदान से यह यात्रा शुरू होनी है, उसके लिए राज्य सरकार ने मंजूरी नहीं दी है। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल के मुताबिक एक हफ्ते पहले ही कार्यक्रम की अनुमति के लिए आवेदन दे दिया गया था, लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। राहुल गांधी की प्रस्तावित न्याय यात्रा मणिपुर से निकालने का एक खास मकसद है। पिछले साल के मई महीने से मणिपुर अशांत है। विपक्ष के कई नेता मणिपुर जाकर हालात देख चुके हैं। खुद राहुल गांधी भी वहां एक बार जाकर पीड़ितों से मिलकर आए हैं। उन्होंने संसद में बताया भी था कि किस तरह मणिपुर में अत्याचार हो रहा है। वहां महिलाओं, बच्चों और हिंसा से पीड़ित लोगों के कितने बुरे हाल हैं।

मणिपुर पर अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए राहुल गांधी ने संसद में भारत माता की हत्या वाला बयान भी दिया था। जिस पर उन्हें लोकसभा अध्यक्ष ने टोका था और आगे से ऐसा न करने की नसीहत दी थी। हालांकि राहुल गांधी जिस संदर्भ में यह उदाहरण दे रहे थे, वह गलत नहीं था। नेहरूजी ने भी यही बताया है कि भारत माता का मतलब भारत के लोग, यहां की नदियां, जंगल, खेत और पहाड़ हैं। इनमें से किसी का भी शोषण हो, किसी का भी हक मारा जाए, तो वह सीधे भारत की आत्मा पर, भारत मां पर प्रहार होता है। भारत मां की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने से देश मजबूत नहीं होगा, बल्कि यहां के लोगों को सशक्त करने से देश मजबूत होगा। हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार के विचार इस बारे में शायद अलग हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी मुश्किल से संसद में मणिपुर पर दो-तीन पंक्तियों का बयान दिया था, लेकिन उसके अलावा न वे मणिपुर खुद गए न कोई ऐसा कदम उठाया, जिससे यह संदेश जाए कि सरकार को मणिपुर के लोगों की भी उतनी ही फिक्र है, जितनी राम मंदिर की है या वाइब्रेंट गुजरात के आयोजन की।

मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एम बीरेन सिंह ने राहुल गांधी की यात्रा के कार्यक्रम को मंजूरी नहीं देने के विषय में कहा कि मामले पर 'विचार' हो रहा है और सुरक्षा एजेंसियों से रिपोर्ट मिलने के बाद इस पर निर्णय लिया जाएगा। वहीं पत्रकारों से बीरेन सिंह ने यह भी कहा कि मणिपुर में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति 'बहुत गंभीर' है। मणिपुर में कानून व्यवस्था या सुरक्षा के नाम पर अगर कांग्रेस के कार्यक्रम को मंजूरी नहीं मिल रही है, तो इसका साफ मतलब है कि मणिपुर में भाजपा सरकार हालात सामान्य करने में नाकाम रही है।

विपक्ष इसी तर्क के आधार पर बार-बार मुख्यमंत्री की बर्खास्तगी की मांग करता रहा है। लेकिन भाजपा न विपक्ष की मांग सुन रही है, न मणिपुर के लोगों की गुहार। भाजपा सरकार जब खुद विपक्ष के एक कार्यक्रम को सुरक्षा कारणों से अनुमति नहीं दे पा रही, तो यह समझा जा सकता है कि राज्य में अब हालात उसके काबू में नहीं हैं। राहुल गांधी मणिपुर से इस यात्रा को शुरु करना चाहते हैं ताकि न्याय का संदेश उस धरती से निकले, जहां इस वक्त देश सबसे अधिक नाइंसाफी देख रहा है। अफसोस की बात है कि मणिपुर सरकार के इस कदम को भाजपा की विफलता की जगह कांग्रेस को झटके की तरह मीडिया में पेश किया जा रहा है।

हालांकि कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह यात्रा मणिपुर से ही निकालेगी। वैसे यात्रा निकलने से पहले ही भाजपा नेताओं ने इसका मखौल उड़ाना शुरु कर दिया है। कोई इसे राहुल की मौजमस्ती बता रहा है, कोई राजनैतिक तौर पर रिलॉंचिंग करार दे रहा है। भाजपा नेताओं के ये बयान खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी इसी तरह श्री गांधी की छवि बिगाड़ने की कोशिश हुई थी, लेकिन अपनी मंजिल पर निगाहें रखे राहुल गांधी ने रास्तों की अड़चनों की परवाह नहीं की।

मणिपुर में चल रही इस राजनैतिक हलचल से प्रधानमंत्री बेशक वाकिफ होंगे, लेकिन फिलहाल उनका ध्यान राम मंदिर के उद्घाटन और वाइब्रेंट गुजरात समारोह पर है। बुधवार को इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत अगले 25 सालों के लक्ष्य पर काम कर रहा है। उन्होंने यकीन दिलाया कि देश जल्द ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

भारत अगर सचमुच आर्थिक तौर पर इतना सक्षम बन जाए तो हरेक देशवासी को इससे खुशी होगी। लेकिन सवाल यही है कि तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कौन सी कीमत देश को चुकानी होगी। क्या इसमें मणिपुर में सैकड़ों लोगों का बहा खून और हसदेव में लाखों पेड़ों के कटने को शहादत की तरह शामिल किया जाएगा या जरूरी निवेश की तरह। क्या 25 साल बाद के भारत के लक्ष्य में अमीर उद्योगपतियों के ही विकास की संभावनाएं हैं, जो साल दर साल अलग-अलग राज्यों में लाखों-करोड़ों के निवेश की घोषणाएं करते हैं, लाखों रोजगारों के सृजन का दावा करते हैं, या फिर सरकार ऐसी व्यवस्था भी करेगी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग लगेंगे और लोगों को रोजगार मिलेगा।

तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से क्या वे कारण खत्म हो जाएंगे, जो राहुल गांधी की न्याय यात्रा का आधार हैं। क्या देश में आर्थिक गैरबराबरी खत्म होगी, क्या सामाजिक और राजनैतिक न्याय की भी संभावनाएं बनेंगी। अगर इन प्रश्नों के सकारात्मक जवाब सरकार दे सकती है तो फिर अकेले गुजरात क्यों, देश के सभी राज्यों में वाइब्रेंट जैसे विशेषण के तहत आयोजन हों और सही मायनों में सबका साथ, सबका विकास हो। अगर ऐसा नहीं हो सकता है तो फिर सारी चकाचौंध और तामझाम को असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का शगल ही मानना चाहिए। क्योंकि दस सालों में देश ने बहुत से बड़े दावे सुने हैं, अब बातें बंद और नतीजे दिखाने का वक्त है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it