राज्यपाल नहीं, केवल निर्वाचित सरकार कर लगाने का फैसला ले सकती है : आजाद
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कहा कि केवल एक निर्वाचित सरकार ही लोगों की संपत्ति पर कर लगाने का फैसला ले सकती है, राज्यपाल नहीं

श्रीनगर। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कहा कि केवल एक निर्वाचित सरकार ही लोगों की संपत्ति पर कर लगाने का फैसला ले सकती है, राज्यपाल नहीं।
श्री आजाद ने श्रीनगर में पत्रकारों से कहा कि केवल एक निर्वाचित सरकार ही लोगों पर कोई कर लगाने के लिए उपयुक्त है और यह राज्यपाल का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल चाहे कांग्रेस शासन में हो, भारतीय जनता पार्टी या किसी अन्य शासन में हो, वह एक अस्थायी व्यवस्था है जो केवल राज्य मामलों को देखने के लिए है, वह भी स्थायी रूप से नहीं।उन्होंने कहा कि यहां तक कि चुनी हुई सरकार के लिए भी जनता पर इस तरह के टैक्स लगाने का फैसला करना असंभव है।उन्होंने कहा, "अगर आज मेरी सरकार सत्ता में आती है तो जो लोग इसे वहन करेंगे उन पर कर लगाने के बारे में दस बार सोचूंगा।”
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर पिछले 33 वर्षों से आतंकवाद को झेल रहा है। यहां एक लाख से ज्यादा बच्चे मारे जा चुके हैं और सैकड़ों बेटियां विधवा हुई हैं। यहां के लोगों पर अब कोई टैक्स नहीं लगना चाहिए।
डीपीएपी अध्यक्ष ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पिछले नौ वर्षों से चुनाव नहीं हुआ है। वह पिछले कई वर्षों से चुनाव की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं जिससे निर्वाचित सरकार उन कानूनों के बारे में फैसला ले सके जिन्हें यहां लागू करने की आवश्यकता है।
भूमि अतिक्रमण हटाने वाले अभियान पर उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने इस अभियान के खिलाफ सड़कों पर लगभग 60 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया और भगवान का धन्यवाद है कि अब यह रोक दिया गया है।
उन्होंने कहा कि रोशनी अधिनियम उनके कार्यकाल में बना था। इसे कानून विभाग द्वारा सामूहिक रूप से बनाया गया था, जिसपर विधानसभा में चर्चा हुई थी। इस कानून को विपक्षी दलों सहित सभी दलों ने सामूहिक रूप से पारित किया था।
श्री आजाद ने कहा कि विधानसभा या संसद में एक बार कानून पारित हो जाने के बाद राज्यपाल उसे हटा नहीं सकते। अब जब उन्होंने मौजूदा कानून को हटा दिया है तो इसका परिणाम हमारे सामने हैं।
उन्होंने कहा कि, “मैं यह नहीं कहता कि रोशनी अधिनियम को शत-प्रतिशत लागू किया गया। भारत या दुनिया में कोई ऐसी योजना नहीं है जिससे सभी को फायदा मिल सके। सभी जगहों पर दुरुपयोग होता है लेकिन इन मामलों को देखने के लिए सतर्कता एवं अदालत सहित अलग-अलग आयोग मौजूद हैं।”
श्री आजाद ने कहा कि 1947 में विभाजन के दौरान कठुआ और सांबा के सीमावर्ती क्षेत्रों के लोग पलायन करके आर एस पुरा और अन्य स्थानों पर बस गए, जहां के बंजर भूमि को उन्होंने विकसित किया। खेती लायक बनाने में उन्हें 20 वर्ष लग गए और अब उनका कहना है कि सरकार 70 वर्षों बाद उसे सरकारी जमीन घोषित करने वाला बोर्ड लगा रही है।
उन्होंने कहा कि सभी जगहों पर लगभग 10 प्रतिशत लोग सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं। उन्हें कठोर सजा मिलनी चाहिए लेकिन उनके कारण 90 प्रतिशत लोगों को क्यों परेशानी होना चाहिए?


