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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, 89 की उम्र में ली अंतिम सांस, लंबे समय से चल रहे थे बीमार

मशहूर साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। 89 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने उनके निधन की पुष्टि की है। वो पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। हाल ही में उनकी एक तस्वीर सामने आई थी। इसमें वह अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद कुछ लिखते हुए दिखे

साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, 89 की उम्र में ली अंतिम सांस, लंबे समय से चल रहे थे बीमार
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विनोद कुमार शुक्ल का निधन

नई दिल्ली/रायपुर : मशहूर साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। 89 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने उनके निधन की पुष्टि की है। वो पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। हाल ही में उनकी एक तस्वीर सामने आई थी। इसमें वह अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद कुछ लिखते हुए दिखे।

सोशल मीडिया पर उनकी ये तस्वीर उन्हीं की एक प्रसिद्ध पंक्ति के साथ खूब शेयर की गई। इसमें वह कहते हैं, “लिखना मेरे लिए सांस लेने की तरह है.” उनके हिंदी साहित्य में अनूठे योगदान, विशिष्ट शैली और सृजनात्मकता के लिए वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ, और वे छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक हैं, जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया।

1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद शुक्ल हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में गिने जाते हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ शामिल है।

विनोद कुमार शुक्ला का जन्म

विनोद कुमार शुक्ला का जन्म जनवरी 1937 में हुआ था। वह हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक, कवि और उपन्यासकार हैं, जो अपनी सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अनूठी लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रयोगधर्मी लेखन की एक नई धारा स्थापित की है। उनकी पहली कविता संग्रह 'लगभग जय हिंद' वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में 'नौकर की कमीज़', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' और 'खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं।

उनकी कविताएं और कहानियां आम जीवन की बारीकियों को सहज भाषा में प्रस्तुत करती हैं। उनके लेखन में आम आदमी की भावनाएं, रोजमर्रा की जिंदगी और समाज की जटिलताओं का मार्मिक चित्रण मिलता है। इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

'नौकर की कमीज' के रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर सीएम विष्णु देव साय ने जताया शोक

'जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे, मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊंगा', कविता लिखने वाले कवि और हिंदी साहित्य के वरिष्ठ और प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। उन्होंने रायपुर स्थित एम्स में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे और उनका इलाज एम्स रायपुर में जारी था।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "महान साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन एक बड़ी क्षति है। नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी जैसी चर्चित कृतियों से साधारण जीवन को गरिमा देने वाले विनोद जी छत्तीसगढ़ के गौरव के रूप में हमेशा हम सबके हृदय में विद्यमान रहेंगे। संवेदनाओं से परिपूर्ण उनकी रचनाएं पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। उनके परिजन एवं पाठकों-प्रशंसकों को हार्दिक संवेदना।"

वहीं, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट कर लिखा, "मैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से अनुरोध करता हूं कि स्व. विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन पर तत्काल राजकीय शोक घोषित करें। प्रदेश में इस दौरान किसी भी प्रकार के उत्सव, महोत्सव को कुछ दिनों के लिए टाल दें। यह हम सबका साझा दुख है।"

बता दें कि 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ साहित्यकार और पद्म भूषण विनोद कुमार शुक्ल से बात की थी और उनके स्वास्थ्य तथा कुशलक्षेम के बारे में पूछा था। प्रधानमंत्री ने उनके योगदान की सराहना की थी और उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते हुए कहा था कि ऐसे रचनाकार देश की सांस्कृतिक चेतना को सशक्त बनाते हैं।

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने अध्यापन को अपना पेशा बनाया, लेकिन उनका मन हमेशा साहित्य सृजन में रमा रहा। शिक्षक रहते हुए भी उन्होंने लेखन को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ आगे बढ़ाया। उनकी लेखन शैली बेहद सरल, सहज और गहरी संवेदनशीलता से भरी रही, जो उन्हें अन्य लेखकों से अलग पहचान दिलाती है।

उन्होंने कविता और उपन्यास दोनों विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी पहली कविता 'लगभग जयहिंद' वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई थी, जिसने साहित्य जगत में उन्हें पहचान दिलाई। उनके प्रमुख उपन्यासों में 'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी', और 'खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं। 'नौकर की कमीज' पर फिल्म भी बनी, जबकि 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


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