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राजनीतिक मामले वापस लेगी मध्य प्रदेश सरकार

मध्य प्रदेश के कानून मंत्री पी.सी.शर्मा ने आज यहां कहा कि राज्य सरकार, पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक पार्टियों व दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज किए गए सभी 'राजनीतिक मामले' वापस लेगी

राजनीतिक मामले वापस लेगी मध्य प्रदेश सरकार
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भोपाल। मध्य प्रदेश के कानून मंत्री पी.सी.शर्मा ने आज यहां कहा कि राज्य सरकार, पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक पार्टियों व दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज किए गए सभी 'राजनीतिक मामले' वापस लेगी।

यह घोषणा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती द्वारा नई कांग्रेस सरकार को जारी की गई चेतावनी के एक दिन बाद की गई है।

मायावती ने अपनी चेतावनी में कहा था कि अगर वे (कांग्रेस) बीते साल दलित समूहों द्वारा दो अप्रैल को आहूत भारत बंद के दौरान 'निर्दोष लोगों' के खिलाफ दर्ज किए गए मामलों को वापस नहीं लेते हैं तो उनकी पार्टी राजस्थान व मध्य प्रदेश में सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।

शर्मा ने कहा, "हमने (कांग्रेस) भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ने वाली किसी भी पार्टी का कोई व्यक्ति जिसे भाजपा सरकार ने जेल भेजा है.. उन राजनीतिक मामलों को वापस लिया जाएगा।"

मायावती ने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा था कि अगर मध्य प्रदेश व राजस्थान की नवनिर्वाचित सरकारें त्वरित रूप से कार्रवाई नहीं करतीं हैं और भारत बंद के दौरान फंसाए गए निर्दोष लोगों पर से मामले वापस नहीं लेतीं हैं, तो बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस सरकारों को बाहर से समर्थन देने पर पुनर्विचार कर सकती है।

बीते सप्ताह शर्मा ने संकेत दिया था कि सरकार भाजपा शासन के दौरान बीते 15 सालों के दौरान राजनीतिक व ट्रेड यूनियन नेताओं के खिलाफ लगाए गए 'राजनीति से प्रेरित मामलों' को वापस लेने के लिए एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार कर रही है।

मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 114 विधायक हैं और बसपा के दो विधायक हैं।

विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत के आंकड़े से दो सीटें कम हैं।

समाजवादी पार्टी का सिर्फ एक विधायक है और उसने भी सरकार को समर्थन दे रखा है। इसके अलावा चार निर्दलीय विधायक हैं।

राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 99 विधायक हैं और चुनाव पूर्व सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल का एक विधायक है।

इसके अलावा बसपा के छह विधायक व 13 निर्दलीय सदस्य हैं।

कांग्रेस ने अप्रैल 2018 में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम में बदलाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया था।

यह परिवर्तन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया था, जिसे बाद में संसद में एक कानून पारित कर अमान्य कर दिया गया।


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