Top
Begin typing your search above and press return to search.

कोसी के किसान मुश्किल में, सरकार उदासीन : अरविंद मोहन

सरकारों की तरफ से खेती-किसानीके मामलों में बरती जा रही उदासीनता पर चिंता जताते हुए देश के जाने-माने पत्रकार अरविंद मोहन ने यहां शनिवार को कहा कि इस व़क्त कृषि क्षेत्र गंभीर संकट से गुजर रहा है

कोसी के किसान मुश्किल में, सरकार उदासीन : अरविंद मोहन
X

सुपौल (बिहार)। सरकारों की तरफ से खेती-किसानीके मामलों में बरती जा रही उदासीनता पर चिंता जताते हुए देश के जाने-माने पत्रकार अरविंद मोहन ने यहां शनिवार को कहा कि इस व़क्त कृषि क्षेत्र गंभीर संकट से गुजर रहा है। पारंपरिक खेती लगातार विलुप्त होती जा रही है और बड़े पूंजीपति व पश्चिमी देश खेती को संकट में डालकर किसानों की जमीन खुद हड़पना चाहते हैं। सुपौल जिले के कालिकापुर गांव में कोसी प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के पहले दिन, पहले सत्र में अपनी बात रखते हुए उन्होंने 'कांट्रैक्ट फार्मिग' की नीति को इसकी बानगी करार दिया। उन्होंने कोसी अंचल में किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियों की जमकर आलोचना की।

अरविंद मोहन ने कहा कि सरकार एक तरफ न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान करती है, लेकिन उसको जमीन पर लागू करवाने की कोई ठोस कोशिश नहीं की जाती। यह किसानों के साथ धोखा है।

उन्होंने कहा कि एक जमाने में कोसी क्षेत्र जरूरी सामानों के लिए आत्मनिर्भर था, लेकिन अब रोजमर्रा की जरूरतों के सामान के लिए भी लोगों को बाहर का मुंह देखना पड़ता है। नमक और मेवा (ड्राई फ्रूट्स) को छोड़कर बिहार के लोग पहले सारे सामान खुद बनाते थे, लेकिन अब ये तस्वीर बदल गई है।

कोसी और बिहार से बाहरी राज्यों और विदेशों में हो रहे पलायन पर चिंता जताते हुए अरविंद मोहन ने कहा कि सरकार ने लोगों को रोजगार के बुनियादी साधन तक मुहैया नहीं कराया और इसी वजह से लोग मजबूरन बाहर जाने को अभिशप्त हैं।

संगोष्ठी में खेती-किसानी, बाढ़, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे तमाम बुनियादी मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों से आए विद्वानों ने अपनी बातें रखीं।

कृषि विशेषज्ञ डी एन ठाकुर ने कहा कि किसानों की आर्थिक हैसियत लगातार कमजोर होती जा रही है। खेती के दम पर किसानों के लिए बैंककर्ज चुकाना मुमकिन नहीं रह गया है। सरकारी दावों के बावजूद किसान एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर फसल बेचने में कामयाब नहीं हो पाते।

उन्होंने कहा कि कोसी के किसानों को एकजुट होकर खेती में आ रहे संकट से लड़ना पड़ेगा और आपसी सहयोग के रास्ते इस संकट को कम किया जा सकता है।

मशहूर बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा ने कोसी में हर साल आने वाली बाढ़ के लिए सरकारी नीतियों और लालफीताशाही को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि कोसी क्षेत्र में बाढ़ पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार और सरकारी मुलाजिम को जिम्मेदारी और ईमानदारी से काम करना होगा।

उन्होंने बांध निर्माण के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाए। कोसी तटबंध की ऊंचाई को उन्होंने पूरे क्षेत्र के लिए खतरनाक करार दिया।

पत्रकार रंजीत कुमार ने कोसी क्षेत्र में होने वाली गैर-संक्रामक बीमारियों का लेखा-जोखा पेश किया। उन्होंने नीति आयोग के आंकड़ों के जरिए कहा कि स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना तो दूर, सरकार को इन इलाकों के हालात तक का आधिकारिक तौर पर अंदाजा नहीं है। रंजीत कुमार ने साफ पेयजल समेत कई मुद्दों पर बातें रखीं।

कथाकार और यात्रा वृत्तांत लेखिका मीना झा ने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के लिए महिलाओं से खास अपील की। उन्होंने साक्षरता दर बढ़ाने और स्वास्थ्य के लिए संजीदगी को जरूरी करार दिया। इस दौरान प्रसिद्ध मनोचिकित्सक विनय कुमार के बताए स्वास्थ्य संबंधी उपयोगी जानकारियों और सुझावों से भी दर्शकों को रूबरू कराया गया।

प्रोफेसर ललितेश मिश्र ने कोसी क्षेत्र की बुनियादी समस्याओं की तरफ विस्तार से लोगों का ध्यान खींचा और कहा कि कोसी के विकास के लिए जोरदार मुहिम की दरकार है।

कोसी में खेतिहर पैदावार को लेकर प्रोफेसर कमलानंद झा ने गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने सरकारी नीतियों को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि जब तक किसान समृद्ध नहीं होंगे, तब तक देश का विकास मुमकिन नहीं है।

वहीं, रामदेव सिंह ने खेती-किसानी को समृद्ध करने के लिए कई बातें रखीं और कहा कि सरकार ने किसानों की समस्या की तरफ ध्यान नहीं दिया।

पत्रकार दिलीप खान ने कहा कि खेती-किसानी को जान-बूझकर घाटे के सौदे में तब्दील किया गया है और सरकार ने किसानों की समस्याओं को सुलझाने की बजाए उन्हें और गहरे संकट में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि कोसी समेत पूरे बिहार में 70 फीसदी से ज्यादा कामगार कृषि पर निर्भर हैं, लेकिन सरकार उनकी सुध नहीं ले रही।

रणजीव ने कोसी के किसानों की संकट को देश के सामने मौजूद कृषि संकट की छोटी बानगी करार देते हुए कहा कि जब तक किसान एकजुट नहीं होगें, तब तक उनकी आवाज नहीं सुनी जाएगी।

इससे पहले आयोजक गौरीनाथ समेत नामचीन लोगों ने कोसी प्रतिष्ठान के तहत कोसी के किसान स्मारिका का विमोचन किया। कार्यक्रम में खाद्यान्न की प्रदर्शनी भी लगाई गई। साथ ही पटेर से गोनरि बनाने की कार्यशाला का भी आयोजन किया गया। ये प्रदर्शनी और कार्यशाला रविवार को भी जारी रहेगी।

दो दिवसीय सेमिनार सह अध्ययन शिविर के पहले दिन का समापन पमरिया नृत्य के साथ हुआ। कार्यक्रम में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए विद्वानों के साथ-साथ बड़ी तादाद में ग्रामीणों ने भी हिस्सा लिया।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it