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केरल स्थानीय निकाय चुनाव: 9 दिसंबर को सात जिलों में मतदान, राजनीतिक दलों के लिए 'अग्निपरीक्षा'

केरल में स्थानीय निकाय चुनाव के पहले चरण के तहत मंगलवार को तिरुवनंतपुरम से लेकर त्रिशूर तक सात जिलों में मतदान होगा। दूसरा चरण शेष सात जिलों के लिए गुरुवार को आयोजित किया जाएगा, जबकि मतगणना 13 दिसंबर को होगी। चुनाव के नतीजों को 2026 विधानसभा चुनाव से पहले के राजनीतिक मूड का सबसे अहम संकेतक माना जा रहा है

केरल स्थानीय निकाय चुनाव: 9 दिसंबर को सात जिलों में मतदान, राजनीतिक दलों के लिए अग्निपरीक्षा
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केरल स्थानीय निकाय चुनाव: पहले चरण में मंगलवार को मतदान, राजनीतिक दलों के लिए 'अग्निपरीक्षा'

तिरुवनंतपुरम। केरल में स्थानीय निकाय चुनाव के पहले चरण के तहत मंगलवार को तिरुवनंतपुरम से लेकर त्रिशूर तक सात जिलों में मतदान होगा। दूसरा चरण शेष सात जिलों के लिए गुरुवार को आयोजित किया जाएगा, जबकि मतगणना 13 दिसंबर को होगी। चुनाव के नतीजों को 2026 विधानसभा चुनाव से पहले के राजनीतिक मूड का सबसे अहम संकेतक माना जा रहा है।

राज्य में सत्ता पर काबिज माकपा-नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ), कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) तीनों के लिए यह चुनाव मध्यावधि राजनीतिक परीक्षा की तरह है।

लगभग एक दशक से सत्ता में रहने के बाद एलडीएफ सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी, वित्तीय दबाव और कई प्रशासनिक विवादों ने माहौल चुनौतीपूर्ण बनाया है। इसके बावजूद वाम मोर्चा जमीनी संगठनात्मक मजबूती और स्थानीय निकायों में पारंपरिक प्रभुत्व के भरोसे मैदान में उतरा है। माकपा के लिए ये चुनाव कैडर मनोबल बनाए रखने और हालिया लोकसभा व जनमत झटकों के बाद राजनीतिक नैरेटिव फिर से स्थापित करने में अहम माने जा रहे हैं।

वहीं, यूडीएफ के लिए यह मौका सत्ता विरोधी माहौल को स्पष्ट चुनावी बढ़त में बदलने का है। कांग्रेस पिछली बार के स्थानीय निकाय चुनावों में खोई जमीन वापस पाने की कोशिश में जुटी है। हालांकि गुटबाजी चुनौती बनी हुई है, लेकिन विपक्ष को उम्मीद है कि महंगाई, प्रशासनिक विफलताओं के आरोप और बढ़ते जन असंतोष शहरी व अर्ध-शहरी मतदाताओं को उनके पक्ष में ला सकते हैं।

एनडीए इस बार अब तक के अपने सबसे बड़े स्थानीय चुनाव अभियान में उतर चुका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा कार्यकर्ताओं को राज्य में 16 प्रतिशत वोट शेयर को बढ़ाकर कम से कम 25 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य दिया है। ऐसा होने पर केरल की द्विध्रुवीय राजनीति में बड़ा बदलाव संभव माना जा रहा है। संगठनात्मक दायरा अभी भी चुनिंदा शहरी क्षेत्रों तक सीमित होने के बावजूद भाजपा युवा मतदाताओं, लाभार्थी वर्ग और इझवा बहुल इलाकों पर आक्रामक तरीके से फोकस कर रही है, जिससे पारंपरिक वोट बैंक से आगे विस्तार की उम्मीद है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अचानक कोई बड़े सत्ता समीकरण बदलने की उम्मीद नहीं है, लेकिन वोट शेयर में मामूली बदलाव भी दूरगामी राजनीतिक पुनर्संरचना की दिशा तय कर सकते हैं। यूडीएफ को बढ़त मिली तो विपक्ष 2026 से पहले और मजबूत होगा, जबकि एनडीए में उल्लेखनीय उछाल केरल में भाजपा के दीर्घकालिक अभियान के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।


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