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जातीय जनगणना के मामले में झारखंड सरकार भी बिहार की राह पर !

जातीय जनगणना के मामले में झारखंड सरकार भी बिहार की राह पर चलना चाहती है, लेकिन राज्य की मौजूदा परिस्थितियों में फिलहाल इस पर फैसला लिए जाने के आसार बेहद कम हैं।

जातीय जनगणना के मामले में झारखंड सरकार भी बिहार की राह पर !
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रांची। जातीय जनगणना के मामले में झारखंड सरकार भी बिहार की राह पर चलना चाहती है, लेकिन राज्य की मौजूदा परिस्थितियों में फिलहाल इस पर फैसला लिए जाने के आसार बेहद कम हैं।

वैसे यह मुद्दा 2024 में अप्रैल-मई में संभावित लोकसभा और इसके बाद अक्टूबर-नवंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान सियासी फिजां में फुटबॉल की तरह उछलता रहेगा।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरन का कहना है कि वह इस बात के हिमायती हैं कि जिस समूह की जितनी आबादी है, उसे उसी के अनुसार अधिकार मिलना चाहिए। झारखंड के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियां झामुमो, कांग्रेस और राजद इसकी पक्षधर हैं।

राज्य में एनडीए गठबंधन में शामिल आजसू पार्टी भी जातीय जनगणना की मांग उठा रही है। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा फिलहाल इस मुद्दे पर चुप है।

सीएम हेमंत सोरेन कहते हैं कि जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर दो साल पहले ही राज्य में सभी दलों की सहमति बनी थी। इसके बाद सर्वदलीय शिष्टमंडल के सदस्यों ने सितंबर 2021 में दिल्ली जाकर इससे संबंधित मांग पत्र गृह मंत्री को सौंपा था।

हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से इस पर पहल हो। पत्र में कहा गया था कि संविधान में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष सुविधा और आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

आजादी के बाद से आज तक की कराई गई जनगणना में जातिगत आंकड़े नहीं रहने से विशेषकर पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष सुविधाएं पहुंचाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। पिछड़े-अति पिछड़े अपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहे हैं।

ऐसे में यदि अब जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी तो पिछड़ी-अति पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का ना तो सही आकलन हो सकेगा, ना ही उनकी बेहतरी तथा उत्थान संबंधित समुचित नीति निर्धारण हो पाएगा और ना ही उनकी संख्या के अनुपात में बजट का आवंटन हो पाएगा। आज से 90 साल पहले जातिगत जनगणना 1931 में की गई थी और उसी के आधार पर मंडल कमीशन के द्वारा पिछड़े वर्गों को आरक्षण उपलब्ध कराने की अनुशंसा की गई थी।

झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं, "हमारे शीर्ष नेता राहुल गांधी स्पष्ट कर चुके हैं कि विभिन्न जातियों को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। पार्टी जातीय गणना के पक्ष में है। अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केंद्र सरकार जानबूझकर इस मुद्दे से पीछे हट रही है ताकि देश में पिछड़ों को इसका लाभ नहीं मिल सके।"

राज्य में कांग्रेस विधायक दल के नेता और ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम बिहार सरकार की पहल को सराहनीय बताते हुए कहते हैं, "जब केंद्र सरकार इसे लागू नहीं कर रही है, तो देश की राज्य सरकारों को अपने बूते गणना करानी चाहिए।”

जब राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन की सभी पार्टियां जातीय जनगणना की पक्षधर हैं, तो क्या झारखंड सरकार इस दिशा में बिहार की तरह अपने स्तर पर जातीय जनगणना कराने का फैसला लेने वाली है?

दरअसल, राज्य में जो मौजूदा परिस्थितियां हैं, उसमें सरकार इस दिशा में तुरंत कदम बढ़ाने की स्थिति में नहीं दिखती।

राज्य में सभी नगर निकायों का कार्यकाल सात-आठ पहले ही पूरा हो चुका है, लेकिन सरकार इनका चुनाव कराने को लेकर अब तक अनिर्णय की स्थिति में है। दरअसल, सरकार ने कैबिनेट की बैठक में महीनों पहले निर्णय लिया था कि नगर निकाय के चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण दिया जाएगा।

मुश्किल यह है कि इस आरक्षण का प्रतिशत कितना हो, यह तय करने के लिए राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट सर्वे के जरिए राज्य की पिछड़ी आबादी की संख्या और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का आकलन करना होगा।

सरकार ने ट्रिपल टेस्ट कराने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को अधिकृत भी किया है, लेकिन अभी तक आयोग का गठन ही नहीं हो सका है।

आयोग का अध्यक्ष झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू को बनाए जाने का प्रस्ताव था, पर लाभ के पद को लेकर अड़चन खड़ा होने से उनकी नियुक्ति टल गई। इसके बाद से पिछले एक महीने से मामला ठंडे बस्ते में है।

तो, हालत ये है कि जिस पिछड़ा वर्ग आयोग को निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट सर्वे करना है, उस आयोग में न तो कोई अध्यक्ष है न सदस्य।

अक्टूबर का पहला सप्ताह खत्म होने को है। इस महीने से दशहरा, दीपावली, छठ, भाईदूज जैसे त्योहारों की श्रृंखला शुरू हो रही है, जो दिसंबर में क्रिसमस तक जारी रहेगी। इसके बाद फरवरी 2024 से लोकसभा चुनाव के पूर्व मतदाता सूची पुनरीक्षण, बूथों का निर्धारण, मतदान कर्मियों के प्रशिक्षण आदि की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

लोकसभा चुनाव खत्म होंगे तो विधानसभा के चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी। जाहिर है इन परिस्थितियों में 2024 के अंत तक राज्य में जातीय जनगणना के आसार नहीं लगते।

2024 के अंत में राज्य में बनने वाली नई सरकार निर्भर करेगा कि झारखंड में जातीय गणना को लेकर उसका स्टैंड क्या होगा। बहरहाल, तब तक यह मसला सियासी तौर पर जरूर उछलता रहेगा।


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