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योग की बढ़ती स्वीकार्यता

आज दुनिया के सभी देशों में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है। चीन, सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक में लाखों की संख्या में लोग योगासन कर रहे हैं

योग की बढ़ती स्वीकार्यता
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-अरविंद जयतिलक

आज दुनिया के सभी देशों में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है। चीन, सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक में लाखों की संख्या में लोग योगासन कर रहे हैं। चीन में हाल के वर्षों में योग बड़े पैमाने पर लोकप्रिय हुआ है। यह चीन के प्राचीन शारीरिक फिटनेस वाले मार्शल आर्ट से मुकाबला कर रहा है। चीन की महान दीवार सहित कई पार्क, झील और रिसॉर्ट योग करने के स्थान के तौर पर विकसित हो चुके हैं। भारत और चीन के साझा प्रयास से भारत के बाहर कुनमिंग के यूनान मिंजु विश्वविद्यालय में पहला योग कॉलेज खोला गया। योग के जरिए लोगों को अपनी व्यस्त दिनचर्या को स्वस्थ व्यवस्थित रखने में मदद मिल रही है। चिकित्सकों की माने तो योग से केवल व्यक्तिका तनाव दूर हो रहा है बल्कि मन मस्तिष्क को शांति भी पहुंच रही है।

आज योग दिवस है। समूचा विश्व इसे तन्मयता से मना रहा है। योग के अनुशासन व दर्शन को पूरी दुनिया आत्मसात कर रही है। उल्लेखनीय है कि योग के विज्ञान की उत्पत्ति भारत में हुई और योग भारत की देन है। भारतीय ग्रंथों में योग परंपरा का विस्तृत उल्लेख है। योग विद्या में भगवान शिव को आदि योगी कहा गया है। भगवान शिव के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों ने योग की परंपरा को आगे बढ़ाया। योग शब्द की उत्पत्ति जन्म संस्कृत शब्द युज से हुआ है। इसका अर्थ है स्वयं के साथ मिलन। महर्षि पतंजलि को योग का प्रणेता कहा जाता है।

उन्होंने अपने योगसूत्रों के माध्यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित एवं कुटबद्ध किया। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।

भगवद्गीता के अनुसार दुख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र और शीत-उष्ण इत्यादि द्वंद्वों में समभाव रखना ही योग है। कर्तव्य कर्म बंधक न हो इसलिए निष्काम भावना से उत्प्रेरित होकर कर्तव्य करने का कौशल योग है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार मोक्ष से जोडऩे वाले सभी व्यवहार योग हैं। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में कहा गया है। अथर्ववेद में उल्लिखित संन्यासियों के एक समूह वार्ता द्वारा शारीरिक आसन जो कि योगासन के रूप में विकसित हो सकता है पर बल दिया गया है।

यह योग की बड़ी उपलब्धि है कि उसके शास्त्रीय स्वरूप, दार्शनिक आधार और सम्यक स्वरूप को किसी अन्य धर्म ने नकारा नहीं है। यहां तक कि संसार को मिथ्या मानने वाले अद्वैतवादी भी योग का समर्थन किए हैं। अनीश्वरवादी सांख्य विद्वान भी योग का अनुमोदन करते हैं।

बौद्ध ही नहीं, मुस्लिम सूफी और ईसाई मिस्टिक भी किसी न किसी प्रकार अपने संप्रदाय की मान्यताओं और दार्शनिक सिद्धांतों के साथ योग का सामंजस्य किए हैं। सच तो यह है कि योग का किसी धर्म विशेष से संबंध नहीं है। यह धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा-सा प्रायोगिक विज्ञान है जो जीने की कला सिखाता है। इसे एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में भी देखा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने एक स्थान पर कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात योग से कर्मों में कुशलता आती है। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की विशद मीमांसा की गई है।

बौद्ध धर्म में कहा गया है कि कुशल चितैकग्गता योग: अर्थात कुशल चित की एकाग्रता ही योग है। दूसरी शताब्दी के जैन पाठ तत्वार्थसूत्र के अनुसार योग मन, वाणी और शरीर सभी गतिविधियों का कुलयोग है। भारतीय दर्शन में, षड् दर्शनों में से एक का नाम योग है।

भारत में योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका में फैला। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहां वे दोनों शारीरिक मुद्राओं आसन व प्राणायाम को अनुकूलित किया है। प्राचीनकाल में योग की इतनी अधिक महत्ता थी कि 11 वीं शताब्दी में भारतीय योगपाठ अमृतकुंड का अरबी व फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया।

आज दुनिया के सभी देशों में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है। चीन, सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक में लाखों की संख्या में लोग योगासन कर रहे हैं। चीन में हाल के वर्षों में योग बड़े पैमाने पर लोकप्रिय हुआ है। यह चीन के प्राचीन शारीरिक फिटनेस वाले मार्शल आर्ट से मुकाबला कर रहा है। चीन की महान दीवार सहित कई पार्क, झील और रिसॉर्ट योग करने के स्थान के तौर पर विकसित हो चुके हैं।

भारत और चीन के साझा प्रयास से भारत के बाहर कुनमिंग के यूनान मिंजु विश्वविद्यालय में पहला योग कॉलेज खोला गया। योग के जरिए लोगों को अपनी व्यस्त दिनचर्या को स्वस्थ व व्यवस्थित रखने में मदद मिल रही है। चिकित्सकों की माने तो योग से न केवल व्यक्तिका तनाव दूर हो रहा है बल्कि मन व मस्तिष्क को शांति भी पहुंच रही है। योग के जरिए दिमाग और शरीर की एकता का समन्वय होता है। योग संयम से विचार व व्यवहार अनुशासित होता है।

योग की सुंदरताओं में से एक खूबी यह भी है कि बूढ़े या युवा, स्वस्थ या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है। योगाभ्यास से रोगों से लडऩे की शक्ति में वृद्धि होती है। त्वचा पर चमक बनी रहती है और शरीर स्वस्थ, निरोग व बलवान रहता है तथा अंतस में शांति का उद्भव होता है।

भारतीय योग और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। सच कहें तो आध्यामिक उन्नति या शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता एवं महत्व को प्राय: सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक संप्रदायों ने एकमत से स्वीकार किया है। चूंकि योग एक वैज्ञानिक व प्रामाणिक पद्धति है इसलिए न तो अत्यधिक साधनों की जरूरत पड़ती है और न ही अत्यधिक धन खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा आधुनिक युग में योग की बढ़ती स्वीकार्यता का एक कारण यह भी है कि लोगों के जीवन में व्यस्तता एवं व्यग्रता का विस्तार हुआ है।

अंग्रेजी दवाओं के इस्तेमाल से शरीर में कई किस्म की बीमारियां फैल रही हैं। जबकि दूसरी ओर योगाभ्यास से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव की संभावना नगण्य है। भारत के लिए गर्व की बात है कि योग को संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन 'यूनेस्को’ ने भी अपनी प्रतिष्ठित अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कर लिया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों के दायरे में मौखिक परंपराओं और अभिव्यक्तियों, प्रदर्शन कलाओं, सामाजिक रीतियों-रिवाजों और ज्ञान इत्यादि को रखा जाता है। चूंकि अभी तक योग को खेल की विधा माना जाता था, इसलिए इसे अब तक इस सूची में शामिल होने का मौका नहीं मिला था। लेकिन जब भारत सरकार द्वारा योग को दुनिया भर में स्थापित करने का प्रयास तेज हुआ और संयुक्त राष्ट्र को योग की सार्वभौमिक महत्ता से जुड़े प्रामाणिक दस्तावेज भेजा गया तो इथियोपिया के अदिस अबाबा में हुई संयुक्त राष्ट्र की इंटरगर्वनमेंटल समिति ने भारत के इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।

यह उपलब्धि योग की बढ़ती स्वीकार्यता व वैज्ञानिक महत्ता का ही प्रतिफल है। उल्लेखनीय है कि 21 जून 2015 को पहली बार योग दिवस मनाया गया। 27 सितंबर 2014 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया को योग की महत्ता को समझाया और इसे भारत की प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार कहा। उनके प्रयासों से ही 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।


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