न्याय यात्रा में अवरोध के निहितार्थ
14 जनवरी को मणिपुर से प्रारम्भ हुई कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' को जिस प्रकार से उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में रोकने की कोशिशें हो रही हैं

14 जनवरी को मणिपुर से प्रारम्भ हुई कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' को जिस प्रकार से उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में रोकने की कोशिशें हो रही हैं, वह पूरी तरह से गैर लोकतांत्रिक तो है परन्तु उनसे अन्य महत्वपूर्ण संकेत मिल रहे हैं। देश के 15 राज्यों से होती हुई 6700 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली न्याय यात्रा मुम्बई में 20 मार्च को खत्म होगी। यह 'हाई ब्रीड' यात्रा कही जा रही है जिसमें राहुल कुछ फासला अपने वाहन से तय करेंगे जो इस काम के लिये विशेष रूप से निर्मित किया गया है और कुछ पैदल।
यह सभी को याद है कि इसके पहले राहुल सितम्बर, 2022 में तमिलनाडु के कन्याकुमारी से श्रीनगर तक का पैदल मार्च कर चुके हैं जो 30 सितम्बर, 2023 को समाप्त हुआ था। पिछली यात्रा को ध्यान में लाने का मकसद यह है कि उस लगभग 3200 किमी की यात्रा में किसी भी सरकार द्वारा कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं किया गया था। यहां तक कि केन्द्र सरकार की ओर से भी नहीं। भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने अवश्य ही उन पर फ़ब्तियां कसी थीं या गैरज़रूरी किस्म के बयान दिये थे जिनका उद्देश्य कांग्रेस का मनोबल गिराना था। हां, जम्मू में एकाध जगह पर राहुल की सुरक्षा सम्बन्धी कुछ प्रश्न खड़े हुए थे जिसमें स्थानीय प्रशासन ने इसके पहले कि कोई अनहोनी हो जाये, सुधार कर लिया था। इस बार की यात्रा अभी तक 10 दिनों की हो चुकी है। फिलहाल वह उत्तर-पूर्व में ही है।
मणिपुर के बाद वह नगालैंड होती हुई असम पहुंची, फिर अरूणाचल प्रदेश गयी। वहां एक दिन रहकर राहुल ने फिर से असम में प्रवेश किया। यहां वे 25 तक रहेंगे तत्पश्चात उनकी यात्रा मेघालय जा रही है। पहली बार जब राहुल 19 जनवरी को गुवाहाटी पहुंचे, तो उन्होंने अपने भाषण में राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को देश का सबसे भ्रष्ट सीएम बतलाते हुए कहा कि उनका पूरा परिवार भ्रष्टाचार में लिप्त है। इससे बौखलाये हिमंता ने राहुल को चुनौती दे डाली कि वे शहर के भीतर से अपनी यात्रा न निकालें। अगर राहुल ने ऐसा किया तो उनके खिलाफ सीधे मामला दर्ज होगा और चुनाव के बाद गिरफ्तारी होगी। यह टकराव बढ़ गया जब 22 जनवरी को उन्हें नगांव के शंकरदेव मंदिर जाने से रोक दिया गया। वे सड़क पर ही बैठ गये।
कांग्रेस के केवल दो नेताओं को ही जाने की अनुमति मिली। स्थिति और भी खराब हो गई जब रविवार को उनके काफिले पर हमला हुआ और यात्रा सम्बन्धी पोस्टर फाड़ दिये गये। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश की कार पर भी हमले हुए तथा वहां के कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा को चोटें आईं। मामला मंगलवार को अधिक बिगड़ गया जब न्याय यात्रा को गुवाहाटी में रोकने के लिये पुलिस ने बैरिकेडिंग कर दी। इसे हटाकर जब कांग्रेसी आगे बढ़ने लगे तो पुलिस ने उन पर लाठी चार्ज किया। इतना ही नहीं, राहुल के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश भी श्री बिस्वासरमा ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को दिये हैं। पुलिस के अनुसार काम का दिन होने के कारण यात्रा को शहर के भीतर से जाने के लिये मना किया गया था क्योंकि इससे शहर का यातायात प्रभावित होता। इस पर कांग्रेस का कहना है कि जब उसी रास्ते से भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली निकल सकती है और बजरंग दल वाले जुलूस ले जा सकते हैं तो उन्हें अनुमति देने में क्या दिक्कत है।
ये सारी कार्रवाइयां बतला रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी की न केवल असम की वरन केन्द्र सरकार भी यात्रा से घबराई हुई है। हिमंता एवं उनका परिवार शारदा चिट फंड घोटाले में फंसे हुए बताये जाते हैं इसलिये वे पूरी तरह से भाजपा व केन्द्र के रहमो-करम पर हैं। उन्होंने कांग्रेस में 15 वर्ष बिताए थे और जब उन पर सीबीआई का शिकंजा कसा, तो वे भाजपा में चले गये। केन्द्र के आदेशों का पालन करना उनकी मजबूरी है। साथ ही वे पूरे उत्तर-पूर्वी राज्यों के विकास हेतु बने नॉर्थ ईस्ट डेवलपमेंट एजेंसी (नेडा) के अध्यक्ष भी हैं। जिस प्रकार से राहुल की स्वीकार्यता एवं लोकप्रियता इस क्षेत्र में बढ़ी है, उससे भाजपा व खुद हिमंता को अपनी जमीन खिसकती हुई दिख रही है। उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर चिंता है कि उनके राज्य समेत पूरे उत्तर-पूर्व भारत में यदि भाजपा का प्रदर्शन ठीक न रहा तो उसका ठीकरा उन्हीं के सिर पर फोड़ा जायेगा। उनका मुख्यमंत्री का पद जायेगा, सो अलग। इसलिये वे आक्रामकता एवं अतिरिक्त स्वामिभक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं।
हिमंता यात्रा की राह में आने वाले उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी राह दिखलाने की कोशिश कर रहे हैं जिनमें भाजपा की सरकारें हैं। इनमें छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि हैं जहां के मुख्यमंत्री हिमंता का अनुसरण करने की भूल कर सकते हैं। 'भूल' इसलिये, क्योंकि हिमंता के उठाये कदमों से राहुल एवं न्याय यात्रा को लाभ ही पहुंचता हुआ दिख रहा है। खुद राहुल ने मंगलवार को अपनी मीडिया कांफें्रस में स्वीकार किया कि उन्हें तो प्रचार का फायदा मिल रहा है इसलिये वे चाहते हैं कि हिमंता इस प्रकार की कार्रवाइयां करते रहें। राहुल की न्याय यात्रा गंतव्य से अभी मीलों दूर है परन्तु इस बार जो हमले उन पर हो रहे हैं उससे साफ है कि लोग उनसे प्रभावित हो रहे हैं जिसका फायदा कांग्रेस सहित संयुक्त प्रतिपक्ष यानी 'इंडिया' को मिल सकता है।


