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राहुल की चेतावनी का मप्र के नेताओं पर कितना होगा असर 

 मध्य प्रदेश की कांग्रेस में कितनी गुटबाजी है इससे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अनजान हैं, अथवा उन्हें इसके खत्म होने का गुमान हो रहा है

राहुल की चेतावनी का मप्र के नेताओं पर कितना होगा असर 
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मंदसौर। मध्य प्रदेश की कांग्रेस में कितनी गुटबाजी है इससे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अनजान हैं, अथवा उन्हें इसके खत्म होने का गुमान हो रहा है, ऐसा कहा नहीं जा सकता। हालांकि उन्होंने नेताओं को साफ संकेत जरूर दे दिया है कि अगर उन्होंने जमीन पर जाकर काम नहीं किया तो उनका पार्टी में भविष्य अच्छा नहीं होगा।

मंदसौर में बीते वर्ष छह जून के दिन किसानों पर हुई पुलिस गोलीबारी में मारे गए किसानों को श्रद्घांजलि देने पहुंचे राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि अब तो आपको महसूस हो गया होगा कि कांग्रेस के नेता एक होकर पार्टी टीम बनकर चुनाव लड़ रहे हैं। साथ में यह भी महसूस हो रहा होगा कि सबके सब मिलकर एक साथ आगे बढ़ रहे हैं।

राहुल ने कार्यकर्ता को पार्टी का सिपाही बताया और कहा, "आप मतदान केंद्र पर लड़ते हो, अपना खून पसीना बहाते हो। मेरे लिए सबसे पहले देश की जनता और उसके बाद दूसरे नंबर पर कार्यकर्ता हैं। नेताओं का तीसरा नंबर आता है। बीते 15 सालों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर सत्ताधारी दल और संघ की ओर से किए गए प्रहारों का भी राहुल ने जिक्र किया और कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि पार्टी के सत्ता में आने पर उनका ख्याल रखा जाएगा।"

कांग्रेस अध्यक्ष ने एक तरफ जहां कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि राज्य में कांग्रेस के सत्ता में आने पर पहला स्थान उनका होगा। बस अब उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की जन विरोधी, किसान विरोधी नीतियों का गांव गांव तक प्रचार करना है। साथ ही यह बताना है कि कांग्रेस की सरकारों ने सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए क्या क्या किया। वहीं चेहरे पर छाई तल्खी के साथ मंच पर बैठे नेताओं की ओर इशारा किया और कहा कि आप लोगों का काम राज्य के लोगों के घरों, सड़कों, गांव व शहरों तक ले जाने का है।

उन्होंने कहा कि उनका मध्य प्रदेश के नेताओं के लिए यह साफ संदेश है कि जो नेता लोगों के बीच जाएगा, जनता से मिलेगा, उनके लिए काम करेगा, मिट्टी से सीधा जुड़ेगा, उसी को आने वाली सरकार में जगह मिलेगी। वहीं महिलाओं और युवाओं के लिए कांग्रेस के दरवाजे हमेशा खुले हैं।

राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस और गुटबाजी एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। यह बात अलग है कि वर्तमान में यह गुटबाजी खुले तौर पर सामने नहीं आ रही है, मगर अंदर खाने यह गुटबाजी पहले से कहीं ज्यादा होने लगी है। गुटों में बंटी कांग्रेस के दिग्गज अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उनके नाम का झंडा दशकों से उठाकर चलने वाले कार्यकर्ता को महत्व न मिले।

वह चुनाव जीतने की हैसियत भले न रखता हो, मगर वे उसे टिकट दिलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। पिछले तीन चुनाव इस बात की गवाही देते हैं कि कांग्रेस में सक्षम और जीतने वाले उम्मीदवारों की बजाए टिकट उन लोगों को मिले जो गुट से नाता रखते थे।

कांग्रेस को करीब से देखने वालों का मानना है कि, कांग्रेस को अपनी ताकत दिखाने के लिए सबसे पहले मतभेदों को भुलाना होगा। नेता ऐसा करने में सफल हुए तो कांग्रेस के लिए चुनाव ज्यादा कठिन नहीं होगा लेकिन ऐसा हो सकेगा, इसमें संदेह है।


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