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बांके बिहारी के कामकाज में दखल नहीं देगी सरकार, 30 अक्टूबर को अगली सुनवाई

मथुरा, वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में दर्शनार्थियों की सुविधा व सुरक्षा के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर निर्माण के मामले में सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा कि हम सिर्फ चढ़ावे व चंदे की रकम से कॉरिडोर का निर्माण करना चाहते हैं

बांके बिहारी के कामकाज में दखल नहीं देगी सरकार, 30 अक्टूबर को अगली सुनवाई
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प्रयागराज। मथुरा, वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में दर्शनार्थियों की सुविधा व सुरक्षा के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर निर्माण के मामले में सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा कि हम सिर्फ चढ़ावे व चंदे की रकम से कॉरिडोर का निर्माण करना चाहते हैं। सरकार मंदिर के मैनेजमेंट में किसी तरह का दखल नहीं देना चाहती है। इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी।

मुख्य न्यायाधीश प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने मथुरा के आनंद शर्मा और एक अन्य व्यक्ति की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले में अगली तारीख 30 अक्टूबर तय की।

सरकार की तरफ से दोहराया गया कि यह कॉरिडोर श्रद्धालुओं की सुविधा व सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। जनहित याचिका में बांके बिहारी मंदिर में भगदड़ की घटना की जांच कराने की मांग की गई है।

मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर के लिए गलियारा निर्माण के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को कहा कि वह भक्तों के चढ़ावे के पैसे से इस गलियारा का निर्माण करना चाहती है लेकिन वह सिबायत (गोस्वामी परिवार) के कामकाज में दखल नहीं देने जा रही।

सुनवाई के मौके पर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार इस गलियारा का निर्माण भगवान को चढ़ाए गए पैसों से करना चाहती है। सरकार के इस कथन का गोस्वामी परिवार द्वारा विरोध किया गया। तब, सरकार की ओर से कहा गया कि वह सिबायत (गोस्वामी परिवार) के कामकाज में दखल देने नहीं जा रही है।

कोर्ट ने गोस्वामी परिवार द्वारा इस मामले में पक्षकार बनाए जाने के आवेदन पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। पूर्व में कोर्ट को बताया गया था कि राज्य सरकार बांके बिहारी मंदिर के पास 5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर एक गलियारे का निर्माण करने की योजना बना रही है, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाएं दी जा सकें।

इस पर अदालत ने राज्य सरकार को मंदिर जाने वाले भक्तों के प्रबंधन के संबंध में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। इसके बाद गोस्वामी परिवार द्वारा पक्षकार बनने का एक आवेदन दाखिल कर इस योजना पर यह कहते हुए आपत्ति जताई गई थी कि यह एक निजी मंदिर है और सरकार द्वारा इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।


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