एससी-एसटी एक्ट पर सरकार जाएगी सुप्रीम कोर्ट : रमन
एससी/एसटी एक्ट को लेकर आए फैसले के बाद यहां पुलिस मुख्यालय का आदेश छत्तीसगढ़ सरकार ने स्थगित कर दिया है। इस निर्णय पर अपना पक्ष रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी

रायपुर। एससी/एसटी एक्ट को लेकर आए फैसले के बाद यहां पुलिस मुख्यालय का आदेश छत्तीसगढ़ सरकार ने स्थगित कर दिया है। इस निर्णय पर अपना पक्ष रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मंगलवार को यह जानकारी मीडिया से चर्चा के दौरान दी।
अपने कांकेर दौरे पर रवाना होने से पहले मुख्यमंत्री ने कहा कि अपना पक्ष रखने तक के लिए आदेश को स्थगित किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दलित समाज की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 20 मार्च को आया था, सेलो कार्ट, सेलो ट्राइब एट्रोसिटी एक्ट के लिए इस संबंध में छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय ने एक आदेश जारी किया था, उस आदेश को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया गया है। राज्य सरकार भी इस निर्णय से प्रभावित है।
उन्होंने कहा, "दलित वर्ग के सम्मान की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है। इस फैसले पर राज्य सरकार भी सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर करेगी। हमारे यहां भी 75 प्रतिशत लोग हैं उनके सम्मान के लिए सरकार संवेदनशील हैं।"
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों एडीजी अपराध अनुसंधान एके विज ने छत्तीसगढ़ के सभी जिला पुलिस अधीक्षकों से कहा था कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का कड़ाई से पालन करें, वरना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई तो होगी ही साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी भी होंगे।
विज ने 6 अप्रैल को यह पत्र जारी किया था। इसमें रेल एसपी को भी शामिल किया गया है।
पुलिस मुख्यालय के पत्र के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की क्रिमिनल अपील नंबर 416ए 2018 डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य और अन्य में एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए पुलिस अधीक्षकों से दिशा-निर्देशों का पालन करने को कहा गया। सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च अदालत द्वारा अजा/जजा अत्याचार निवारण अनियम-1989 के प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के संबंध में निर्देश दिए गए थे।
अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामले में गिरफ्तारी के प्रावधानों के दुरुपयोग को देखते हुए एक लोक सेवक की गिरफ्तारी केवल नियुक्तकर्ता प्राधिकारी की लिखित अनुमति से और गैर सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद हो सकती है। स्वीकृति दिए जाने के कारणों का उल्लेख प्रत्येक मामले में किया जाना आवश्यक है। मजिस्ट्रेट इन कारणों की स्कूटनी किए जाने के बाद आगामी अभिरक्षा का आदेश देगा।
एक निर्दोष को झूठा फंसाने से बचाने के लिए प्रारंभिक जांच हो सकती है, जो संबंधित उपपुलिस अधीक्षक के द्वारा यह पता लगाने के लिए किए आरोपों में अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध बनता है या नहीं और वह आरोप तुच्छ या उत्प्ररित तो नहीं है।
दिशा निर्देश की कंडिका 2 और 3 का पालन नहीं किए जाने पर संबंधित दोषी अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ अवमानना कार्रवाई के लिए दायी होगा।


