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बढ़ते प्रदूषण पर एक्शन में सुप्रीम कोर्ट, केंद्र से पूछा, आपने क्या कदम उठाए हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को फटकार लगाई

बढ़ते प्रदूषण पर एक्शन में सुप्रीम कोर्ट, केंद्र से पूछा, आपने क्या कदम उठाए हैं?
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नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने प्रदूषण से निपटने के मुद्दे पर केंद्र पर सवालों की झड़ी लगा दी और पूछा कि सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए हैं, कि किसान पराली न जलाएं, बल्कि इसे प्रभावी बाजार लिंकेज नेटवर्क के जरिए उद्योगों को मुहैया कराएं।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार को पराली जलाने से रोकने के लिए एक समाधान और इसे नियंत्रित करने के प्रभावी उपायों की भी जरूरत है।

मेहता, जो एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बता रहे थे, ने जवाब दिया कि उनका यह कहने का कभी इरादा नहीं रहा है कि प्रदूषण के लिए केवल किसान ही जिम्मेदार हैं।

इस मौके पर, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "किसानों की समस्या प्रवर्तन की नहीं है, बल्कि प्रोत्साहन की है। यदि आप प्रोत्साहन देते हैं तो किसान स्विच (पराली जलाने का विकल्प अपनाना) क्यों नहीं करेंगे। आप इन चीजों को लागू नहीं कर सकते।"

न्यायमूर्ति कांत ने मेहता को बताया कि छोटे किसान बहुत गरीब हैं और उनके पास फसल अवशेष प्रबंधन की सुविधा के लिए मशीनों का खर्च उठाने के लिए अच्छी वित्तीय स्थिति नहीं है।

उन्होंने बताया कि पराली का उपयोग कई अन्य उद्देश्यों जैसे भेड़ और गायों के लिए चारे के लिए किया जा सकता है।

मेहता ने कहा कि दो लाख मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं, जिन पर 80 फीसदी सब्सिडी है और उन्हें सहकारी समितियों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।

जस्टिस कांत ने कहा, "मैं एक किसान हूं, सीजेआई भी एक किसान हैं, हम इसे जानते हैं। हम जानना चाहते हैं कि ऐसी कितनी सहकारी समितियां स्थापित की गई हैं और उन्होंने कितनी मशीनों की आपूर्ति की है। क्या सब्सिडी दी जाती है?"

मेहता ने कहा कि सीमांत किसानों को ये मशीनें मुफ्त में मिल रही हैं। लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह कहते हुए पलटवार किया कि "हमें कुछ आंकड़े दें, चार जिलों का एक नमूना पेश करें। कुल पूंजीगत लागत क्या है? कुल कितने परिव्यय की आवश्यकता है?"

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "थर्मल पावर प्लांट और किसान के बीच क्या व्यवस्था है? कौन (पराली) एकत्र करने वाला है?" इसी बात को आगे बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "एक बार धान की कटाई के बाद, किसान अगली फसल के लिए जमीन तैयार करने के लिए मजबूर हैं।"

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आगे पूछा कि केंद्र ने इन किसानों के लिए क्या आर्थिक प्रोत्साहन दिया है। मेहता ने प्रतिक्रिया के लिए समय मांगते हुए कहा, "सभी सवालों के जवाब सोमवार को दिए जाएंगे।"

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रदूषण के 70 प्रतिशत कारण पराली जलाने के अलावा अन्य हैं, और पूछा, "आपने क्या कदम उठाए हैं। आप क्या कदम उठाना चाहते हैं?"

मेहता ने उत्तर दिया कि प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक धूल है, "यह 40:60 की तरह है।"

पीठ ने 'सभी हितधारकों की एक आपातकालीन बैठक बुलाने' के लिए भी कहा क्योंकि दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में है और अगले कुछ दिनों तक इस श्रेणी में बनी रहेगी।

मेहता ने जवाब दिया कि राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक बैठक निर्धारित की गई है।

पीठ ने मेहता से यह भी कहा कि वह पंजाब और हरियाणा सरकारों को कुछ दिनों के लिए पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए कदम उठाने को कहें।

विस्तृत सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत ने मामले को सोमवार को आगे की सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया और केंद्र को राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के कदमों के बारे में सूचित करने के लिए कहा।

शीर्ष अदालत एक नाबालिग लड़के की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने और उच्च प्रदूषण स्तर से जुड़े अन्य कारकों के खिलाफ निर्देश देने की मांग की गई है।


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