भारत सरकार कहीं नहीं दिख रही है
जैसा कि मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि सरकार के अनियोजित और अचानक लॉक डाउन की घोषणा से सभी देश के नागरिकों को तकलीफ़ के दौर से गुजरना पड़ा

जैसा कि मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि सरकार के अनियोजित और अचानक लॉक डाउन की घोषणा से सभी देश के नागरिकों को तकलीफ़ के दौर से गुजरना पड़ा है और उनमें से सबसे
ज्यादा प्रभावित हमारे प्रवासी मजदूर भाई बहन हुए हैं। इन प्रवासीओं के दुख पीड़ा और कठिनाईयों के दृश्य ना केवल देश ने बल्कि पूरे संसार ने देखा है। इनको घरों को जाने के लिए
कोई साधन की व्यवस्था नहीं दी गई मगर विलंब से कुछ राज्यों ने की कुछ ने नहीं, फिर किराया कौन भरेगा इस पर भी भ्रम की स्थिति रही और कुल मिलाकर इन प्रवासी मजदूरों को
इतनी बुरी हालत में छोड़ दिया गया जिसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। हजारों में यह लोग पैदल चल दिए और पैदल चलते हुए जो दृश्य देखे वह दिल दहलाने वाले थे कि कुछ
लोगों ने अपने बुजुर्गो को कंधे पर उठाया, कुछ साइकिल कुछ रिक्शों और ठेलों पर जिनके पास थोड़े पैसे थे वह ट्रकों में भरकर जाते दिखे ऐसे दृश्य मैने अपने पूरे जीवन काल में नहीं देखा हैं।
ऐसे समय में कई हमारे मजदूर भाई बहन रेल की पटरियों पर चलते हुए कटे क्याेंकि सड़कों के मार्गो पर उन्हें रोका जा रहा था और कईयों ने अपनी जान सड़क हादसों में गंवा दी। ऐसी दुर्दशा
से बचा जा सकता था यदि सरकार लॉक डाउन की घोषणा के समय ही यह कह देती की सभी कामगार जहां भी जिसके पास काम कर रहे हैं वहीं रहते रहेंगे और इनकी हर जरुरत की
जिम्मेवारी उस नियुक्ता की होगी और उस नियुक्ता के नुकसान कि भरपाई सरकार द्वारा की जाएगी जिसका मूल्यांकन करके बाद में बताया जाएगा।
जो दृश्य प्रवासी मजदूरों के इन दिनों देखने को मिल रहे हैं ऐसा लग रहा था कि देश और राज्यों में कोई सरकार नहीं है। कहते हैं ऐसा दुखद दृश्य हिंदुस्तान पाकिस्तान विभाजन के
समय में देखने को मिला था मगर आज 70 साल में तो हमारे देश में ऐसी व्यवस्थाएं हो गई हैं की हम 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था का सपना देख रहे थे और 5 ट्रिलियन डॉलर का मतलब
350 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था। इसलिए विभाजन के 70 साल के दृश्यों को अब की विशाल व्यवस्थाओं के बीच में आज के दृश्यों को देखना उचित नहीं होगा। उस समय स्वतंत्र
भारत की जीडीपी केवल 2.7 लाख करोड़ रुपए थी जबकि अब 200 लाख करोड़ रुपए है, दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। व्यवस्था करने में जो प्रवासी मजदूरों का बेहाल किया है वह
बहुत ही शर्मनाक और संसार में सिर झुकने वाला काम हुआ है। मैं इसकी घोर निन्दा करता हूं।
यह सब कुछ देखने के बाद भी मुझे अचंभा है कि एनडीए सरकार नहीं संभली है और जिस तरह से आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है वह कहीं से भी न्यायसंगत नहीं दिखता है।
वैसे हर मामले में सरकार दूसरे देशों के उदाहरण देती रही है पर इस बार नहीं किया कि और देशों में किस तरह से आर्थिक मदद अपने नागरिकों को दी जा रही है
और यदि मैं केवल जर्मनी की ही बात करूं जिसने हरेक प्रभावित नागरिक के नुकसान कि क्षति पूर्ति उसके हाथ तक पहुंचाई है। इस सरकार ने और देशों के साथ बस यह तुलना कि है कि हम
जीडीपी का 10 प्रतिशत आर्थिक पैकेज के रूप में दे रहे हैं तो बाकी देश कितना कितना दे रहे हैं मगर जैसा विशेषज्ञ बता रहे हैं कि पूरा पैकेज जीडीपी का 2.5 प्रतिशत ही निकलेगा और वह भी सीधा किसी को मिलेगा ऐसा लग नहीं रहा है।
सरकार द्वारा जो सभी देशवासियों का नुकसान होना था खासतौर पर गरीब, मजदूरों और किसानों का वह तो हो चुका है मगर सरकार से हाथ जोड़ कर विनती है वह ऐसा काम करें कि
जिससे यह देश न केवल फिर से खड़ा हो सके बल्कि मजदूर, किसान और सभी कारोबारियों के इस तरह से आर्थिक मदद करे की सीधे उनके हाथ में जाए जिससे कि वह खर्च करेंगे तो पैसा
बाजार में आयेगा और अर्थव्यवस्था चलने लगेगी। जिस तरह से सरकार अभी आर्थिक पैकेज का ऐलान कर रही है मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इससे कुछ भी कामगारों, किसानों,
छोटे छोटे व्यवसाय और कारोबारियों को मदद नहीं मिलेगी और आखिर नतीजा देश बहुत पिछे चला जाएगा।
-:शरद यादव:-


