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सरकार की लापरवाही से यात्राओं में जोखिम

देश में यात्रा करना कितना जोखिम भरा हो चुका है, इसका एक दर्दनाक उदाहरण अहमदाबाद में 12 जून को हुआ विमान हादसा है

सरकार की लापरवाही से यात्राओं में जोखिम
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देश में यात्रा करना कितना जोखिम भरा हो चुका है, इसका एक दर्दनाक उदाहरण अहमदाबाद में 12 जून को हुआ विमान हादसा है। जिसमें विमान सवार यात्रियों में एक को छोड़ बाकी सभी 241 लोगों की जान चली गई और जिस बी जे मेडिकल कॉलेज हॉस्टल पर विमान गिरा, वहां और आसपास की सड़कों पर मौजूद कई लोग इसमें मारे गए। कम से कम 279 लोगों की मौत बताई जा रही है, हालांकि आंकड़ा और बढ़ सकता है। मृतकों की पहचान के लिए डीएनए परीक्षण का सहारा लिया जा रहा है।

फिलहाल विमान का ब्लैक बॉक्स मिल गया है तो हादसे के सही कारण की पड़ताल हो रही है। इस बीच सरकार ने एक जांच समिति गठित की है। लेकिन इस समिति के जो भी निष्कर्ष सामने आएंगे, क्या उनसे भविष्य के लिए कोई सबक लिया जाएगा, यह विचारणीय है। क्योंकि उत्तराखंड में रविवार सुबह एक हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से पायलट समेत सवार सभी 7 लोगों की मौत हो गई। जब से चारधाम यात्रा शुरु हुई है, उत्तराखंड में इस तरह के कम से कम पांच हादसे हो चुके हैं। 8 मई को हुए ऐसे ही एक हादसे में 6 लोगों की जान गई थी। ये भी सरकार की लापरवाही का नतीजा है कि उड़ान के नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जाता। इधर 9 जून को मुंबई में लोकल ट्रेन में भीड़ अधिक होने से कम से कम पांच लोग पटरी पर गिरकर मर गए। सड़क दुर्घटनाओं का तो कोई ओर-छोर ही नहीं है। हर दिन बड़ी संख्या में लोग या तो मारे जाते हैं या फिर बुरी तरह घायल होते हैं। जो पैदल चलते हैं, सड़कें उनके लिए भी सुरक्षित नहीं हैं।

इन दुर्घटनाओं पर रोक लगाने की जगह सरकार की पूरी दिलचस्पी फोटो खिंचाने और बड़े-बड़े दावे करने में दिखाई देती है। अहमदाबाद हादसे के अगले दिन ही प्रधानमंत्री मोदी की कई तस्वीरें आई हैं, एक तस्वीर में ऊपर विमान का हिस्सा लटका हुआ है, श्री मोदी सिर उठाकर उसे देख रहे हैं और ये तस्वीर से नीचे से ऊपर खींची गई है, यानी इसके लिए फोटोग्राफर को लगभग लेट कर फोटो खींचनी पड़ी होगी। इसे देखकर लगा कि प्रधानमंत्री के लिए हर हाल में अलग-अलग एंगल से फोटो खिंचवाना कितना जरूरी है। वे चाहे गुफा में ध्यान लगाएं, विवेकानंद मेमोरियल में मौन चिंतन करें, केदारनाथ के दर्शन के लिए चढ़े या विमान हादसे का मुआयना करें, तस्वीरों में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। और जहां तक दुर्घटनाओं का सवाल है तो गृहमंत्री अमित शाह कह ही चुके हैं कि दुर्घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। लेकिन क्या गृहमंत्री ब्रिटेन को भी ऐसा ही बोल सकते हैं, क्योंकि वह भी अपने नागरिकों की मौत की जांच करना चाहता है।

ब्रिटेन तो सवाल करेगा कि जब दुर्घटनाओं पर आपका बस नहीं है तो फिर उड़ान के नियम, कानून, सुरक्षा मानक, आपदा प्रबंधन ये सब क्या दिखावे के लिए भारत में बने हैं। जब आपको कोई जिम्मेदारी लेनी ही नहीं है तो फिर मंत्रालय का गठन भी क्यों किया गया है, क्या केवल इसलिए कि मंत्रालय बताए कि सरकारी उड़ान सेवाओं में घाटा है और इस तरह सभी चीजों का निजीकरण कर दिया जाए। लगभग सारे विमानतल और बंदरगाह अडानी समूह के हवाले हो ही चुके हैं, जो थोड़ी बहुत सरकारी संपत्ति और प्रतिष्ठान बचे हैं, उन्हें भी अपने लोगों में बांटने का सिलसिला चल ही रहा है। अभी दिल्ली के चिड़ियाघर तक को अंबानी के हवाले करने की योजना बना ली गई है। पहाड़, खदानें, जंगल, तालाब, रेल, हवाई क्षेत्र, समुद्री इलाके सब व्यापारियों के हवाले कर दिया जाए तो फिर सरकार क्या केवल तस्वीर खिंचाने के लिए बनाई गई है, यह सवाल अब देशवासियों को उठाना होगा।

विपक्ष तो काफी अरसे से इन सवालों को उठा रहा है। लेकिन हर बार देश दुख में है, जैसे बहाने से सरकार सवालों को टालती है। इधर अनाप-शनाप खबरों को ट्रेंड करवा कर जनता का ध्यान भटकाया जा रहा है। इस हादसे में एक व्यक्ति रमेश विश्वासकुमार की जान बची, तो इस पर बेतुके सवाल होने लगे कि जब प्लेन गिर रहा था तो वे बाहर कैसे कूदे। इसी तरह आर्यन असारी नाम के छात्र ने विमान का गिरते हुए वीडियो बनाया तो उसे भी पुलिस पूछताछ के लिए ले गई, जबकि वह अपने गांव से पढ़ने आया था और हवाई जहाजों के वीडियो बनाकर अपने दोस्तों को दिखाना चाहता था। इस हादसे पर बाबा रामदेव ने कहा कि मुझे पता चला है कि विमान के रखरखाव और सेवा का काम तुर्की की एक एजेंसी करती थी। इस बेकार के इल्जाम पर अब तुर्की की कंपनी ने स्पष्टीकरण जारी किया है कि टर्किश टेक्निक ने कभी भी एअर इंडिया बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर का रखरखाव नहीं किया। टर्किश टेक्निक का एअर इंडिया के साथ रखरखाव समझौता है, लेकिन यह बोइंग 777 वाइड-बॉडी विमान तक ही सीमित है और बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर को कवर नहीं करता है।

रामदेव के एक बेतुके आरोप ने भारत की जबरन किरकिरी करा दी। बहुत से लोग इस हादसे में कांग्रेस को दोषी ठहरा रहे हैं कि ये विमान कांग्रेस सरकार के वक्त खरीदा गया था और तब ऐसे कई घोटाले हुए थे। अगर ऐसा है तो भी 11 सालों में मोदी सरकार ने ऐसे घोटालों और पुराने विमानों की जांच क्यों नहीं की। उधर हिंदुत्व का खेल भी शुरु हो गया है कि इस हादसे में एक भगवतगीता बच गई। आज तक की पत्रकार श्वेता सिंह तो बाकायदा उसे प्रणाम करते दिखीं। अच्छी बात है कि एक किताब नहीं जली, लेकिन क्या ये सूचना उन दुखद कहानियों से बढ़कर है जो कम से कम दो सौ परिवारों का सच बन चुकी है।

शायद गंभीर हादसों पर हमारा लापरवाह रवैया दुखद कहानियों में नए पन्ने जोड़ता जा रहा है। बहरहाल अब देखना है कि मोदी सरकार इस हादसे को लेकर कोई बड़ा फैसला करती है या नहीं, ये बात भाजपा याद रखे कि इसमें गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भी जान गई है।


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