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चुनावी स्वार्थ में पिछड़ा वर्ग आयोग पर आगे बढ़ी सरकार : मायावती

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने लोकसभा से पारित हुए एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक और केंद्र सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का स्वागत किया है

चुनावी स्वार्थ में पिछड़ा वर्ग आयोग पर आगे बढ़ी सरकार : मायावती
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लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने लोकसभा से पारित हुए एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक और केंद्र सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का स्वागत किया है, लेकिन पार्टी ने इसे केंद्र सरकार व भाजपा का राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ भरा कदम करार दिया है।

पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने बयान में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में लोकसभा व इससे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में विधानसभा के होने वाले आमचुनावों में अपने राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ को खास ध्यान में रखकर ही एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक का पास कराया गया है।

उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी को यह भी पूरा भरोसा है कि यह विधेयक राज्यसभा में भी पास हो जाएगा।"

मायावती ने कहा, "हमारा केंद्र सरकार से यह भी कहना है कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन को प्रभावी बनाने के लिए पूरी ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करने की जरूरत है, क्योंकि इस मामले में इन वर्गों के कर्मचारी केंद्र की सरकार के रवैये से अभी भी पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हैं।"

बसपा प्रमुख ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का भी उनकी पार्टी स्वागत करती है, लेकिन इनका यह प्रयास केवल कोरा कागजी, दिखावटी व चुनावी स्वार्थ भरा नहीं होना चाहिए, बल्कि इन वर्गों का संवैधानिक व कानूनी हक भी पूरी ईमानदारीपूर्वक मिलना चाहिए।

मायावती ने कहा, "बीजेपी व आरएसएस एंड कंपनी के लोगों के तथा इनकी सरकारों के भी चाल, चरित्र व चेहरे को देखकर ऐसा हमें कतई नहीं लगता कि देश में दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों के शिक्षा व नौकरी आदि में मिलने वाले आरक्षण संबंधी संवैधानिक अधिकारों के मामले में यह सरकार थोड़ी भी ईमानदारी बरतेगी। ये लोग चुनाव तक इसका ढिंढोरा पीटेंगे और चुनावी फायदे के लिए जनता को भरमाएंगे। लेकिन बीते चार साल में इन्होंने जो किया है, इससे जनता इन्हें अच्छी तरह पहचान गई है।"

बसपा अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र की विद्वेषपूर्ण, निरंकुश व अहंकारी सरकार को एससी-एसटी अत्याचार निवारण कानून मूल रूप में बहाल कराने के लिए झुकाना व मजबूर कर देना कोई मामूली घटनाक्रम नहीं है, बल्कि वर्तमान समय में यह एक खास उपलब्धि ही मानी जाएगी। यह दलितों के देशव्यापी आंदोलन का प्रतिफल है।


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