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ललित सुरजन की कलम से- पत्थरगड़ी, पेसा और स्वायत्त शासन

यदि सरकारी तंत्र में विकेन्द्रीकरण के बजाय केन्द्रीकरण पर जोर होगा तो कभी भी सुचारु शासन संभव नहीं हो सकता

ललित सुरजन की कलम से- पत्थरगड़ी, पेसा और स्वायत्त शासन
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'यदि सरकारी तंत्र में विकेन्द्रीकरण के बजाय केन्द्रीकरण पर जोर होगा तो कभी भी सुचारु शासन संभव नहीं हो सकता। हमारे सामने तमाम दुनिया के उदाहरण हैं। ग्रेट ब्रिटेन स्पष्ट तौर पर चार हिस्सों में विभाजित है और उनमें से हरेक को पर्याप्त स्वायत्तता हासिल है।

हमारा सत्ताधारी वर्ग जिस अमेरिका को अपना चरम आदर्श मानता है वहां भी पचास में से हर राज्य संघीय गणराज्य का सदस्य तो है, लेकिन हर बात के लिए संघ पर निर्भर नहीं है। ऐसा ही कनाडा में है। फिनलैंड जैसे छोटे देश में दो भाषाएं आधिकारिक हैं और सिंगापुर में चीनी व मलय के साथ तमिल को बराबरी की भाषा का दर्जा हासिल है।

भारत की संकल्पना भी संघीय गणराज्य के रूप में की गई है, लेकिन इस अवधारणा के पीछे जो बुनियादी सिद्धांत हैं उनका पालन करने में सत्ताधारी वर्ग की रुचि कुछ कम ही दिखाई देती है।

भारत में दर्जनों क्षेत्रीय दलों का उभरना इस केन्द्रीकृत मानसिकता के विरोध का उदाहरण है।'

(देशबन्धु में 03 मई 2018 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/05/blog-post.html


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