Top
Begin typing your search above and press return to search.

पहला सफेद बाल

आज पहला सफ़ेद बाल दिखा। कान के पास काले बालों के बीच से झांकते इस पतले रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दिया

पहला सफेद बाल
X

- हरिशंकर परसाई

आज पहला सफ़ेद बाल दिखा। कान के पास काले बालों के बीच से झांकते इस पतले रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दिया।
ऐसा लगा जैसे बसन्त में वनश्री देखता घूम रहा हूं कि सहसा किसी झाड़ी से शेर निकल पड़े;या पुराने जमाने में किसी मजबूत माने जानेवाले किले की दीवार पर रात को बेफ़िक्र घूमते गरबीले किलेदार को बाहर से चढ़ते हुए शत्रु के सिपाही की कलगी दिख जाय;या किसी पार्क के कुंज में अपनी राधा को ह्रदय से लगाये प्रेमी को एकाएक राधा का बाप आता दिख जाय।

कालीन पर चलते हुए कांटा चुभने का दर्द बड़ा होता है। मैं अभी तक कालीन पर चल रहा था। रोज नरसीसस जैसी आत्म-रति से आईना देखता था, घुंघराले काले केशों को देखकर, सहलाकर, संवारकर, प्रसन्न होता था। उम्र को ठेलता जाता था, वार्द्धक्य को अंगूठा दिखाता था। पर आज कान में यह सफ़ेद बाल फ़ुस-फ़ुसा उठा, 'भाई मेरे, एक बात 'कानफ़िडेन्स' में कहूं- अपनी दूकान समेटना अब शुरू कर दो!'

मरण को त्यौहार माननेवाले ही म्रत्यु से सबसे अधिक भयभीत होते हैं। वे त्योहार का हल्ला करके अपने ह्रदय के सत्य भय को दबाते हैं।तभी से दुखी हूं। ज्ञानी समझायेगें-जो अवश्यम्भावी है, उसके होने का क्या दु: ख? जी हां, मौत भी तो अवश्यम्भावी है। तो क्या जिन्दगी-भर मरघट में अपनी चिता रचते रहें? और ज्ञानी से कहीं हर दुख जीता गया? वे क्या कम ज्ञानी थे, जो मरणासन्न लक्ष्मण का सिर गोद में लेकर विलाप कर रहे थे- 'मेरो सब पुरूषारथ थाको!' स्थितप्रज्ञ दर्शन अर्जुन को समझानेवाले की आंख उद्धव से गोकुल की व्यथा-कथा सुनकर, डबडबा आयी थी। मरण को त्यौहारमाननेवाले ही म्रत्यु से सबसे अधिक भयभीत होते हैं। वे त्योहार का हल्ला करके अपने ह्रदय के सत्य भय को दबाते हैं।

मैं वास्तव में दुखी हूं। सिर पर सफ़ेद कफ़न बुना जा रहा है; आज पहला तार डाला गया है। उम्र बुनती जायगी इसे और यह यौवन की लाश को ढंक लेगा। दु:ख नही होगा मुझे? दु:ख उन्हें नहीं होगा, जो बूढ़े ही जन्मे है।

मुझे गुस्सा है, इस आईने पर। वैसे तो यह बड़ा दयालु है, विक्रति को सुधार-कर चेहरा सुडौल बनाकर बताता रहा है। आज एकाएक यह कैसे क्रूर हो गया! क्या इस एक बाल को छिपा नहीं सकता था? इसे दिखाये बिना क्या उसकी ईमानदारी पर बड़ा कलंक लग जाता? उर्दू-कवियों ने ऐसे संवेदनशील आईनों का जिक्र किया है, जो माशूक के चेहरे में अपनी ही तस्वीर देखने लगते है, जो उस मुख के सामने आते ही गश खाकर गिर पड़ते है; जो उसे पूरी तरह प्रतिबिम्बित न कर सकने के कारण चटक जाते हैं। सौन्दर्य का सामना करना कोई खेल नहीं है। मूसा बेहोश हो गया था। ऐसे भले आईने होते हैं, उर्दू-कवियों के। और यह एक हिन्दी लेखक का आईना है।

मगर आईने का क्या दोष? बाल तो अपना सफ़ेद हुआ है। सिर पर धारण किया, शरीर का रस पिलाकर पाला, हजारों शीशियां तेल की उड़ेल दीं- और ये धोखा दे गये। संन्यासी शायद इसीलिए इनसे छुट्टी पा लेता है कि उस विरागी का साहस भी इनके सामने लड़खड़ा जाता है।

आज आत्मविश्वास उठा जाता है; साहस छूट रहा है। किले में आज पहिली सुरंग लगी है। दुश्मन को आते अब क्या देर लगेगी! क्या करूं? इसे उखाड़ फ़ेंकूं? लेकिन सुना है, यदि एक सफ़ेद बाल को उखाड़ दो, तो वहां एक गुच्छा सफ़ेद हो जाता है। रावण जैसा वरदानी होता, कमबख्त। मेरे चाचा ने एक नौकर सफ़ेद बाल उखाड़ने के लिए ही रखा था। पर थोड़े ही समय में उनके सिर पर कांस फ़ूल उठा था। एक तेल बड़ा 'मनराखन ' हो गया है। कहते हैं उससे बाल काले हो जाते है (नाम नही लिखता, व्यर्थ प्रचार होगा), उस तेल को लगाऊं ? पर उससे भी शत्रु मरेगा नहीं, उसकी वर्दी बदल जायेगी। कुछ लोग खिजाब लगाते है। वे बड़े दयनीय होते हैं। बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढोंग रचते हैं। मेरे एक परिचित खिजाब लगाते थे। शनिवार को वे बूढ़े लगते और सोमवार को जवान- इतवार उनका रंगने का दिन था। न जाने वे ढलती उम्र में काले बाल किसे दिखाते थे! शायद तीसरे विवाह की पत्नी को। पर वह उन्हें बाल रंगते देखती तो होगी ही। और क्या स्त्री को केवल काले बाल दिखाने से यौवन का भ्रम उत्मन्न किया जा सकता है? नहीं, यह सब नहीं होगा। शत्रु को सिर पर बिठाये रखना पड़ेगा। जानता हूं, धीरे-धीरे सब वफ़ादार बालों को अपनी ओर मिला लेगा।

याद आती हैं, मेरे समानधर्मी, कवि केशवदास की, जिसे 'चन्द्रवदन म्रगलोचनी' ने बाबा कह दिया, तो वह बालों पर बरस पड़ा था। हे मेरे पूर्वज, दुखी, रसिक कवि! तेरे मन की ऐंठन मैं अब बखूबी समझ सकता हूं। मैं चला आ रहा हूं, तेरे पीछे। मुझे 'बाबा' तो नहीं, पर 'दादा' कहने लगी है- बस, थोड़ा ही फ़ासला है! मन बहुत विचलित है। आत्म-रति के अतिरेक का फ़ल नरसीसस ने भोगा था, मुझे भी भोगना पड़ेगा। मुझे एक अन्य कारण से डर है। मैने देखा है, सफ़ेद बाल के आते ही आदमी हिसाब लगाने लगता है कि अब तक क्या पाया, आगे क्या करना है और भविष्य के लिए क्या संचय किया। हिसाब लगाना अच्छा नहीं होता। इससे जिन्दगी में वणिक-व्रत्ति आती है और जिस से कुछ मिलता है, और जिस दिशा से कुछ मिलता है, आदमी उसी दिशा में सिजदा करता है। बड़े-बड़े 'हीरो' धराशायी होते है। बड़ी-बड़ी देव-प्रतिमाएं खण्डित होती है। राजनीति, साहित्य, जन-सेवा के क्षेत्र की कितनी महिमा-मण्डित मूर्तियां इन आंखों ने टूटते देखी हैं; कितनी आस्थाएं भंग होते देखी है। बड़ी खतरनाक उम्र है यह; बड़े समझौते होते सफ़ेद बालों के मौसम में। यह सुलह का झण्डा सिर पर लहराने लगा है। यह घोषणा कर रहा है-'अब तक के शत्रुओ! मैने हथियार डाल दिये हैं। आओ, सन्धि कल लें।' तो क्या सन्धि होगी-उनसे, जिनसे संघर्ष होता रहा? समझौता होगा उससे, जिसे गलत मानता रहा?

यौवन सिफ़र् काले बालों का नाम नहीं है। यौवन नवीन भाव, नवीन विचार ग्रहण करने की तात्परता का नाम है; यौवन साहस, उत्साह, निर्भयता और खतरे-भरी जिन्दगी का नाम हैं,; यौवन लीक से बच निकलने की इच्छा का नाम है। और सबसे ऊपर, बेहिचक बेवकूफ़ी करने का नाम यौवन है।पर आज एकदम ये निर्णायक प्रश्न मेरे सामने क्यों खड़े हो गये? बाली की जड़ बहुत गहरी नहीं होती! र्ह्दय से तो उगता नहीं है यह! यह सतही है, बेमानी? यौवन सिफ़र् काले बालों का नाम नहीं है। यौवन नवीन भाव, नवीन विचार ग्रहण करने की तात्परता का नाम है; यौवन साहस, उत्साह, निर्भयता और खतरे-भरी जिन्दगी का नाम हैं,; यौवन लीक से बच निकलने की इच्छा का नाम है। और सबसे ऊपर, बेहिचक बेवकूफ़ी करने का नाम यौवन है। मैं बराबर बेवकूफ़ी करता जाता हूं। यह सफ़ेद झण्डा प्रवचना है। हिसाब करने की कोई जल्दी नहीं है। सफ़ेद बाल से क्या होता है?

यह सब मैं किसी दूसरे से नहीं कह रहा हूं, अपने आपको ही समझा रहा हूं। द्विमुखी संघर्ष है यह- दूसरों को भ्रमित करना और मन को समझाना। दूसरों से भय नही। सफ़ेद बालों से किसी और का क्या बिगड़ेगा? पर मन तो अपना है। इसे तो समझाना ही पड़ेगा कि भाई तू परेशान मत हो। अभी ऐसा क्या हो गया है! यह् तो पहला ही है। और फ़िर अगर तू नही ढीला होता, तो क्या बिगड़नेवाला है!

पहले सफ़ेद बाल का दिखना एक पर्व है। दशरथ को कान के पास सफ़ेद बाल दिखे, तो उन्होने राम को राजगद्दी देने का संकल्प किया। उनके चार पुत्र थे। उन्हें देने का सुभीता था। मैं किसे सौपू? कोई कन्धा मेरे सामने नही हैं, जिस पर यह गौरवमय भार रख दूं। किस पुत्र को सौपूं? मेरे एक मित्र के तीन पुत्र हैं। सबेरे यह मेरा दशरथ अपने कुमारों को चुल्लू-चुल्लू पानी मिला दूध बांटता है। इनके कन्धे ही नही है-भार कहां रखेगें? बड़े आदमियों के दो तरह के पुत्र होते हैं- वे जो वास्तव में हैं, पर कहलाते नहीं है और वे जो कहलाते है, पर हैं नहीं। जो कहलाते हैं, वे धन-सम्पत्ति के मालिक बनते हैं और जो वास्तव में हैं, वे कही पंखा खीचते हैं या बर्तन मांजते हैं। होने से कहलाना ज्यादा लाभदायक है।

अपना कोई पुत्र नही। होता तो मुश्किल में पड़ जाते। क्या देते? राज-पाट के दिन गये, धन-दौलत के दिन है। पर पास ऐसा कुछ नहीं है, जो उठाकर दे दिया जाय। न उत्तराधिकारी है, न उसका प्राप्य। यह पर्व क्या बिना दिये चला जायेगा।

पुत्र तो पीढ़ियों के होते हैं। केवल जन्मदाता किसी का पिता नहीं होता। विराट भविष्य को एक पुत्र ले भी कैसे सकता हैं? इससे क्या कि कौन किसका पुत्र होगा, कौन किसका पिता कहलायेगा! मेरी पीढ़ी के समस्त पुत्रों! मैं तुम्हें वह भविष्य ही देता हूं।पर हम क्या दें? महायुद्ध की छाया में बढ़े हम लोग; हम गरीबी और अभाव में पले लोग; केवल जिजीविषा खाकर जिये हम लोग। हमारी पीढ़ी के बाल तो जन्म से ही सफ़ेद हैं। हमारे पास क्या हैं? हां, भविष्य है, लेकिन वह भी हमारा नहीं, आनेवालों का है। तो इतना रंक नही हूं-विराट भविष्य तो है। और अब उत्तराधिकारी की समस्या भी हल हो गयी। पुत्र तो पीढ़ियों के होते हैं। केवल जन्मदाता किसी का पिता नहीं होता। विराट भविष्य को एक पुत्र ले भी कैसे सकता हैं? इससे क्या कि कौन किसका पुत्र होगा, कौन किसका पिता कहलायेगा! मेरी पीढ़ी के समस्त पुत्रों! मैं तुम्हें वह भविष्य ही देता हूं। यद्यपि वह अभी मूर्त्त नहीं हुआ है, पर हम जुटे हैं, उसे मूर्त्त करने। हम नीव मे धंस रहे है कि तुम्हारे लिए एक भव्य भविष्य रचा जा सके। वह एक वर्तमान बनकर ही आयेगा- हमारा तो कोई वर्तमान भी नही था। मैं तुम्हें भविष्य देता हूं और इसे देने का अर्थ यह है कि हम अपने-आपको दे रहे हैं, क्योकि उसके निर्माण में अपने-आपको मिटा रहे हैं।

लो सफ़ेद बाल दिखने के इस पर्व पर यह तुम्हारा प्राप्य संभालो। होने दो हमारे बाल सफ़ेद। हम काम में तो लगे है-जानते है कि काम बन्द करने और मरने का क्षण एक ही होता है। हमें तुमसे कुछ नही चाहिए। ययाति-जैसे स्वार्थी हम नही है जो पुत्र की जवानी लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ, उसने मुंह भी काला कर लिया।
हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिए। हम नीव में धंस रहे है; लो हम तुम्हें कलश देते है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it