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किसानों की मांगें अविलम्ब पूरी हों

दिल्ली की ओर बड़ी संख्या में बढ़ते किसानों की मांगों को लेकर भारत सरकार को तुरन्त बातचीत शुरू करनी चाहिये वरना दिल्ली ही नहीं वरन सम्पूर्ण एनसीआर में अगले एक-दो दिनों में स्थिति बहुत बिगड़ सकती है

किसानों की मांगें अविलम्ब पूरी हों
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दिल्ली की ओर बड़ी संख्या में बढ़ते किसानों की मांगों को लेकर भारत सरकार को तुरन्त बातचीत शुरू करनी चाहिये वरना दिल्ली ही नहीं वरन सम्पूर्ण एनसीआर में अगले एक-दो दिनों में स्थिति बहुत बिगड़ सकती है। किसानों की लगभग वे ही मांगें हैं जिन्हें लेकर किसानों ने 5 नवम्बर, 2020 से 11 दिसम्बर, 2021 तक 378 दिनों का ऐतिहासिक आंदोलन किया था। इसमें 700 से अधिक किसानों की जान गयी थी। केन्द्र सरकार द्वारा चुपचाप लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने लम्बा आंदोलन कर सरकार को उन्हें वापस लेने के लिये मजबूर किया था जिनका सीधा मकसद कारोबर जगत को लाभ पहुंचाना तथा देश की दशकों पुरानी व मजबूत मंडी प्रणाली को चौपट कर किसानों की उपजों को कौड़ी के भाव उद्योगपतियों व बड़े व्यवसायियों द्वारा खरीदने का रास्ता खोलना था।

'शायद मेरी तपस्या में कोई कमी रह गई' और 'हम इन कानूनों के लाभ किसानों को समझा नहीं पाये' जैसे भावपूर्ण शब्दों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन कानूनों को वापस तो लिया था, साथ ही किसानों की समस्याओं को दूर करने का आश्वासन भी दिया था। इनमें प्रमुख मांग थी एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों के उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना। आज के हालात ऐसे हैं कि उसके बाद इस दिशा में आगे कु छ भी नहीं हो पाया। यहां तक कि मोदी द्वारा साल 2022 तक देश के किसानों की आय को दोगुनी करने का जो वादा किया गया था, वह कहीं से भी पूरा नहीं हुआ। और तो और, काले कानूनों की अब भी तलवार अटकी हुई है। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कुछ नेता संकेत दे चुके हैं कि दो-तीन माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में अगर पार्टी बहुमत पाकर तीसरी बार सरकार बनाती है तो ये कानून लागू हो जायेंगे। किसानों की भी यही आशंका है।

इन हालात में मोदी आबू धाबी की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। देश गृह मंत्री अमित शाह व उनकी पुलिस के हवाले हैं जो बड़ी संख्या में हरियाणा-पंजाब से लगी सीमाओं पर किसानों पर यूं आंसू गैस के गोले बरसा रही है और छर्रे मार रही है जैसे कि किसान दुश्मन हों। दिल्ली की सीमाओं पर अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की तरह कंटीले तार व कीलें लगाई गई हैं। मंगलवार की रात से ही इन सीमाओं, खासकर शम्भू बॉर्डर पर पुलिस व हजारों की संख्या में ट्रैक्टर लेकर पहुंचे आंदोलनकारी किसानों के बीच झड़पें चल रही हैं।

ड्रोन से आंसू गैस के गोले गिराने के साथ पुलिस किसानों के शरीरों के ऊपरी हिस्सों पर छर्रे मार रही है। भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने घायल हुए एक किसान गुरमीत सिंह से फोन पर बातचीत कर उनका हालचाल जाना, जिनकी आंख के बिलकुल नज़दीक तथा दोनों हाथों पर छर्रे लगे हैं। उनकी आंख तो बच गई पर सरकार से पूछा जाना चाहिये कि वह इनके साथ निर्ममतापूर्ण बर्ताव क्यों कर रही है।

लोकतंत्र में रत्ती भर भरोसा न रखने वाली केन्द्र सरकार से यही उम्मीद की जा सकती है परन्तु उसे समझना होगा कि वार्ता के जरिये ही बातचीत का हल निकलेगा। मोदी सरकार का झुकाव हमेशा से ही कारोबारी व उद्योग जगत की ओर रहा है। उस पर दबाव है कि वह किसानों के आगे न झुके। मोदी को इस पद तक पहुंचाने वाली कार्पोरेट लॉबी ऐसा होने नहीं देगी। फिर, आने वाले समय में मोदी को व्यवसायियों व उद्योगपतियों का समर्थन तभी मिलेगा जब वह इन मांगों के आगे न झुके।

देखना होगा कि सरकार व किसानों का टकराव क्या रूप लेता है। किसान मजदूर मोर्चा एवं संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) की ओर से छेड़े गये इस आंदोलन में फिलहाल किसानों का सबसे बड़ा संगठन भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) शामिल नहीं हैं परन्तु उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता व प्रमुख नेता राकेश टिकैत ने चेतावनी दी है कि अगर आंदोलनकारियों के साथ ज्यादतियां हुईं तो बीकेयू के सदस्यों से ये आंदोलनकारी किसान एवं दिल्ली दूर नहीं है। केन्द्र सरकार को चाहिये कि किसानों पर होने वाली ज्यादतियों को रोके तथा उन्हें अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने दें। यदि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड आदि के किसान भी इस लड़ाई में कूद पड़े तो स्थिति बेकाबू हो जायेगी। आंदोलन का दूसरा दिन हो चुका है और बातचीत की पहल करने की बजाय केन्द्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा एक तरफ़ तो वार्ता की तैयारी बतला रहे हैं, तो दूसरी ओर वे दिल्ली में लोगों को होने वाली कठिनाइयों के मद्देनज़र पहले स्थिति को सामान्य करने में अधिक दिलचस्पी दिखला रहे हैं।

इसके साथ ही किसानों के पक्ष व विपक्ष में तो बयान आ रहे हैं, कुछ महत्वपूर्ण लोगों की चुप्पी भी सामने आ गई है जिनसे इस मौके पर कुछ कहे जाने की अपेक्षा थी। जिन एमएस स्वामीनाथन को हफ्ते भर पहले ही भारत रत्न दिया गया है, उनकी बेटी मधुरा ने बुधवार को एक कार्यक्रम में कहा कि 'किसान हमारे अन्नदाता हैं। उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार न किया जाये।' उन्हीं के साथ जिन किसान नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भी यही अलंकरण दिया गया, उनके पोते व राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी मौन हैं जो पुरस्कार दिये जाने से प्रभावित होकर संयुक्त विपक्षी गठबन्धन इंडिया का साथ छोड़कर भाजपा प्रणीत एनडीए में शामिल हो गये हैं। उन्होंने अपने वे ट्वीट भी हटा दिये जो पिछले आंदोलन के दौरान किसानों के पक्ष में किये गये थे। जो भी हो, सरकार को चाहिये कि वह अविलम्ब किसानों से बातचीत कर उनकी मांगों को पूरा करे।


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