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युद्ध जैसे हालात में सरकार से अपेक्षा

मंगलवार की आधी रात को पाकिस्तान पर किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद सीमा पर स्थित जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तान की तरफ से भयंकर गोली बारी शुरु की गई

युद्ध जैसे हालात में सरकार से अपेक्षा
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मंगलवार की आधी रात को पाकिस्तान पर किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद सीमा पर स्थित जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तान की तरफ से भयंकर गोली बारी शुरु की गई, जिसमें कम से कम 16 लोगों के मारे जाने की खबर है, साथ ही लांस नायक दिनेश कुमार शहीद भी हुए हैं। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक पाकिस्तान ने इसके अलावा भारत के अवंतीपुरा, श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, कपूरथला, जालंधर, लुधियाना, आदमपुर, बठिंडा, चंडीगढ़, नल, फलौदी, उत्तरलाई और भुज सहित उत्तरी और पश्चिमी भारत में कई सैन्य ठिकानों पर हमला करने की कोशिश की। हालांकि पाकिस्तान के इन हमलों को एकीकृत काउंटर यूएएस ग्रिड और एयर डिफेंस सिस्टम ने बेअसर कर दिया। भारत के रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया कि पाकिस्तानी ड्रोनों के मलबे अब कई स्थानों से बरामद किए जा रहे हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि पाकिस्तान ने हमला किया था।

जाहिर है हमारी सेना और मजबूत रक्षा तंत्र ने इस तरह देश की रखवाली की कि व्यापक तौर पर नागरिकों को पाकिस्तान की तरफ से हुए हमलों का पता ही नहीं चला। इस साहसिक कृत्य के लिए सेना की जितनी सराहना की जाए, कम है। इस समय सारा देश यही कर भी रहा है। गुरुवार को जब सरकार ने सभी दलों की बैठक फिर से बुलाई, तब भी तमाम दलों ने एकजुटता का भरोसा सरकार को दिलाया।

युद्ध के मुहाने पर खड़े इस कठिन दौर से गुजरते हुए भारत का हर विपक्षी दल और नागरिक अपने परस्पर विरोधों को भुलाकर सरकार और सेना के साथ खड़ा है लेकिन यह बेहद दुखद और आश्चर्यजनक बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो देश का नेतृत्व करते हैं, इस विषय पर गुरुवार को दिल्ली में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पुन: अनुपस्थित रहे। 'पुन:' शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया जा रहा है क्योंकि पहलगाम हमले के बाद 24 अप्रैल को बुलाई गई ऐसी ही बैठक में मोदी नहीं आये थे। हालांकि उन्होंने आतंकवादियों को धरती के आखिरी छोर से भी पकड़ लाने का वादा देश से किया था। सेना ने संयुक्त ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देकर पाकिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में दहशतगर्दों द्वारा चलाये जा रहे आतंकी कैंपों को उड़ा दिया। लेकिन इस दौरान सरकार को कम से कम सीमावर्ती इलाकों से नागरिकों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने का इंतजाम कर लेना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो शायद पुंछ में जो नुकसान हुआ, वह न होता। पुंछ इलाके में मारे गये नागरिक ज्यादातर किसान हैं। एक तरह से देखें तो ये सर्जिकल स्ट्राइक हो या सीमा के आर-पार की बम वर्षा के कारण लगभग युद्ध की स्थिति है।

ऐसे में सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री का न आना यह बतलाता है कि वे लोगों से मिल रहे जनसमर्थन के कारण विपक्ष ही नहीं, नागरिकों व यहां तक कि संसद को भी काफी हल्के में ले रहे हैं। याद हो कि 22 अप्रैल को हुए बैसरन कांड के वक्त मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे जिसे छोड़कर वे भारत लौटे थे। इससे यह महसूस किया गया था कि वे स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए लौटे हैं। इसके विपरीत उन्होंने न तो राष्ट्र के नाम संदेश दिया और न ही कोई ऐसा बड़ा कदम उठाया जिससे महसूस हो कि वे किसी बड़े फैसले को लेने या उसे क्रियान्वित करने के लिये उद्धत हैं। वे बिहार चले गये जहां उन्होंने वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एक रैली की। यहां इस साल के अंत तक विधानसभा के चुनाव होने हैं। मंच पर उनकी और नीतीश बाबू के बीच होती हंसी-ठिठौली की तस्वीरें व वीडियो लोगों को चकित करते रहे। उन्होंने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा नहीं लिया और न ही सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया जिसकी सम्पूर्ण विपक्ष मांग कर रहा था। जनता को भी इसकी अपेक्षा थी।

मोदी वही कहानी दोहराते नज़र आ रहे हैं- न तो सर्वदलीय बैठक में जाना, न राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करना और न ही संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की पेशकश को सुनना। गुरुवार की बैठक में शामिल लगभग सभी दलों ने एक बार फिर से इस बात की घोषणा की कि वे पूरी तरह से सरकार के साथ हैं और वह जो भी कदम उठाये, वे उसका समर्थन करते हैं। सेना से जुड़ी गोपनीय बातों का जिक्र नहीं करना है, इसलिए बैठक से बाहर आकर किसी नेता ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया, जिससे असुविधा हो। अलबत्ता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री नहीं आए, हालांकि हम अभी इस बात के लिए उनकी आलोचना नहीं करेंगे, क्योंकि यह वक्त आलोचना का नहीं है। वहीं राहुल गांधी ने जरूर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग उठाई, ताकि दुनिया के सामने अच्छा संदेश जाए। पहले भी विपक्ष इस आशय की मांग कर चुका है।

बैसरन घाटी की घटना के बाद जब राहुल पहलगाम गये थे, उन्होंने साफ किया था कि वे किसी तरह की खामी या चूक की बात इस समय नहीं करेंगे। वे बाद में कई प्रभावित परिवारों से भी मिले थे, तब भी उन्होंने किसी भी प्रकार से सरकार की आलोचना नहीं की थी। ऐसे में जब विपक्ष बेहद जिम्मेदारी व संजीदगी के साथ सरकार को साथ दे रहा है, तब मोदी द्वारा सर्वदलीय बैठक में, वह भी दूसरी बार न आना दुखद ही कहा जायेगा। बेशक, बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्थिति की जानकारी दी। गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू भी इसमें मौजूद थे।

अलबत्ता महाराष्ट्र में कुछ भारतीय जनता पार्टी नेता के 'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता के पोस्टर भी लगने शुरू हो गये हैं जो बतलाता है कि किस प्रकार से भाजपा इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने के लिए आमादा है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चाहिये कि वे अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को इससे बाज आने के लिये कहे वरना माना जायेगा कि सरकार इस सारी कवायद का सियासी फायदा लेने की फिराक में है। यह शर्मनाक भी है कि सेना की सफलता का श्रेय पार्टी ले- चाहे वह सत्तारुढ़ ही क्यों न हो। ऐसे में जब समझिये कि लड़ाई लगभग छिड़ ही गयी है, सभी को अपने तमाम मतभेद व क्षुद्र हितों को छोड़कर एक-दूसरे के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ा होना होगा।


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