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चुनावी महायुद्ध :भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ अमेठी पर गड़ाईं आंखें

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली तक समेटने के बाद भी भाजपा का मिशन जारी

चुनावी महायुद्ध :भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ अमेठी पर गड़ाईं आंखें
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लखनऊ । उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली तक समेटने के बाद भी भाजपा का मिशन जारी है। कांग्रेस के गढ़ और राहुल गांधी की संसदीय सीट अमेठी में भी भाजपा ने अपनी नजर गड़ा रखी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' के बावजूद राहुल जीते थे। जीत का अंतर हालांकि एक लाख के आसपास पहुंच गया था और 2009 की तुलना में उनके वोट 25.14 फीसद कम हो गए थे। ऐसे में 2019 का चुनाव कांटे के रहने के आसार हैं।

अमेठी के राजनीतिक विश्लेषक तारकेश्वर की मानें तो राहुल से जनता नाराज है। इसकी बड़ी वजह राहुल की अमेठी में कम सक्रियता है और स्मृति ईरानी किसी न किसी बहाने लगातार सक्रिय हैं। राहुल का गांधी परिवार से होना हालांकि उनके लिए मुफीद है। ऐसे में इन वोटों को जोड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।

पांच साल में राहुल 29 बार और स्मृति ईरानी 30 बार अमेठी पहुंचे हैं। राहुल गांधी के कराए विकास कार्यों में उनकी निधि से कुछ सड़कें और हैंडपंप संबंधी कार्य शामिल हैं। इधर, स्मृति ईरानी व भाजपा ने पांच साल में जमीनी काम से लेकर बड़ी योजनाओं तक के अमल के दावे किए हैं। खाद का रैक सेंटर की स्थापना, कृषि विज्ञान केंद्र, टीकरमाफी में 88.5 करोड़ से अमेठी बाईपास का निर्माण, 6 पावर हाउस की स्थापना, 400 इंडिया मार्का हैंडपंप, अमेठी नगर के विकास के लिए 29 करोड़ का केंद्रीय बजट का प्रावधान जैसे कार्यो को गति देने की कोशिश या सीधी भागीदारी की।

प्रधानमंत्री मोदी ने 538 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया। क्षेत्र में साड़ी और कंबल वितरण भी करवाया गया है। विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था।

ग्राम प्रधान देव प्रकाश कहते हैं कि राहुल आम जनता से उस तरह नहीं घुले-मिले हैं, जिस तरह राजीव गांधी घुले-मिले थे। समाजसेवी संगठन के लिए काम करने वाले दिनेश प्रताप सिंह की अलग राय है। इनका कहना है कि किसान परेशान हैं। फसल आवारा पशु खा रहे हैं। खाद-बीज महंगे हैं। बिजली आती नहीं। ये सब मुद्दे चुनाव में उठेंगे।

राजनीतिक विश्लेषक बिंदेश्वरी दूबे की राय में "अमेठी बदलाव के मूड में है। लोगों की उपेक्षा, अमेठी की उपेक्षा माना जा रहा है। राहुल के लिए दिल्ली का रास्ता आसान नहीं होगा। 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से अमेठी के लोगों के इस संदेश को समझना चाहिए।"

दूबे की मानें तो अमेठी में दलित-मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। 16 प्रतिशत (करीब 3 लाख) वोटर मुस्लिम हैं। इतने ही वोटर दलित भी हैं। यादव, राजपूत और ब्राम्हण वोटरों की तादाद ठीक-ठाक है। यह बात अलग है कि दलित-पिछड़ा वर्ग के मतदाता बंटे हुए हैं। पिछली बार लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र से लगभग 60 हजार वोट भाजपा के खाते में आए थे। उसे बरकार रखना भाजपा के लिए चुनौती है। अमेठी विधानसभा सीट पर भाजपा काफी मेहनत कर रही है तो गौरीगंज और जगदीशपुर में कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद है। तिलोई व सलोन में कांग्रेस की पैठ है।

अमेठी संसदीय सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है। वर्ष 1977 में जनसंघ के टिकट पर रवींद्र प्रताप सिंह और 1998 में भाजपा के टिकट पर डॉ. संजय सिंह को जीत मिली थी।


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