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दक्षिणपंथी वैचारिकी के दो रूप

ये हैं तो दो अलग-अलग परिघटनाएं जिनका एक-दूसरे से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं दिखता, परन्तु दोनों से ही दक्षिणपंथियों की विचारधारा और सरकार की कार्यपद्धति का पता चलता है

दक्षिणपंथी वैचारिकी के दो रूप
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ये हैं तो दो अलग-अलग परिघटनाएं जिनका एक-दूसरे से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं दिखता, परन्तु दोनों से ही दक्षिणपंथियों की विचारधारा और सरकार की कार्यपद्धति का पता चलता है। एक का सम्बन्ध विनायक दामोदर सावरकर के वंशजों से है तो दूसरा एक ऐसे डीन की नियुक्ति के बाबत है जो महात्मा गांधी के हत्यारे पर गर्व करती है तथा उसे देश को बचाने वाला मानती है। दोनों घटनाएं यह भी बतलाती हैं कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के निजी प्रयासों तथा राज्य-समर्थित सांस्थानिक कृत्यों द्वारा भारत को किस दिशा में ले जाया जा रहा है।

पहले बात करें अंग्रेजों की जेल से माफी मांगकर छूटने वाले सावरकर की! कांग्रेस राहुल गांधी ने मार्च, 2023 में लंदन में एक भाषण के दौरान बतलाया था कि सावरकर ने एक मुस्लिम व्यक्ति पर कथित तौर पर 'हमले को आनंददायक' कहा था। इसे लेकर उनके वंशजों में से एक सात्यकि अशोक सावरकर ने पुणे की विशेष सांसद-विधायक कोर्ट में राहुल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था। 19 फरवरी को इसकी पेशी थी लेकिन राहुल को अदालत ने उपस्थिति की छूट दी थी; परन्तु अब उन्होंने मामले की सुनवाई 'समरी ट्रायल' की बजाये 'समन ट्रायल' के रूप में करने की मांग की है ताकि वे सावरकर से सम्बन्धित ऐतिहासिक सबूत एवं दस्तावेज रिकॉर्ड के लिये पेश कर सकें। लोकसभा में विपक्ष के नेता के खिलाफ मामला दायर करने वाले सात्यकि ही नहीं बल्कि सावरकर के परिवार एवं उनकी विचारधारा को मानने वाले सभी व्यक्तियों-संगठनों के लिये यह परेशान होने का पर्याप्त कारण है क्योंकि इस सच्चाई से वे स्वयं भी अवगत हैं कि सावरकर को जब अंग्रेजों ने पोर्ट ब्लेयर (अंडमान-निकोबार) की सेलुलर जेल में कालेपानी की सज़ा देकर रखा था तब उन्होंने छूटने के लिये लगभग एक दर्जन माफीनामे लिखे थे। इतना ही नहीं, रिहा होने के बाद उन्हें अंग्रेजों द्वारा हर माह 60 रुपये की पेंशन भी दी जाती थी। इसे भी बढ़ाने की वे दरख्वास्त करते रहे। इसके बाद वे जब तक जीवित रहे, उन्होंने कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मुंह नहीं खोला था।

सावरकर को लेकर तभी से विवाद जारी हैं जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनी है। पूरी भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं अन्य सहयोगी संगठन सावरकर का महिमा मंडन करते नहीं अघाते, बावजूद इसके कि कई मुद्दों पर उनके विचार अलग थे। मसलन, सावरकर गाय को अन्य पशुओं की ही तरह मानते थे। आजादी के बाद निष्क्रिय जीवन बिताने वाले सावरकर को लोगों ने एक तरह से भुला दिया था। थोड़े से लोग हैं जो उन्हें 'वीर' या 'क्रांतिकारी' जैसे शब्दों से नवाज़ा करते हैं। जब उनके चरित्र को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना शुरू किया गया तो दूसरी ओर उनकी असलियत भी सामने आने लगी। अधिकतर लोगों को उनके माफीनामे तथा पेंशन के बाबत भी इसी दौरान ज्ञात हुआ। उनका कृत्रिम आभामंडल अज्ञात, अल्पज्ञात या छिपाये गये तथ्यों के सामने आने से ध्वस्त हो गया। इसलिये सावरकर परिवार नहीं चाहता कि राहुल गांधी अपने बचाव में वे सारे ऐतिहासिक तथ्य कोर्ट के सामने रख दें जो संग्रहालयों, लाइब्रेरियों, शोध ग्रंथों, लेखों, इतिहास की किताबों आदि में दज़र् हैं। सावरकर परिवार के लिये उन्हें नकारना मुश्किल होगा क्योंकि जवाब में उन्हें वे तथ्य झूठे साबित करने होंगे जो कि सम्भव नहीं है। खतरा यह है कि थोड़े-बहुत लोग जो वस्तुस्थिति से नावाकिफ़ हैं, वे भी अवगत हो जायेंगे।

इसलिये 'समन ट्रायल' का विरोध जायज है। उनके वकील एसए कोल्हटकर ने कहा कि 'राहुल मुद्दे से ध्यान भटका रहे हैं ताकि मामला खींचा जा सके।' उन्होंने ध्यान दिलाया कि कांग्रेस नेता के खिलाफ़ मानहानि के कई मामले चल रहे हैं। दरअसल वे बतलाना चाहते हैं कि लोगों का अपमान करने के राहुल आदी हैं। वैसे तो इन दोनों ही तर्कों में कोई दम नहीं है क्योंकि भारतीय न्यायालयों की धीमी प्रक्रिया सर्वविदित है। जिन मामलों का उल्लेख एड. कोल्हटकर कर रहे हैं, वे लगभग सारे लम्बित हैं। सिर्फ गुजरात की एक कोर्ट में मोदी समुदाय के कथित मानहानि वाले मामले में निचली अदालत में आनन-फानन में फैसला सुनाया था जिससे राहुल की लोकसभा (पिछली) की सदस्यता छीनी गयी थी (जो सुप्रीम कोर्ट से बहाल हुई थी)। वह कार्रवाई राजनीतिक कारणों से हुई थी क्योंकि राहुल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारोबारी मित्र गौतम अदानी के खिलाफ हमलावर थे। राहुल-सावरकर मामले की अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।

सावरकर का विरोध राहुल की वैचारिक लड़ाई का हिस्सा है। जिस महाराष्ट्र में सावरकर के सबसे ज्यादा समर्थक हैं और शिवसेना का उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला धड़ा उनका सहयोगी है, उसी जमीन पर चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने कहा था कि 'मानहानि के मामले में वे माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि वे सावरकर नहीं हैं।' वैसे तो भाजपा तथा संघ ने सावरकर को वैसी तवज्जो कभी नहीं दी थी जो अब दी जा रही है। इसका कारण गांधी-विरोध ही है। सावरकर भी गांधी हत्या कांड में संदिग्ध आरोपी थे।

हालांकि वे सबूतों के अभाव में छूट गये थे। तो भी गांधी-नेहरू से भाजपा-संघ की घृणा का आयाम विस्तृत है। इसी की श्रृंखला में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), कालीकट के योजना व विकास विभाग की नयी डीन के रूप में उन डॉ. शैजा अंदावन को नियुक्त किया गया है जिन्होंने गांधी पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली थी कि 'उन्हें गोडसे पर गर्व है जिन्होंने भारत को बचा लिया।' हालांकि लोगों के विरोध के बाद उन्होंने उस पोस्ट को डिलीट तो कर दिया था पर उनकी गिरफ्तारी हुई थी और वे अभी जमानत पर हैं। अब उनकी नियुक्ति पर मुहर लगाकर केन्द्र सरकार ने साबित कर दिया है कि उसकी सोच गांधी को लेकर क्या है।


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