संसद में मोदी राहुल के सवालों से बच नहीं सकेंगे!
विपक्ष जो इन्डिया गठबंधन के रूप में फिर एकजुट दिख रहा है साफ कह रहा है कि वह संसद को शांतिपूर्वक चलाने का इच्छुक है।

- शकील अख्तर
विपक्ष जो इन्डिया गठबंधन के रूप में फिर एकजुट दिख रहा है साफ कह रहा है कि वह संसद को शांतिपूर्वक चलाने का इच्छुक है। मगर सवाल यह है कि क्या सत्ता पक्ष इसे शांतिपूर्ण तरीके से चलने देगा? विपक्ष को परेशान करने के उसने नए-नए तरीके खोज लिए हैं। 2023 के शीतकालीन अधिवेशन में तो विपक्ष के लगभग सारे सदस्य सदन से निष्कासित ही कर दिए गए थे। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से।
पहलगाम के आतंकवादी हमले और सीजफायर पर सवाल न हों यह सोचकर मोदी सरकार ने संसद का विशेष अधिवेशन नहीं बुलाया। मगर रेत में सिर घुसाने से समस्या दूर नहीं हो जाती है बल्कि और बढ़ जाती है। यही मोदी सरकार के साथ हुआ।
अब सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में वही सवाल और ज्यादा तथ्यों के साथ मोदी सरकार के सामने होंगे और उसके सामने इनसे बचने का एक ही तरीका होगा कि वे संसद नहीं चलने दें!
विपक्ष जो इन्डिया गठबंधन के रूप में फिर एकजुट दिख रहा है साफ कह रहा है कि वह संसद को शांतिपूर्वक चलाने का इच्छुक है। मगर सवाल यह है कि क्या सत्ता पक्ष इसे शांतिपूर्ण तरीके से चलने देगा? विपक्ष को परेशान करने के उसने नए-नए तरीके खोज लिए हैं। 2023 के शीतकालीन अधिवेशन में तो विपक्ष के लगभग सारे सदस्य सदन से निष्कासित ही कर दिए गए थे। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से।
अब सोमवार से शुरू हो रहे मानसून सत्र में सरकार क्या करेगी सबकी निगाहें इस पर हैं। विपक्ष का तो स्पष्ट है कि वह पहलगाम, सीजफायर, ट्रंप का दावा कि पांच जेट गिरे, बिहार में चुनाव आयोग द्वारा लगभग 15 प्रतिशत वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से उड़ाना, जिनकी संख्या डेढ़ करोड़ बनती है, के अलावा और भी बहुत सारे सवाल उठाने की तैयारी कर चुका है। इनमें चीन और पाकिस्तान का गठजोड़, जिन्हें राहुल गांधी संसद में ही मोदी सरकार की सबसे बड़ी विदेश नीति की असफलता बता चुके हैं। इसके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप भी पाकिस्तान के नेतृत्व की प्रशंसा कर चुके हैं, यह भी विपक्ष मोदी सरकार की विदेश नीति की बड़ी नाकामयाबी के तौर पर संसद में उठाने की तैयारी में है। अहमदाबाद का विमान हादसा और उसके बाद सारा दोष पायलटों पर मढ़ने की कोशिश, डिलिमिटेशन जो दक्षिण के राज्यों को खासतौर पर चिंतित किए हैं, सरकारी एजेन्सियों का दुरुपयोग जिसके तहत अभी छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया और राबर्ट वाड्रा के खिलाफ ईडी की चार्जशीट, उनकी संपत्तियां जप्त करना और दलित पिछड़ों पर बढ़ते अत्याचार जैसे मामले भी विपक्ष संसद में उठाएगी।
सारे मामले बहुत गंभीर हैं। मगर सवाल यह है कि क्या सत्ता पक्ष इन्हें उठाने देगा? संसद चलने देगा? बहुत मुश्किल है। सरकार अपने ऊपर उठने वाले हर सवाल से बचने की कोशिश करेगी। मगर विपक्ष खासतौर से कांग्रेस की तैयारियां भी कम नहीं हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पहलगाम के आतंकवादी हमले और ट्रंप के दो दर्जन बार किए सीजफायर मैंने करवाया के दावों और 5 जेट गिरने जैसे अतिगंभीर विषय पर बोलने की तैयारी कर चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष को बोलने से रोकना सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगा।
ट्रंप के बार-बार बोलने से सारा मामला अंतरराष्ट्रीय हो गया है। अब अगर संसद में नेता प्रतिपक्ष को बोलने नहीं दिया जाएगा तो यह मामला भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जाएगा। यह देश की लोकतांत्रिक आजादी से जुड़ा बड़ा सवाल बन सकता है। मोदी सरकार के लिए यह बहुत मुश्किल समय है। अगर नेता प्रतिपक्ष को बोलने देंगे तो राहुल आजकल जिस तरह फार्म में हैं वह सरकार की धज्जियां उड़ा देंगे। प्रधानमंत्री मोदी को जवाब देना पड़ेगा। और इसी से वे पहलगाम हमले के बाद से बच रहे हैं। गलती हुई यह माना जा चुका है। हालांकि छोटे स्तर पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के स्तर पर इसकी जिम्मेदारी ली गई है। मगर सुरक्षा में चूक हुई स्वीकार करते ही यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की जिम्मेदारी किस की है? सबको पता है कि यह जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है। और केन्द्र तक बात आते ही सीधे प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर सवाल खड़े होते हैं। मोदी और शाह इसीसे बचना चाहते हैं। और इसलिए उप राज्यपाल मनोज सिन्हा जिम्मेदारी ले रहे हैं।
पहलगाम हमले के बाद से जनता में सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमला करने वाले आतंकवादी कहां हैं? सरकार ने उन्हें पकड़ना तो दूर उनके नाम पते के बारे में भी आज तक कुछ नहीं बताया है। सूरक्षा चूक बहुत देर से स्वीकार की। लेकिन अगर की है तो उच्च स्तर पर इसकी जवाबदेही होना चाहिए। मगर प्रधानमंत्री मोदी तो इस विषय में पूरी तरह मौन हैं। वे गोली का जवाब गोले से और मोदी की गोली, रगों में सिंदूर और इसी तरह की बातें कर रहे हैं। मगर पहलगाम के आतंकवादी क्यों नहीं पकड़े गए और सीजफायर किसने करवाया और किन शर्तों पर इस पर एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं।
और अब तो ट्रंप ने 5 जेट गिरे कहकर मामले को बहुत गंभीर बना दिया है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सही कहा है कि प्रधानमंत्री को देश को इस बारे में बताना चाहिए ताकि अनुमानों आशंकाओं पर विराम लग सके। राहुल प्रधानमंत्री से ही पूछे सकते हैं। ट्रंप से तो मोदी सरकार पूछ सकती है, राहुल नहीं।
मगर प्रधानमंत्री मोदी चुप हैं। सेना कह चुकी है हमें नुकसान हुआ। और आश्चर्यजनक बात है कि सेना के उच्चाधिकारी तीन-चार बार सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं। सेना कभी नहीं बोलती थी। लेकिन इस बार तो उसने साफ कहा कि नुकसान राजनीतिक कारणों से हुआ। और यह बात विदेश मंत्री एस. जयशंकर खुद कबूल कर चुके थे कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला करने से पहले उन्हें सूचित कर दिया था। यह भूल भारतीय सेना को भारी पड़ी। राहुल गांधी यह सवाल भी उठा चुके हैं कि हमला करने से पहले उन्हें सूचित करने का क्या तुक था?
संसद के इस सत्र में राहुल इन सारे सवालों पर बोलेंगे। अगर उन्हें लोकसभा में नहीं बोलने दिया तो वे सदन के बाहर बोलेंगे। जो सरकार के लिए ज्यादा मुश्किलें खड़ी करेगा। क्योंकि फिर यह सवाल विदेशी मीडिया के लिए भी बन जाएगा कि भारत के नेता प्रतिपक्ष को सदन के अंदर नहीं बोलने दिया तो वे सदन के बाहर बोले।
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि इन दिनों कमजोर हुई है। कभी भारत निर्गुट देशों का नेतृत्व करता था। जिसमें 120 से ज्यादा देश थे। आज पाकिस्तान के साथ संघर्ष में भारत अकेला पड़ गया था। मोदी सरकार की विदेश नीति पूरी तरह असफल साबित हो गई थी। और यह ऐसा नहीं है कि अचानक हो गई। इसके बारे में विदेशी मामलों के जानकारों ने बहुत पहले से चेतावनी दे रखी थी कि भारत की विदेश नीति राष्ट्र केन्द्रित न होकर व्यक्ति केन्द्रित की जा रही है। भारत भारत के बदले मोदी मोदी कहा जा रहा है। यहां तक कि मोदी के दौरे पर विदेश में एक भारतीय महिला ने कहा कि भारत का बताने पर हमारा अपमान होता था अब मोदी के देश का कहने पर सम्मान मिलता है। यह देश से बड़ा मोदी को बनाने का ही दुष्परिणाम था कि संघर्ष के समय एक भी देश हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ। सेना को कहना पड़ा कि सामने हमसे पाकिस्तान लड़ रहा था मगर पीछे से दो देश चीन और तुर्किए और लड़ रहे थे। मोदी इन सारे सवालों से बचते रहे। मगर अब संसद में इनके लिए इनसे बचना मुश्किल होगा।
जैसे 2024 लोकसभा के समय विपक्ष एकजुट था वैसे ही अब है। जबकि सत्ता पक्ष में अंदर ही अंदर कई हलचलें हैं। पहलगाम सीजफायर और ट्रंप के दावे मोदी के लिए बहुत बड़ी मुश्किल बन गए हैं। 11 साल में पहली बार मोदी इतनी कमजोर स्थिति में हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


