Top
Begin typing your search above and press return to search.

सुलगता मणिपुर, बेपरवाह सरकार

पिछले तकरीबन दो वर्षों से जातीय संघर्षो एवं उसके कारण उपजी हिंसा से मणिपुर धधक रहा है

सुलगता मणिपुर, बेपरवाह सरकार
X

पिछले तकरीबन दो वर्षों से जातीय संघर्षो एवं उसके कारण उपजी हिंसा से मणिपुर धधक रहा है। भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र एवं राज्य की सरकारों की लापरवाही और कुप्रशासन से हालात ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वहां दिन ब दिन स्थिति नाज़ुक हो रही है। दो समुदायों (कुकी व मैतेई) के बीच तकरीबन रोज कहीं न कहीं सशस्त्र मुठभेड़ों के समाचार मिल रहे हैं। अब तो केन्द्रीय आरक्षित पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कैंपों पर भी हमले हो रहे हैं जो अधिक चिंताजनक हैं। हालत की गम्भीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौजूदा हिंसा के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह विदर्भ की अपनी चुनावी रैलियां छोड़कर दिल्ली लौट गये।

उन्होंने सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल को मणिपुर की राजधानी इम्फाल रवाना किया है ताकि वे मौके पर बैठकर हिंसा पर अंकुश लगाने सम्बन्धी कार्रवाइयों को निर्देशित कर सकें। हिंसा की नयी वारदात के मद्देनज़र राज्य के छह जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इंटरनेट भी बन्द है। इसे देखते हुए इम्फाल में सेना तथा असम राइफल्स की ज्यादा टुकड़ियां तैनात कर दी गयी हैं। इम्फाल पूर्व, इम्फाल पश्चिम, बिष्णुपुर, थौबल और कचिंग जिलों में प्रतिबन्ध लगाये गये हैं क्योंकि उनमें हिंसा का उद्रेक ज्यादा है।

मणिपुर के जिरीबाम जिले में बहने वाली बारक नदी में शनिवार को 6 शव मिले। इनमें दो महिलाओं और एक बच्चे के मृत शरीर हैं। ये सोमवार से लापता थे। माना जाता है कि इनकी हत्या हुई है। इसके कारण राज्य में तनाव बढ़ गया है। शवों को पोस्ट मार्टम के लिये असम के सिलचर के शासकीय अस्पताल में भेजा गया है। शनिवार को ही राजधानी में तीन मंत्रियों एवं 6 विधायकों के घरों में उपद्रवकारियों ने तोड़-फोड़ की। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री सापम रंजन (पश्चिम इम्फाल का लम्पेल संकेइथेल क्षेत्र), पीडीएस मंत्री एल. सुसींद्रो सिंह (इम्फाल पूर्व), शहरी विकास मंत्री वाई खेमचंद (इम्फाल पश्चिम के सिंगजमई) आदि के मकान हिंसक भीड़ के निशाने बने। इनमें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद आर के इमो का भी आवास शामिल है। एक बड़ी भीड़ सचिवालय की ओर भी बढ़ रही थी जिसे तितर-बितर करने के लिये सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े।

विधानसभा के निकट थंगमेईबंद में प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर टायर जलाये। प्रदेश सरकार के निकम्मेपन और नाकामी का आलम यह है कि खुद उनके मंत्री व्यथित हो चले हैं। सापम रंजन ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि वे छह लोगों की हत्या का मामला केबिनेट में उठायेंगे और यदि सरकार ने लोगों की भावनाओं का सम्मान नहीं किया तो वे मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे। मानवाधिकार संगठनों की समन्वय समिति ने राज्य में उग्रवाद को नेस्तनाबूद करने के लिये 24 घंटों के भीतर सैन्य कार्रवाई की मांग की तो वहीं दूसरी ओर सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफ्सा) को तत्काल रद्द करने की भी मांग दोहराई।

राज्य में हिंसा इस कदर बढ़ गयी है कि सीआरपीएफ कैंपों पर भी हमले हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 11 नवम्बर को सीआरपीएफ ने एक मुठभेड़ में 11 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया था। इसकी नाराजगी के चलते भी उग्रवादी संगठन पुलिस एवं सुरक्षा बलों, खासकर सीआरपीएफ को निशाना बना रहे हैं। केन्द्र-राज्य सरकार दरअसल अब भी इस क्षेत्र में कुकी एवं मैतेई समुदायों के बीच सुलह कराने और उनसे संवाद करने में कोई रुचि नहीं दिखा रही है। सच तो यह है कि अपने राजनीतिक फायदे के लिये भाजपा इस संघर्षों को न केवल चलने देने में दिलचस्पी रखती है बल्कि उसे हवा भी दे रही है। कुकी ईसाइयत में तो वहीं मैतेई समुदाय हिन्दू मान्यताओं में यकीन रखता है। याद हो कि 2023 की मई में मणिपुर के एक इलाके में दो कुकी युवतियों को नग्न कर परेड के वीडियो सामने आये थे। इससे भारत समेत दुनिया भर में नाराज़गी फैली थी। कई देशों में यह मामला उठा था लेकिन मोदी, शाह या भाजपा के किसी नेता ने इस पर एक लफ़्ज़ तक नहीं कहा था। न ही संसद में इस पर चर्चा की गयी। देश की धर्मनिरपेक्ष छवि की कीमत पर भी मोदी-शाह चुप्पी साधे रहे और इसे अपनी धु्रवीकरण की राजनीति का उपकरण बनाया था। इसी के चलते हालात यहां तक पहुंचे हैं।

हालात की गम्भीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि देश में आग लग जाने के बाद भी चुनावी रैलियां और प्रचार कभी न छोड़ने वाले पीएम और तमाम भाजपा नेताओं के बीच अमित शाह अब बतौर गृहमंत्री अपनी जिम्मेदारी पूरी करने निकले हैं। विदर्भ के गढ़चिरोली तथा वर्धा एवं नागपुर जिले की काटोल व सावनेर में रविवार को शाह की प्रचार सभाएं आयोजित थीं। सुबह वे नागपुर के होटल से तो निकले पर अपनी सभाओं को रद्द कर दिल्ली रवाना हो गये। सम्भवत: इसका आदेश खुद मोदी की ओर से आया होगा जो इस वक्त नाइजीरिया, ब्राजील एवं गुयाना के दौरे पर है। पूछा जा सकता है कि स्थिति ऐसी संगीन है तो मोदी विदेश क्यों गये? सवाल ही बेमानी है; क्योंकि देखा यही गया है कि चुनाव प्रचार और विदेशी दौरे मोदी किसी भी हाल में नहीं छोड़ते। सच तो यह है कि मोदी व शाह ने मणिपुर की स्थिति को सुधारने के कभी गम्भीर प्रयास नहीं किये। उल्टे, त्रासदी का सियासी लाभ ही उठाया।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it