चुनाव सुधार पर अहम चर्चा
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी 'वोट चोरी' के कृत्य को अंजाम देकर सबसे बड़ा देशविरोधी काम कर रही है

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी 'वोट चोरी' के कृत्य को अंजाम देकर सबसे बड़ा देशविरोधी काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ 'द आइडिया ऑफ इंडिया' यानी भारत की अवधारणा को नष्ट कर रहे हैं।
राहुल गांधी पहले भी वोट चोरी के इल्जाम लगाते हुए कई सबूत भी पेश कर चुके हैं, जिनमें महाराष्ट्र, हरियाणा और कर्नाटक में मतदाता सूची में बड़ी गड़बड़ियां सामने आई हैं। नेता प्रतिपक्ष के इन आरोपों पर भाजपा ने हमेशा चुनाव आयोग का बचाव किया है और खुद चुनाव आयोग ने भी इन आरोपों का तार्किक जवाब देने की जगह इन पर फेक का ठप्पा लगाकर खारिज कर दिया है। लेकिन लोकतंत्र इतने उथलेपन के साथ नहीं चल सकता कि विपक्ष के आरोपों को गलत कहकर अपनी जिम्मेदारी से बरी हुआ जाए। सरकार और चुनाव आयोग दोनों को इस बात का जवाब देना होगा कि आखिर मतदाता सूची में तथाकथित शुद्धिकरण की जरूरत अभी क्यों पड़ी है।
बिहार के बाद चुनाव आयोग ने देश के 12 और राज्यों में मतदाता सूची का एसआईआर करवाया है, आज यानी 11 तारीख को एसआईआर के लिए फॉर्म भरने की आखिरी तारीख है। पहले यह मियाद 4 दिसंबर तक थी, लेकिन जब चुनाव आयोग को खुद यह समझ आया कि इतनी जल्दी करोड़ों मतदाताओं की सूची फिर से तैयार नहीं हो सकती तो तारीख आगे बढ़ाई गई। हालांकि विपक्ष पहले ही इस जल्दबाजी पर सवाल उठा रहा था। एसआईआर का मामला अदालत में भी है, लेकिन चुनाव आयोग ने न बिहार चुनाव के वक्तविपक्ष की आपत्तियों और लोगों की तकलीफों पर ध्यान दिया न अब दे रहा है।
इस बीच एसआईआर के काम में लगे कई बीएलओज़ की अकाल मौत या गंभीर रूप से बीमार होने की खबरें आ चुकी हैं। मगर चुनाव आयोग ने यह माना ही नहीं कि बीएलओज़ पर काम का या कुछ खास समुदायों के वोट काटने का दबाव है।
एसआईआर से जुड़े ऐसे कई सवालों पर विपक्ष सदन में भी चर्चा चाहता था ताकि देश को इस बारे में सरकार का आधिकारिक नजरिया पता चले। पिछले मानसून सत्र में विपक्ष की इस मांग को सरकार ने टाल दिया था, लेकिन शीतकालीन सत्र में सरकार अपनी जिद पर टिक नहीं पाई। एसआईआर तो नहीं लेकिन चुनाव सुधार के नाम पर चर्चा के लिए सरकार राजी हुई। अब इसमें विपक्ष ने जो मुद्दे उठाए हैं, उनके बेतुके जवाब भाजपा दे रही है।
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान न केवल एसआईआर की बात की, बल्कि भाजपा और संघ के लोकतंत्र से खिलवाड़ पर हमला भी किया। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद इनके 'प्रोजेक्ट' का अगला हिस्सा भारत के संस्थागत ढांचे पर कब्जा करने का था। राहुल ने दावा किया, 'आरएसएस ने एक-एक करके संस्थाओं पर कब्जा शुरू कर दिया। सब लोग जानते हैं कि विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति कैसे होती है। निर्वाचन आयोग, विश्वविद्यालयों, खुफिया एजेंसियों, जांच एजेंसियों और आयकर विभाग जैसी संस्थाओं पर कब्जा किया जा रहा है।'
राहुल गांधी ने कहा कि देश 1.5 अरब लोगों का ताना-बाना है जो वोट के माध्यम से बुना हुआ है। अगर वोट का ही मतलब नहीं रह जाएगा तो लोकसभा, विधानसभा या पंचायत, किसी का कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त की चयन प्रक्रिया से अब मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर दिया गया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयु (नियुक्ति, सेवा-शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023' के तहत तीन सदस्यीय चयन समिति में अब प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। इस पर राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि इस सरकार ने दिसंबर 2023 में कानून बदल दिया ताकि अपनी मर्जी से नियुक्ति हो। किसी चुनाव आयुक्त को उसके फैसलों के लिए दंडित नहीं किया जा सके। राहुल ने पूछा कि आखिर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इसकी जरूरत क्यों पड़ी। उन्होंने दावा किया कि इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया।
राहुल की तरह कुछ और विपक्षी सांसदों ने भी यही सवाल सदन में किया। जिसके जवाब में अब रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि हम सभी न्यायपालिका का सम्मान करते हैं। लेकिन न्यायपालिका को हर ची•ा में शामिल करना क्या सही है? क्या ये च्सेपरेशन ऑफ़ पावर' के ख़िलाफ़ तो नहीं है? और क्या हम अपनी कमज़ोरी को तो नहीं दिखा रहे हैं? हम अपने से कुछ नहीं कर पाएंगे, जब तक सीजेआई नहीं आएंगे। ये लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।' उन्होंने बेतुकी बात कही कि भारत के प्रधानमंत्री के पास न्यूक्लियर बटन होता है कि नहीं? 'देश की जनता प्रधानमंत्री, देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और रणनीतियों में विश्वास करती है। भारत की चुनी हुई सरकार इतना कर सकती है लेकिन एक अच्छा चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर नहीं चुन सकती। ये कौन-सी बात कही जा रही है?'
इस जवाब से जाहिर हो रहा है कि भाजपा एक बार फिर मूल सवाल को भटका रही है। विपक्ष ने सीधा सवाल किया है कि जब पहले मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने में प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता और मुख्य न्यायाधीश शामिल रहते थे, तो अब प्रधानमंत्री के साथ एक केबिनेट मंत्री को शामिल क्यों किया गया है। इसका तो सीधा मतलब यही है कि विपक्ष के नेता की राय का मतलब ही नहीं रहेगा, क्योंकि तीन लोगों की कमेटी में दो लोग एक पक्ष के रहेंगे। यहां जनता सरकार पर कितना भरोसा करती है या नहीं करती है, यह सवाल आता ही नहीं है। लेकिन भाजपा जानबूझ कर बात को घुमा रही है। वैसे राहुल ने कहा है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर इस कानून में 'पूर्वव्यापी प्रभाव' से संशोधन किया जाएगा तथा चुनाव आयुक्तों को कठघरे में लिया जाएगा।
चुनाव सुधारों पर चर्चा में विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर निष्पक्षता की कमी का आरोप लगाया और मतपत्र (बैलेट पेपर) से चुनाव कराने की मांग भी की। विपक्षी सांसदों ने बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) पर एसआईआर प्रक्रिया के दौरान भारी दबाव का •िाक्र किया और यह भी कहा कि यह प्रक्रिया 'शामिल करने' के बजाय बाहर करने का का माध्यम बन गई है। विपक्ष की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि चुनाव आयोग को एसआईआर कराने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, 'रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 21 कहती है कि आयोग को अपनी शक्तियां वहीं से मिलती हैं। संविधान में या कानून में एसआईआर की कोई व्यवस्था नहीं है।'
इस बहस में ईवीएम के इस्तेमाल पर भी सवाल किए गए। कुल मिलाकर संसद में चुनाव सुधारों पर विपक्ष ने महत्वपूर्ण बिंदु सामने रखे हैं, जो लोकतंत्र और मताधिकार को बचाने में मददगार रहेंगे।


