गृहमंत्री का स्तरहीन, खोखला भाषण
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूं लुटे तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं।

शायर शहाब जाफ़री का बड़ा मशहूर शेर है-
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूं लुटे
तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं।
इन पंक्तियों को संसद में चर्चा के दौरान कई बार अलग-अलग नेताओं ने उद्धृत किया है। सोमवार और मंगलवार दोनों दिन जब सत्ता पक्ष के लोगों ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में अपनी बात रखी तो फिर इन्हीं पंक्तियों की याद आई। रहबरी यानी पथप्रदर्शक और राहज़न यानी लुटेरा, डाकू। अगर रास्ता बतलाने वाले में काबिलियत हो तो फिर काफिला सुरक्षित अपनी मंज़िल तक पहुंच जाता है, लेकिन रहबर अगर इधर-उधर की बहानेबाजी करता रहे तो फिर काफिला लुटने से भला कौन रोक सकता है। देश का हाल फिलहाल लुटते काफिले जैसा ही हो चुका है। हमारी सीमाओं की सुरक्षा पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। चीन की तरफ से तो घुसपैठ की कोशिशें चलती ही रहती हैं। इसके अलावा बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान हर तरफ से चीन हमें घेरने की फिराक में है। पाकिस्तान की तरफ से भी आतंकवाद बढ़ाने का खतरा बना ही हुआ है। ताजा उदाहरण पहलगाम है, जिसमें निर्दोष पर्यटकों की बेरहमी से जान ले ली गई। इतनी गंभीर चूक और भयावह घटना होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी इस पर राजनैतिक लाभ लेने में लगे हुए हैं। देश से लेकर विदेशों तक कई मंचों से उन्होंने आतंकवाद पर बड़ी-बड़ी बातें कीं, लेकिन न सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए, न संसद में। जब इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत हुई तो श्री मोदी वहां उपस्थित रहे। पहले दिन सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस मुद्दे पर अपना भाषण दिया, और मंगलवार को गृहमंत्री अमित शाह ने भाषण दिया। इस बीच सत्ता पक्ष से कई और सांसदों और मंत्रियों ने भाषण दिया। लेकिन उनमें तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया। वहीं विपक्ष की तरफ से उठाए सवालों में से एक का भी जवाब नहीं दिया।
रक्षा मंत्री समेत सत्ता पक्ष के तमाम सांसदों के भाषण में बार-बार विपक्ष को निशाने पर लिया गया। अनुराग ठाकुर ने लश्करे राहुल जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। वहीं अमित शाह की भी पूरी कोशिश रही कि वे सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव जैसे उन विपक्षी नेताओं को निशाने पर लें जिनकी वजह से भाजपा को लोकसभा चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है। अमित शाह ने यूपीए सरकार में हुए आतंकी हमले गिनाए, उस वक्त के आतंकवादियों के नाम लिए, हुर्रियत का जिक्र किया, और बाटला हाउस मुठभेड़ का जिक्र करते हुए कहा कि बाटला हाउस की घटना पर सोनिया जी रो पड़ीं। रोना था तो शहीद मोहन सिंह के लिए रोते। आतंकियों के लिए इनको रोना आता है। इनको आतंक को लेकर कुछ भी पूछने का कोई अधिकार नहीं है। गृहमंत्री के इस तथ्यहीन और स्तरहीन भाषण को सुनकर अफसोस होता है कि आतंकवाद जैसा गंभीर मसला भाजपा ने सस्ती राजनीति का हथियार बना लिया है।
यूपीए सरकार में विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद के हवाले से यह बात फैलाई गई थी कि बाटला हाउस मुठभेड़ पर सोनिया गांधी को रोना आया था। जबकि खुद सलमान खुर्शीद ने एबीपी न्यूज चैनल के मंच पर इस बात से इंकार किया है कि उन्होंने ऐसा कोई बयान दिया था। दूसरी बात सोनिया गांधी खुद आतंकवाद की पीड़िता हैं। राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के हत्यारे मुस्लिम नहीं थे क्या इसलिए भाजपा उन्हें आतंकवादी नहीं मानती है, यह सवाल भाजपा से किया जाना चाहिए। क्योंकि इन दोनों की नृशंस हत्या वैश्विक बिरादरी में आतंकवादियों द्वारा की गई हत्या के तौर पर ही गिनी जाती है। तीसरी बात सोनिया गांधी या संसद में बैठे तमाम विपक्षी सांसद चुने हुए जनप्रतिनिधि ही हैं, इसलिए उन्हें भी आतंकवाद पर बात करने का उतना ही हक है जितना भाजपा को है।
अमित शाह ने केवल इस मसले पर ही मिथ्यावाचन नहीं किया। कश्मीर के हालात पर यूपीए और मौजूदा दौर की तुलना करते हुए अमित शाह ने कहा कि 2024 में पथराव की घटनाएं जीरो हो गईं, ऑर्गेनाइज्ड हड़ताल तीन साल से जीरो है, नागरिकों की मृत्यु तीन साल से जीरो है। जब पथराव और हड़ताल न होने का श्रेय अमित शाह ले रहे हैं तो फिर अब तक पहलगाम हमले की जिम्मेदारी उन्होंने क्यों नहीं ली। वहीं नागरिकों की मृत्यु को शून्य बताना भी उन तमाम लोगों के बलिदान का मज़ाक है, जिनकी जान पाकिस्तान की तरफ से हुए हमलों में गई है। भारत-पाक विभाजन, सुरक्षा परिषद की सदस्यता न मिलना, राजीव गांधी फाऊंडेशन का चीन से करार, 62 का युद्ध, 71 की लड़ाई के बाद शिमला समझौता इतिहास की इन तमाम घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर अमित शाह ने वैसे ही पेश किया जो भाजपा के लिए लाभकारी हो। संसद में झूठ शब्द असंसदीय सूची में डाला गया है, लेकिन अफसोस कि झूठी बातों को असंसदीय बताकर रोकने की कोई कोशिश लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने नहीं की।
चीन और पाकिस्तान से कांग्रेस खासकर गांधी परिवार का प्रेम साबित करने वाले अमित शाह भूल गए कि शी जिनपिंग के साथ झूला मोदीजी ने झूला है और गलवान के बाद चीन को नाम लेकर ललकारने की हिम्मत उन्होंने नहीं दिखाई। पाकिस्तान भी श्री मोदी ही बिन बुलाए या बिन बताए गए थे और अभी हाल में अमित शाह के बेटे जय शाह पाकिस्तान के क्रिकेटर शाहिद अफरीदी के साथ बैठकर मैच देख रहे थे, जबकि अफरीदी ने बार-बार भारत के खिलाफ बातें की हैं। लेकिन भाजपा सत्ता में होने का फायदा उठाते हुए अपनी इन हरकतों को बड़ी आसानी से दबा देती है और कांग्रेस को घेरने के लिए गड़े मुर्दे उखाड़ती है।
अमित शाह ने संसद में खड़े होकर धार्मिक नफरत का बयान भी दिया। अखिलेश यादव जब उनके भाषण के बीच में टोक रहे थे, तो अमित शाह ने कहा कि अखिलेश जी बैठ जाइए मेरा पूरा जवाब सुनिए आपको सब समझ में आ जाएगा, भाई आप आतंकवादियों का धर्म देखकर दुखी मत होइए। बताने की आवश्यकता नहीं कि यहां अमित शाह धर्म का जिक्र कर मुसलमानों पर उंगली उठा रहे थे और अखिलेश यादव को घेर रहे थे। गृहमंत्री ने यह भी कहा कि ये (विपक्ष) पूछ रहा था कि बैसरन के आतंकी कहां गए, तो मैं बताता हूं कि हमारी सेना ने उन्हें ठोक दिया है। दरअसल सोमवार को सेना ने ऑपरेशन महादेव के तहत तीन आतंकियों को मार गिराया है, अमित शाह ने मंगलवार को सदन में बताया कि यही पहलगाम के आतंकी थे। अब सवाल ये है कि आखिर अप्रैल से जिन आतंकियों के बारे में सरकार कुछ बोल नहीं रही थी कि वे कहां हैं, पकड़े गए या नहीं, उन्हें उसी दिन मारा गया, जब संसद सत्र में इस पर सवाल उठ रहे थे, ये महज संयोग है या भाजपा का कोई नया प्रयोग है। अखिलेश यादव ने अपने भाषण में इस मुद्दे को उठाया है। हालांकि विपक्ष के सवालों का जवाब देना भाजपा की रवायत अब नहीं है।


