समोसे-जलेबी पर सरकारी फरमान
सिगरेट और शराब को लेकर वैधानिक चेतावनी दी जाती है कि इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अब मोदी सरकार समोसे और जलेबी पर भी ऐसी ही चेतावनी जारी करने का फरमान निकाल चुकी है

सिगरेट और शराब को लेकर वैधानिक चेतावनी दी जाती है कि इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अब मोदी सरकार समोसे और जलेबी पर भी ऐसी ही चेतावनी जारी करने का फरमान निकाल चुकी है। जल्द ही देश के सभी सरकारी संस्थानों में जल्द ही ऐसे बोर्ड लगाए जाएंगे जो साफ बताएंगे कि आपकी प्लेट में आया समोसे और जलेबी का स्वाद असल में कितना चीनी और तेल लेकर आया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी सरकारी संस्थानों को कहा है कि कैफेटेरिया और सार्वजनिक जगहों पर ऐसे बोर्ड लगाए जाएं, जो सबसे प्रचलित भारतीय नाश्ते में छिपी चीनी और तेल की मात्रा दिखाएं। इनका मकसद लोगों को यह बताना है कि वे जो कुछ भी खा रहे हैं वह स्वाद में भले लाजवाब हो, लेकिन सेहत के लिए कितना भारी पड़ सकता है। एम्स नागपुर के अधिकारियों ने इसे फूड लेबलिंग में एक नया मोड़ कहा है, कि 'अब खाने के साथ भी उतनी ही गंभीर चेतावनी दिखेगी, जैसी सिगरेट पर होती है।'
पाठकों को बता दें कि तले हुए और मीठे खाद्य पदार्थों के लिए ऐसी चेतावनी जारी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर समोसा, जलेबी, पकौड़े, वड़ा पाव, गुलाब जामुन, लड्डू, खस्ता कचौरी, मिठाइयों की थालियां इन सबके सेवन पर कितनी शक्कर और तेल आपके शरीर में जाएगा, इस बारे में बाकायदा बोर्ड पर सूचना लगी होगी।
इस पूरी मुहिम को देश की स्वास्थ्य समस्या के निदान के तौर पर पेश किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि अमेरिका की तरह भारत में मोटापा एक बड़ी समस्या बन चुका है। देश में हर पांचवां शहरी वयस्क बढ़े वजन का शिकार है। 2050 तक देश में लगभग 45 करोड़ लोग मोटापे से ग्रसित होंगे, ऐसी आशंका है। बच्चों में भी मोटापा और डायबिटीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है तेल, ट्रांस फैट और चीनी से भरे खाद्य पदार्थों के खाने का चलन बढ़ा है। कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की नागपुर शाखा के अध्यक्ष अमर अमले ने कहा है कि यह फूड लेबलिंग की शुरुआत है जो सिगरेट की चेतावनियों जितनी गंभीर होती जा रही है। चीनी और ट्रांस फैट नए तंबाकू हैं. लोगों को यह जानने का हक है कि वे क्या खा रहे हैं।
वैसे मोटापे पर यह चिंता मोदीजी की मुहिम से ही निकली हुई दिख रही है। इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में मोटापे की गंभीर समस्या का जिक्र करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला दिया था कि 2022 में दुनिया भर में 250 करोड़ लोग जरूरत से ज्यादा वजन के शिकार थे। इसके बाद मोदीजी ने खाने में कम तेल इस्तेमाल करने की सलाह दी और मोटापे के खिलाफ लड़ाई में आनंद महिंद्रा (उद्योगपति), निरहुआ हिंदुस्तानी (अभिनेता), मनु भाकर (ओलंपिक पदक विजेता), साइखोम मीराबाई चानू (भारोत्तोलक), मोहनलाल (अभिनेता), नंदन नीलेकणी (इन्फोसिस के सह-संस्थापक), आर. माधवन (अभिनेता), श्रेया घोषाल (गायिका), सुधा मूर्ति (राज्यसभा सांसद) और ओमर अब्दुल्ला (मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर) को नामित किया था कि वे आगे इसी तरह 10 और लोगों को नामित करें और मोटापे के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाएं। पीएम मोदी ने इसे व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारी बताया था। उन्होंने मोटापा खत्म करने के लिए तेल की खपत कम करने की अपील की थी।
भारत जैसे देश में, जहां कुपोषण एक गंभीर समस्या है, पहले नरेन्द्र मोदी और अब मोदी सरकार का यह अभियान फ्रांस की रानी की सलाह की तरह लगता है कि गरीबों के पास खाने के लिए रोटी नहीं है, तो वे केक खा लें।
वैसे नरेन्द्र मोदी चाहें तो इस अभियान को अपनी उपलब्धि के तौर पर भी पेश कर सकते हैं कि 2014 में उन्होंने ऐलान किया था कि 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करेंगे और अब कुपोषण नहीं मोटापे से मुक्ति की लड़ाई छिड़ गई है। वैसे सरकार को आईना दिखाने के लिए यह तथ्य काफी है कि देश में अगर मोटापा शहरों और संपन्न तबकों में बढ़ा है, तो उसके साथ कुपोषण की समस्या और गंभीर हुई है। पिछले साल ही मोदी सरकार ने संसद में बताया है कि देश में 5 साल से कम उम्र के करीब 60प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं। आंकड़ों के मुताबिक 5 साल तक की उम्र के 36प्रतिशत बच्चे बौने हैं, 17प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं और 6प्रतिशत बच्चे दुबलेपन का शिकार हैं।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि बच्चों के बौनेपन में उत्तरप्रदेश पहले स्थान पर था और कम वजन वाले बच्चों में मध्य प्रदेश सबसे आगे है।
वहीं पिछले साल ही संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और यूनिसेफ सहित चार अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा जारी रिपोर्ट 'विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति' (एसओएफटी) में यह बात सामने आई है कि भारत में 19.5 करोड़ कुपोषित लोग हैं - जो दुनिया के किसी भी देश में सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आधे से ज्यादा भारतीय 55.6प्रतिशत भारतीय याने कि 79 करोड़ लोग अभी भी 'पौष्टिक आहार' का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भी भारत नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका से भी सबसे निचले पायदान पर रहा है। भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर प्रति 1,000 बच्चों पर 37 है, जिसमें 69 प्रतिशत मौतें कुपोषण के कारण होती हैं। देश में 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 42 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त अंतराल पर जरूरी भोजन मिल पाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के अनुसार, आदिवासियों और दलितों में कुपोषण की दर भारत में सबसे अधिक है।
एक तरफ धनपति अंबानी के घर में शादी पर ही 5000 करोड़ रुपये खर्च हो गए, जिनसे पूरे हिंदुस्तान को एक साल तक खाना खिलाया जा सकता है। इसी तरह प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं से लेकर प्रचार-प्रसार वाले कार्यक्रमों में अनाप-शनाप खर्च होते हैं, जबकि उतने धन से न जाने कितने लोगों को भरपेट भोजन मिल जाता। सरकार खुद 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो अनाज देने को उपलब्धि बताती है, जबकि यह सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए।
बहरहाल, इस शर्म का सामना करने की जगह अब मोदी सरकार ने मोटापे पर एक आभासी लड़ाई शुरु कर जरूरी मसलों से ध्यान हटाने की नयी कोशिश की है। देखना होगा यह कोशिश कहां तक कामयाब होती है।


