ललित सुरजन की कलम से- अपनी सरकार से अपेक्षाएं-2
'यह दुर्भाग्य है कि गलत सरकारी नीतियों के कारण देश में मीडिया की विश्वसनीयता लगातार घटी है

'यह दुर्भाग्य है कि गलत सरकारी नीतियों के कारण देश में मीडिया की विश्वसनीयता लगातार घटी है। वैसे तो 1990-91 में वैश्वीकरण के पदार्पण के साथ यह गिरावट शुरू हो गई थी, लेकिन इधर जो स्थिति बनी है वह अत्यन्त शोचनीय है।
एक तरफ कारपोरेट और पूंजीमुखी मीडिया है, जिसकी सत्ताधारियों के साथ सांठगांठ रहती है। दूसरी तरफ चरण चुंबन करने वाला मीडिया है जिसने अपने पेशे को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन सत्ताधीशों का वरदहस्त इस पर बना रहता है। नई सरकार से हम अपेक्षा करना चाहेंगे कि मीडिया के स्वस्थ विकास की पहल की जाए। छोटे-छोटे केन्द्रों से प्रकाशित पत्रों के साथ भी न्याय किया जाए। विज्ञापन नीति एकाधिकार याने मोनोपली प्रेस को बढ़ावा देने वाली न हो।'
'ऑनलाइन मीडिया का आकलन उसकी विश्वसनीयता के आधार पर हो। याद रखना चाहिए कि मीडिया की भूमिका सरकार और जनता के बीच में पुल बनाने की है। जो सत्ताधीश आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकते वे चाटुकारों से घिर जाते हैं और फिर उन्हें पता भी नहीं चलता कि उनके राज में क्या हो रहा है। हम याद करना चाहेंगे कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले तक हर सरकार बड़े-छोटे का भेद किए बिना अमूमन मीडिया के साथ बराबरी से व्यवहार रखती थी। रिजर्व बैंक की तो घोषित नीति थी कि समाचारपत्रों को लघु उद्योग का दर्जा देकर उसके अनुरूप सुविधाएं दी जाएं।'
( देशबन्धु में 30 नवंबर 2018 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/11/2.html


