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चुनाव आयोग और एटम बम

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के वक्त राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि वे यहां जनता की आवाज़ उठाने का काम करेंगे

चुनाव आयोग और एटम बम
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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के वक्त राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि वे यहां जनता की आवाज़ उठाने का काम करेंगे, और राहुल गांधी अपने इस वचन पर पूरी तरह खरे उतर रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते वक्त भी भावना यही रहती है कि जो व्यक्ति इस पद को संभालेगा वह लोकतंत्र को मजबूत करने और जनता के हित को ध्यान में रखकर फैसले लेगा, मगर नरेन्द्र मोदी इस शपथ को निभाने में बार-बार चूक रहे हैं।

हालांकि उनके पास मौका भी है और ताकत भी कि वे जनता से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए संसद में खुद उसे चर्चा का विषय बनाएं। मगर अभी आलम यह है कि विपक्ष जनता की तकलीफों को सदन में उठाना चाहता है और सत्ता पक्ष इन तकलीफों पर बहाना बनाकर चर्चा नहीं करवा रहा। इसकी जगह समोसे में कहां कितना आलू भरा है और कचौड़ी का आकार पूरे देश में एक जैसा होने के लिए नियम बनें, ऐसी अपील भाजपा सांसद रवि किशन ने लोकसभा में प्रधानमंत्री से की है। नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकताएं भी अलग ही हैं। अभी उन्होंने 15 अगस्त के अपने भाषण के लिए जनता से विचार और सुझाव मांगे हैं। बड़ी अजीब बात है कि 11 सालों में नरेन्द्र मोदी जनता के विचारों की थाह ही नहीं ले पाए हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि जनता क्या चाहती है और सरकार से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं। लालकिले से बतौर प्रधानमंत्री दिए जाने वाला भाषण केवल अलग-अलग परिधानों और रंग-बिरंगी पगड़ियां पहनकर झंडा फहराने की रस्म से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन श्री मोदी के लिए यह भी एक प्रचार का बहाना बन गया है।

प्रधानमंत्री के इस रवैये के कारण ही अब भारतीय नागरिकों के मताधिकार पर संकट मंडरा गया है। बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर मानसून सत्र के पहले दिन से चर्चा की मांग विपक्ष कर रहा है। लेकिन सरकार बहाना दे रही है कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए हम चर्चा नहीं करेंगे। गौर करने की बात यह है कि अदालत में इस मामले के तरीके पर सवाल उठाए गए हैं, न कि इसे रद्द करने की मांग की गई है। इसलिए संसद में एसआईआर के अन्य पहलुओं पर चर्चा तो की ही जा सकती है। बल्कि कायदे से तो प्रधानमंत्री होने के नाते नरेन्द्र मोदी को इस बात की सबसे अधिक फिक्र होनी चाहिए थी कि उनके शासनकाल में लाखों मतदाताओं से उनका अधिकार छीनने की नौबत आई है और उन्हें ही संसद में इस पर चर्चा करना चाहिए थी, लेकिन श्री मोदी इससे भागते दिख रहे हैं।

निर्वाचन आयोग का रवैया भी ऐसा ही है। राहुल गांधी लंबे समय से निर्वाचन आयोग से चुनाव में धांधली की शिकायत करते रहे हैं और अब तो श्री गांधी ने बाकायदा आयोग को ही कटघरे में खड़ा किया है। राहुल गांधी का कहना है कि उनके पास चुनावों में धांधली के पुख्ता सबूत हैं, जिन्हें 'एटम बम' बताते हुए राहुल गांधी ने कहा है कि इनके सामने आते ही निर्वाचन आयोग कहीं दिखाई नहीं पड़ेगा। बता दें कि 5 अगस्त मंगलवार को कर्नाटक में श्री गांधी ये सबूत पेश करेंगे। शनिवार को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की लीगल सेल की वार्षिक बैठक में बोलते हुए राहुल गांधी ने यह भी कहा कि लोगों को पता नहीं है लेकिन सच यही है कि भारत में 'चुनाव आयोग मर चुका है'। चुनाव आयोग के लिए श्री गांधी की भाषा कितनी तल्ख हो रही है, इस पर चिंता करने वालों को असल में चिंता इस बात की होनी चाहिए कि आखिर उन्हें इस हद तक क्यों जाना पड़ रहा है।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाए थे कि लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों के बीच के समय, यानि लगभग 5 महीने के बीच महाराष्ट्र में 70 लाख नए वोटर जोड़ दिए गए। जबकि 2019 के विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों(2024) के बीच, 5 सालों में मात्र 32 लाख वोटर ही जोड़े गए थे। यह सवाल खुलकर राहुल गांधी ने संसद में उठाया लेकिन इस संबंध में कभी भी चुनाव आयोग ने संतोषजनक जवाब तक नहीं दिया। बल्कि अब चुनाव आयोग उल्टा राहुल गांधी पर आरोप लगा रहा है कि हमने उन्हें चर्चा के लिए बुलाया, लेकिन वे नहीं आए।

मान लें कि राहुल गांधी चुनाव आयोग चले जाते हैं, तब भी क्या गारंटी है कि आयोग उन्हें वोटर लिस्ट उसी फॉर्मेट में उपलब्ध कराएगा, जिस तरह से कांग्रेस मांग रही है। राहुल गांधी पर चुनाव आयोग ने अपने लाखों कर्मियों और अधिकारियों की निष्ठता और ईमानदारी पर उंगली उठाने का आरोप लगाया है। लेकिन क्या चुनाव आयोग नहीं जानता कि उसके अपने रिटर्निंग अधिकारी अनिल मसीह ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में क्या धांधली की थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी लोकतंत्र की हत्या जैसे कठोर वचन बोले थे। याद रखने वाली बात है कि चुनाव आयोग की सिफारिश पर ही मोदी सरकार में कानून में संशोधन किया कि अब से मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज जारी नहीं किए जाएंगे।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि एसआईआर पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग से कहा था कि इसमें आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे दस्तावेजों को मानना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा था कि उद्देश्य यह होना चाहिए कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को वोट करने का अधिकार मिले लेकिन इसके उलट आयोग ने 65 लाख लोगों के नाम बिहार में काट दिए और आधार को जोड़ने की सलाह भी नहीं मानी। बिहार के बाद अब प.बंगाल में एसआईआर की तैयारी शुरु हो गई है। इधर तमिलनाडु में साढ़े 6 लाख प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची में जोड़ने की तैयारी आयोग कर रहा है। जिस पर डीएमके समेत सारे दलों ने आपत्ति जताई है कि यह फैसला हमारी संस्कृति और परंपराओं के लिए चुनौती है। जाहिर है कि चुनाव आयोग ने एक बार फिर मनमानी दिखाई है, जबकि तमिलनाडु के लिए ऐसा फैसला लेने से पहले उसे राजनैतिक दलों को भरोसे में लेना चाहिए था। इस समय चुनाव आयोग भाजपा के भरोसे और सहयोग से काम कर रहा है, ऐसा आरोप विपक्ष का है। बिहार से लेकर तमिलनाडु तक के फैसले इस आरोप को बल दे रहे हैं।



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