शेयर बाजार में गिरावट और सरकार की चुप्पी
भारत के घरेलू बाजार में एक के बाद एक घाटे की खबरें सामने आ रही हैं। शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखी जा रही है

भारत के घरेलू बाजार में एक के बाद एक घाटे की खबरें सामने आ रही हैं। शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखी जा रही है, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आई है और इसी के साथ डोनाल्ड ट्रंप की घुड़कियों का असर भी उद्योग जगत पर देखा जा रहा है। हैरानी की बात ये है कि पूरे देश में घूम-घूम कर विकास का ढिंढोरा पीटने वाले प्रधानमंत्री मोदी शेयर बाजार में दिखाई दे रही अभूतपूर्व गिरावट को लेकर बिल्कुल मौन है। मानो उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि छोटे और मंझोले निवेशकों का पैसा डूबे या वे बर्बाद हो जाएं।
श्री मोदी के हिसाब से तो अब भी भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था भी वे देश में कायम कर ही लेंगे। हालांकि एक जरूरी सवाल तब भी बना रहेगा कि अगर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था देश में होती है तो इसमें गरीबों का हिस्सा कितना रहेगा और अमीरों का कब्जा कितने पर होगा। क्योंकि अभी तो आर्थिक गैर-बराबरी और बढ़ रही है। वहीं पांच किलो अनाज पर 80 करोड़ लोग अब भी जी रहे हैं। जो मध्यमवर्ग है, उसे भी राहत नहीं है, न ही भविष्य को लेकर वह निश्चिंत हो पा रहा है। पहले अपनी बचत से साधारण नौकरी या कमाई वाला व्यक्ति थोड़ा पैसा बैंक में, थोड़ा शेयर बाजार में या इसी तरह कहीं निवेश कर आड़े वक्त का इंतजाम करता था।
अब मोदी सरकार में यह भी मुमकिन नहीं हो रहा। अभी हाल में मुंबई में न्यू इंडिया को-आपरेटिव बैंक में 125 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला सामने आया था, जिसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके बोर्ड को भंग कर धन निकासी पर भी रोक लगा दी थी। हालांकि अब खाताधारकों को 25 हजार रुपए तक निकालने की छूट दे दी गई है। लेकिन इसे राहत भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि देश में बैंकिंग व्यवस्था में घोर अविश्वसनीयता बढ़ रही है। बैंक की रकम हड़पने का यह पहला मामला नहीं है, पहले भी अनेक मामले ऐसे हुए और लुटेरे हजारों करोड़ की रकम लेकर विदेशों में जा बैठे हैं। रिजर्व बैंक कार्रवाई तो करता है, लेकिन इसमें भी आम खाताधारक ही पिसता है।
उधर शेयर बाजार का भी यही हाल है। इसकी निगरानी करने वाली संस्था सेबी की अध्यक्ष माधवी बुच पर इतने आरोप लगे, लेकिन सरकार लोगों का भरोसा जीतने के लिए कोई ठोस कार्रवाई करती नहीं दिख रही। उधर बाजार में लगातार गिरावट देखी जा रही है। जानकारों का कहना है कि कोरोना लॉकडाउन या नोटबंदी के वक्त भी बाजार इस तरह नहीं गिरा है। साल 1996 के बाद यह पहला मौका है जब निफ्टी में लगातार पांच महीने गिरावट रहेगी। बताया जा रहा है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों की लगातार बिकवाली के कारण शेयर बाजार में गिरावट आ रही है। पिछले साल अक्टूबर 2024 से विदेशी निवेशक अब तक 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेच चुके हैं। साथ ही रुपये के कमजोर होने से उभरते बाजारों में निवेश कम आकर्षक हो गया है।
इस कारण विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि मोदी सरकार की नीतियों और फैसलों पर विदेशी निवेशकों का भरोसा उठ चुका है। अजीब बात है कि एक तरफ बिहार, मप्र, उप्र, असम तमाम भाजपा शासित राज्यों में निवेशकों को आकर्षित करने वाले कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। देश के नामी-गिरामी उद्योगपति भाजपा नेताओं और मंत्रियों के साथ मंच साझा कर विकास की गंगा-जमुना बहाने के सपने लोगों को दिखा रहे हैं। सरकारों के साथ उद्योग घरानों के समझौते हो रहे हैं। दावे किए जा रहे हैं कि फलाने राज्य में इतने करोड़ की परियोजनाएं शुरु होंगी, तो इतने का मुनाफा होगा, ढिकाने राज्य में इतने लोगों को रोजगार मिलेगा, इतना विकास होगा। लेकिन जमीन पर देखें तो आम जनता के लिए आमदनी अठन्नी, खर्चा रूपैया जैसा हाल ही बना हुआ है।
न कहीं बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो रहा है, न बड़े कल-कारखाने लग रहे हैं, न आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर उद्योगों में होता दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी ने संसद में जो चिंता जतलाई थी वह बिल्कुल वाजिब थी कि हम एआई की बात करते हैं, लेकिन बिना डाटा के इसका कोई अर्थ नहीं है। भारत के पास न तो उत्पादन डाटा है, न ही उपभोक्ता डाटा। हमने अपना उपभोक्ता डाटा अमेरिका की बड़ी कंपनियों को दे दिया है और उत्पादन डाटा हमारे पास नहीं है। ऐसे में हमारे विकास का कोई विजन ही नहीं है। राहुल गांधी की बात को एक बार फिर सरकार ने हल्के में उड़ाने की कोशिश की। हालांकि उन्होंने दूरदर्शितापूर्ण बात कही। अगर आज हम बदलते वक्त के साथ औद्योगिक माहौल को नहीं ढालेंगे तो दुनिया में काफी पिछड़ जाएंगे। अभी यही हो रहा है। एक तरफ चीन और दूसरी तरफ अमेरिका का दबदबा बढ़ता जा रहा है। हमारे यहां दो-चार लोग दुनिया के अमीरों में भले शामिल हों, लेकिन पूरा देश तभी विकास करेगा, जब आम जनता की जेबों में धन आएगा।
अभी तो आम जनता केवल इसी माथापच्ची में लगी रहती है कि अपनी सीमित आय को कैसे बचाए। शेयर बाजार की गिरावट उसकी उलझन और बढ़ा रही है। शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों के हाथ खींचने के अलावा ट्रंप की टैरिफ पर जैसे को तैसा वाली धमकी भी असर दिखा रही है। अगर नरेन्द्र मोदी हिम्मत दिखा कर ट्रंप को वहीं रोकते और बताते कि अमेरिका को भारत से कितना फायदा मिल रहा है। इतना बड़ा बाजार हमने अमेरिका को दिया है, इसका एहसान प्रधानमंत्री जताते तो शायद बाजार का भरोसा भी बढ़ता। लेकिन वहां तो श्री मोदी मुस्कुरा कर आ गए और अब भी जब ट्रंप रोजाना किसी न किसी तरह भारत को अपमानित कर रहे हैं, तो भी मोदी सरकार कोई प्रतिवाद नहीं कर रही है। ऐसे में भारतीय बाजार को लेकर अनिश्चितताएं बढ़ना स्वाभाविक है। इसका फायदा चीन जैसे देशों को मिल रहा है। जहां शेयर बाजार ऊंचाई पर जा रहा है।


