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कांग्रेस : देर आयद दुरुस्त आयद

अपने दो दिवसीय गुजरात के दौरे पर राहुल गांधी ने जो कहा वह उन्हें काफी पहले कहना चाहिये था और अब वे जो करने का कह रहे हैं उन्हें बिना विलम्ब किये कर देना चाहिये

कांग्रेस : देर आयद दुरुस्त आयद
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अपने दो दिवसीय गुजरात के दौरे पर राहुल गांधी ने जो कहा वह उन्हें काफी पहले कहना चाहिये था और अब वे जो करने का कह रहे हैं उन्हें बिना विलम्ब किये कर देना चाहिये। लोकसभा के भीतर राहुल ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दी है कि कांग्रेस गुजरात में भाजपा को सत्ता से हटायेगी। लोकसभा चुनाव के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को वैसी सफलता नहीं मिली जो राहुल के दावे के आसपास भी कहीं हों। हालांकि राहुल ने जब भाजपा को हराने की बात कही थी तब उनका आशय विधानसभा चुनावों से था जो पहले ही हो चुके थे और अगला चुनाव होने में अभी काफी वक्त है। वह 2027 में होगा।

विधानसभा 2027 और लोकसभा 2029 में। गुजरात में राहुल का दो दिन बिताना कई संकेत दे रहा है। पहला तो यह है कि अब कांग्रेस आखिरी लम्हों में काम शुरू करने की बजाय काफी पहले से काम शुरू करने की आदत डाल रही है जो सम्भवत: अपनी पिछली गलतियों से मिली सीख है। गुजरात में शुक्रवार को उन्होंने नेताओं और पार्टी सदस्यों से मैराथन मुलाकातें कीं। फिर दूसरे दिन (शनिवार) कार्यकर्ताओं को जो सम्बोधन किया, वह बेहद महत्वपूर्ण है और उसका ताल्लुक केवल गुजरात तक सीमित नहीं है। राहुल ने भीतरघात करने वाले कांग्रेसियों को साफ कर दिया कि 'वे भाजपा की बी-टीम बनकर काम करने की बजाय बाहर चले जायें।' राहुल या कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सामान्यत: जो नहीं कहता था या अब तक नहीं कहा था वह पहली बार उन्होंने साफ-साफ कह दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी हितों के खिलाफ काम करने वाले 10-20 ही नहीं 40 लोगों को भी निकालना पड़े तो उसके लिये संगठन तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि 'कांग्रेस के कार्यकर्ता बब्बर शेर हैं पर उन्हें बांधकर रखा गया है।' उनका इशारा उन पदाधिकारियों और नेताओं की ओर था जो या तो निष्क्रिय हैं अथवा अपनी बातों या कामों से प्रत्यक्ष-परोक्ष व सायास-अनायास भाजपा की मदद करते हैं।

सच यही है कि कांग्रेस अपनी अंदरूनी बीमारी से लम्बे समय से जूझ रही है जिसने उसे बाहरी आक्रमणों की बजाय कहीं अधिक नुकसान पहुंचाया है। ऐसे लोगों की लम्बी फेहरिस्त है जिनके कारण पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा है। राजीव गांधी की मृत्यु के बाद से ही कांग्रेस की यह दिक्कत शुरू हो गयी थी। ऐसे वक्त में जब पूरी पार्टी को एकजुट होकर खड़े होना था, सोनिया गांधी के विदेशी मूल को लेकर पार्टी के तीन बड़े नेताओं- शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली जो एक व्यर्थ की कवायद साबित हुई क्योंकि बाद में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व की दोनों यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस सरकारों में एनसीपी शामिल हुई और अब वह प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया में है जिसका नेतृत्व कांग्रेस करती है। तारिक पार्टी में लौट आये जो अब कटिहार के सांसद हैं। जो नुकसान होना था, हो गया क्योंकि पार्टी टूटी थी तथा विदेशी मूल के भाजपायी विमर्श को प्रोत्साहन मिला था। कांग्रेस की पिछले तीन-साढ़े तीन दशकों की यात्रा में कई लोगों ने अपने बयानों से पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। यहां उन लोगों की बात नहीं हो रही है जिन्होंने खुद या उनके पुरखों ने कांग्रेस से सब कुछ पाया- पद, रूतबा, सम्पन्नता, लेकिन जब मोदी-शाह की जांच एजेंसियों का डंडा चलने का खतरा नज़र आया, उन्होंने सीधे भाजपा कार्यालय का रूख किया। इनमें असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा सरमा से लेकर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले के आरोपी अशोक चव्हाण जैसे हैं जो ईडी की पहली घुड़की में ही पार्टी छोड़ गये। पार्टी के भीतर ही जी-23 जैसा आंतरिक गुट बनाया गया।

कांग्रेस के पास जो बुद्धिजीवी हैं उनकी राजनीतिक समझ पर तरस ही खाया जा सकता है जो इस बात की तनिक भी सावधानी नहीं रखते कि उनके किस कहे-लिखे से दल को क्या नुकसान हो सकता है। जिस मणिशंकर अय्यर ने 2017 में मोदी के लिये अपमानजनक टिप्पणी कर लोकसभा (2019) में भाजपा को विक्टिम कार्ड खेलने का अवसर दिया था, अब राजीव गांधी की शैक्षिक योग्यता पर बयान देकर उन लोगों को परेशानी में डाल रहे हैं जो मोदी की डिग्री को लेकर सवाल करते रहे हैं। अय्यर वे शख्स हैं जिन्हें राजीव ने महत्वपूर्ण मंत्रालयों से नवाजा था।

इसी पंक्ति में सलमान खुर्शीद जैसे लोग हैं जो अपनी उस किताब को चुनाव के ऐन पहले प्रकाशित कराते हैं जिसमें वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना आतंकवादी संगठन से कर कई सीटें हाथ से निकल जाना सुनिश्चित करते हैं। जो व्यक्ति अध्यक्ष पद के लिये चुनाव लड़कर भी पार्टी में अपना महत्व, पद व दावा नहीं गंवाता- शशि थरूर- वे अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को ऐसे वक्त में अपनी भूमिका पूछते हैं जब कांग्रेस अपने वजूद की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है जिसमें युवा राहुल हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं तथा वयोवृद्ध खरगे रात-दिन पसीना बहा रहे हैं। भला कांग्रेस को बचाने के अलावा किसी की और क्या भूमिका हो सकती है? वैसे गुजरात के अपने इसी भाषण में राहुल ने कार्यकर्ताओं से जो आग्रह किया है वही सभी की भूमिका है- जनता के पास जायें, उनकी ज़रूरतों को समझें और उसके मुताबिक काम करें। जो न समझें उन्हें पार्टी बाहर का रास्ता दिखाये। इसी में संगठन की भलाई है। पार्टी के पुनर्गठन का भी सभी समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं को इंतज़ार है।


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